‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की लड़ाई को पहचान दिलाने वाले कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के मद्देनजर बचपन बचाओ की मुहिम को अब और तेज करने की जरूरत है. केवल कुछ उद्योगधंधों में काम करने वाले बच्चों को वहां से हटा देने भर से बालश्रम खत्म होने वाला नहीं है. बालश्रम हमारे समाज में हर जगह है. यह सच है कि कु छ उद्योगधंधों में बालश्रम बड़ी संख्या में होता था. बचपन बचाओ आंदोलन की मुहिम के चलते बालश्रम कम हुआ है. लेकिन यह अभी खत्म नहीं हुआ है. बालश्रम को अगर समाज से दूर करना है तो पूरे समाज के विकास पर ध्यान देना होगा. बालश्रम कई बार परिवार की जरूरत भी बन जाता है. मांबाप खुद बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय मजदूरी करने भेजना ज्यादा पसंद करते हैं. इस की वजह उन की गरीबी और अशिक्षा है. नोबेल पुरस्कार मिलने से बचपन बचाओ की लड़ाई को विश्वस्तर पर पहचान हासिल हुई है. बालश्रम खत्म करने की दिशा में सरकार और समाज के साथ ही साथ बच्चों के मातापिता को भी आगे आना होगा. बालश्रम एक तरह की सामाजिक बुराई है. इस से बच्चों का ही नहीं, देश का विकास भी प्रभावित होता है. बालश्रम में बंधुआ मजदूरी सब से खराब हालत है, जहां बच्चों को जबरन काम पर लगाया जाता है और उन के स्वास्थ्य व शिक्षा का भी कोई इंतजाम नहीं होता.
बालश्रम की बात करते समय कई बार उन बच्चों की चिंता नहीं की जाती है जो धार्मिक जगहों पर भीख मांगने के लिए कई तरह के रूप रख कर काम करते हैं. कभी ये बच्चे भगवान बन जाते हैं तो कभी देवीदेवता का रूप रख लेते हैं.