‘जल ही जीवन है’ यह तो सुना था पर मोबाइल ही जीवन बन जाएगा, यह सोचा भी नहीं था. मोबाइल के संदर्भ में आज यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा. आज की जैनरेशन मोबाइल पर इतनी ज्यादा आश्रित हो गई है कि वह इस के बिना लाइफ की कल्पना नहीं कर सकती. यहां तक कि अगर उस से मोबाइल और किताबों में से किसी एक को चुनने को कहा जाए तो वह निश्चय ही मोबाइल का चयन करना बेहतर समझेगी. युवाओं को लगता है कि मोबाइल में जो जादू है वह किताबों में नहीं. उन की इसी सोच ने मोबाइल और किताब के बीच प्रतियोगिता को जन्म दिया है.

सचाई यह है कि आज न टैक्नोलौजी को नकारा जा सकता है, न ही किताबों को लेकिन टैक्नोलौजी के प्रयोग को सीमित जरूर किया जा सकता है ताकि लोग किताबों से जुड़े रह कर अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकें. इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि आज मोबाइल के कारण ही लोग आउटडोर गेम्स से दूर हो गए हैं. यहां तक कि चौबीसों घंटे मोबाइल में घुसे रहने के कारण युवाओं के पास अपने मातापिता से बात करने तक का समय नहीं होता है, जिस के कारण उन में व्यावहारिक व सामाजिक ज्ञान का अभाव बढ़ रहा है. आप को मोबाइल से लाइफ कितनी ही आसान क्यों न लगती हो लेकिन जो महत्त्व किताबों का है उसे संचार का कोई भी माध्यम कम नहीं कर पाएगा.

किताबों पर हावी

मोबाइल ऐप्स ने घटाया किताबों का महत्त्व : स्मार्टफोन के कारण ऐप्स की बहार आ गई है. अब ऐप्स के माध्यम से पूरा दिन कैसे गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता. इन में वाट्सऐप, फेसबुक, स्काइप आदि प्रमुख हैं. इन ऐप्स से बढ़ती नजदीकियां लोगों को किताबों से दूर कर रही हैं. युवाओं को किताबों में सिर गड़ा कर पढ़ने से मोबाइल ऐप्स में व्यस्त रहना अच्छा लगता है. चौबीसों घंटे वाट्सऐप पर दोस्तों से गपशप चलती रहती है. घर बैठे ही स्काइप जैसे माध्यम से एकदूसरे को देखा जा सकता है.

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