2 जून को मथुरा के जवाहरबाग में उठी आग की भीषण लपटों ने एक बार फिर इस देश की धार्मिक, सामाजिक व्यवस्था के वीभत्स रूप को उजागर किया है. इस घटना से सदियों से हाशिए पर रही उन जातियों की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक ताकत पाने की लालसा व आक्रोश दिखाई दिया जो शोषित, वंचित रहते आए हैं. ये लोग वे हैं जो किसी बाबा, गुरु या नेता में अवतारी मसीहा का रूप देखते हैं और भेड़ों की तरह उन के द्वारा हांके जा रहे हैं.
धर्म, जाति की आड़ ले कर निचली, पिछड़ी जातियां रामवृक्ष यादव जैसे बाबा, नेताओं के ठगने के हथियार हैं. भारत की राजनीति में ही नहीं, धर्म का चोला धारण किए गुरुओं, बाबाओं के साम्राज्य भी जातियों के दम पर टिके हैं. देश में जातियों का हर जगह इस्तेमाल होता आया है. मथुरा मामले में यह बात फिर जाहिर हुई है. रामवृक्ष यादव जवाहरबाग में जमा लोगों को आजाद हिंद सरकार का सपना दिखा कर 1 रुपए में 60 लीटर डीजल, 40 लीटर पैट्रोल, 12 रुपए तोला सोना और गरीबों को कर्जमुक्ति दिलाने जैसे दावे करता था. यहां तक कि रामवृक्ष यादव स्वयंभू सम्राट के तौर पर दरबार लगाता. धीरेधीरे प्रशासन भी उस के आगे झुकने लगा क्योंकि राजनीतिक सत्ता की शह उसे मिल रही थी. जयगुरुदेव का उत्तराधिकारी बनने की कोशिश में नाकाम रहा रामवृक्ष यादव अपना अलग पंथ बनाने में सफल रहा क्योंकि हजारों लोग उस के पीछे जुट गए थे.
जवाहरबाग में किलेबंदी कर रहा रामवृक्ष यादव अकेला ही नहीं था. हरियाणा में कुछ दिनों पहले संत रामपाल भी सैकड़ों लोगों के साथ बरवाला में सतलोक आश्रम में रह रहा था. उस के खिलाफ भी पुलिस को बड़ी कार्यवाही करनी पड़ी थी. उस के आश्रम में भी बाकायदा हजारों लोगों के रहने, खानेपीने की व्यवस्था थी. यहां तक कि लाठियां, बंदूक जैसे हथियारों का जमावड़ा भी मिला. रामपाल भी लोगों को कष्ट निवारण के ख्वाब दिखाता था. इस तरह देश में जयगुरुदेव, गुरमीत रामरहीम, आसाराम, निरंकारी हरदेव बाबा, निर्मल बाबा जैसों का साम्राज्य चल रहा है. लाखों, करोड़ों लोग इन के पीछे भाग रहे हैं. खास बात यह है कि इन बाबाओं के पीछे निचली पिछड़ी जातियों के लोग हैं जिन्हें पूजापाठ, धार्मिक कर्मकांडों से हजारों साल दूर रखा गया था पर अब ये ही जातियां बढ़चढ़ कर उन्हीं धार्मिक पाखंडों में भाग ले रही हैं जो इन को नीचा दिखाती थीं.