यह वही दौर है जिस में सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ रही है. लोग स्वास्थ्य नियमों का पालन कर रहे हैं, कसरत कर रहे हैं. साफसफाई व स्वच्छता पर भी ध्यान दे रहे हैं और इन से ताल्लुक रखते उत्पादों का पहले से कहीं ज्यादा इस्तेमाल भी कर रहे हैं लेकिन ये सावधानियां बेफिक्री नहीं, एक झूठी तसल्ली भर देती हैं. वजह, हर चीज में मिलावट है जिस से बच पाना आसान नहीं. मिलावटखोरी कितने शबाब पर है, इस की गवाही विभिन्न एजेंसियों के आंकड़े भी देते हैं और सुप्रीम कोर्ट की यह तल्ख टिप्पणी भी कि दूध में मिलावट करने वालों को उम्रकैद की सजा होनी चाहिए.

कानूनी खामियों व जानकारियों के अभाव में मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति के शिकार आम लोगों की स्थिति मिलावटखोरों के सामने मेमनों सरीखी है जिस में बड़ी दिक्कत यह है कि मिलावट का खेल अब खेतों से ही शुरू होने लगा है जो फुटकर दुकानों से बड़ीबड़ी फैक्टरियों और फूड प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों तक पसरा हुआ है. रोज लाखों लोग मिलावटी खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल के चलते छोटीबड़ी बीमारियों का शिकार हो कर डाक्टरों के पास भागते हैं. अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में भरती हो कर महंगा इलाज कराते हैं और अगर ठीक हो गए तो फिर मिलावटखोरी का शिकार होने दोबारा वहीं जाने की तैयारी में जुट जाते हैं.

मिलावट आमतौर पर दिखती नहीं, समझ तब आती है जब पेट में मरोड़े उठती हैं. बिलाशक मिलावट लाइलाज मर्ज है और कानून भी इस के सामने बेबस है. सरकारी विभागों, खासतौर से खाद्य विभाग से किसी तरह की उम्मीद रखना फुजूल की बात है जिस के मुलाजिम मिलावटखोरों के हमदम हैं और लोगों की सेहत व जिंदगी से खिलवाड़ करने की शर्त पर घूस खाते हैं. मिलावट कभी नंगी आंखों से नहीं दिखती, इस की जांच के लिए कुछ रसायनों और साधारण उपकरणों की जरूरत होती है. अगर इन का इस्तेमाल घर में ही किया जाए तो एक हद तक इन से बचा जा सकता है.

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