प्रेम और त्याग की प्रतीक नारी ने अपने संघर्ष से पुरुष समाज के साथ कदम से कदम मिला कर समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया है. आज की सबल व प्रगतिशील नारी के पीछे उस के संघर्ष की लंबी दास्तान है जिस के बल पर उस ने यह मुकाम हासिल किया है.
- जीवन एक संघर्ष, एक चुनौती है जिसे हर इंसान को स्वीकारना पड़ता है. संघर्ष में न सिर्फ उसे ऊर्जस्विता मिलती है, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं व दशाओं से उस का परिचय भी होता है. मानव समाज का इतिहास स्त्री को सत्ता, प्रभुत्व एवं शक्ति से दूर रखने का है.
- नारी की संघर्ष क्षमता और ऊर्जा में ही उस की अपनी पहचान बनाने और पाने की ताकत छिपी होती है. जब उस पर बन आती है तो वह अपने घरसंसार, बच्चों के लिए जिंदगी की सारी चुनौतियों से रूबरू होती है, उन्हें स्वीकारती है.
- अपनी ही बनाई हुई दीवारों में औरत बंदी हो जाती है, अपने भीतर के न्यायालय में स्वयं को वह निर्णय सुनाती है, कारावास का दंड भोगती है. जिस के मन में आग लगे वही उसे बुझाने के रास्ते ढूंढ़ने को आमादा रहता है. जब तक पानी हमारे पैरों तले से नहीं गुजरता, पांव गीले नहीं होते. अपनी समस्या का समाधान पाना अब नारी का ध्येय है. पुरुषप्रधान समाज में हालात से मुकाबला करने की दिशा में एक संघर्ष है जो लक्ष्य की ओर जाता है.
- बदलते जमाने में नारी पुरुष की जागीर नहीं, उस के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने में सक्षम है. आधुनिक नारी, पुरुष की संपत्ति मात्र न हो कर उस की सहभागिनी है. वह घर और बाहर की हर परिधि में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए अपने परिवार से, अपने पति से सहकार की अपेक्षा रखती है.