दक्षिण कोलकाता का रासबिहारी एवेन्यू और इस से लगा हुआ प्रतापादित्य रोड, श्यामाप्रसाद मुखर्जी रोड. आम शहरों की तरह पौ फटते ही पक्षियों की चहक आसमान में नया सूरज उगने का मानो ऐलान कर रही हो. पूरब के आसमान में सूरज उगने के साथ ही शहर के गलीमहल्ले के एक छोर से दूसरे छोर तक जिंदगी नए सिरे से शुरू होने लगती है. कुछ लोग सुबह की सैर पर जाते या लौटते नजर आ रहे थे. उपरोक्त विवरण कोलकाता के लगभग तमाम महल्लों की सुबह का चिरपरिचित नजारा है. यहां की चायदुकानों से उठता धुंआ-- कहते हैं बंगाल के लोगों की जिंदगी चाय, चीनी और चाकरी के बगैर सोची ही नहीं जा सकती. सुबहसवेरे सैर से या सागभाजी की खरीदारी कर के लौटते हुए इन चाय की दुकानों में इक्कादुक्का लोग चाय की चुस्की लगाते और राजनीति पर हलकीफुलकी बहस करते देखे जा सकते हैं. इस पूरे इलाके में पूरे देश की तरह ही एक मिलीजुली संस्कृति का नजारा देखने को मिलता है. सुबहसुबह तमाम महल्लों में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में गीतसंगीत सुनाई देना आम बात है. दिन चढ़ने के साथ घरों के झरोखों से तरहतरह के खाने की खुशबुएं आती हैं. बरामदे में रंगबिरंगे कपड़े सूखते नजर आने लगते हैं. फेरीवाले अपनी हांक लगाते हुए गुजर जाते हैं. निजी कारों से ले कर रिक्शाआटो की दौड़ बदस्तूर शुरू हो जाती है. ऊपर से देखा जाए तो इन सड़कों में बसने वाले महल्लों में सबकुछ सामान्य लगता है. पर इन महल्लों की यह पूरी सचाई नहीं है. इन महल्लों के कुछ घरों में भीतर रहने वाले लोगों के दिलों में एक अजीब सन्नाटा पसरा हुआ है. बड़े ही एकाकीपन में जिंदगियां यहां गुजरबसर करती हैं.