‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते...’ जैसे जुमले कह कर स्त्री को मानसम्मान का प्रतीक मानने वाले कट्टरपंथी देश में आज स्त्री की पूजा होती है रेप से, एकतरफा प्यार में कैंची द्वारा गोदगोद कर उस की हत्या से, निर्भया की तरह मौत के बाद भी इंसाफ न मिलने से या फिर गुरमेहर की तरह अभिव्यक्ति की आजादी का दमन कर गालियां व रेप की धमकी दे कर. इस के बाद खुद को जगत गुरु कहा जाता है.
ये तो चंद मामले हैं जो सर्वविदित हैं जबकि आएदिन सुर्खियों में ऐसे मामले आते हैं जिन का सीधा संबंध नारी से होता है लेकिन पुरुषवादी मानसिकता, कट्टरतावादी धर्म पर चलता समाज उस के छींटे भी नारी पर ही डालता है और कहा जाता है कि ये सब होने की वजह युवतियों का घर से निकलना, छोटे कपड़े पहनना, पुरुषों संग मेलजोल बढ़ाना है. अगर ये सब बातें ही इन जघन्य अपराधों का कारण हैं तो छोटीछोटी बच्चियों के साथ बलात्कार के इतने सारे मामले क्यों प्रकाश में आते हैं? गांवों में जहां लड़कियां न तो पढ़ रही हैं और न छोटे कपड़े पहन रही हैं, वे क्यों वहां मर्दों की शिकार बनती हैं?
समाज में निरंतर बढ़ते अपराध का कारण भी हमारे धर्म की जड़ों में है जहां जन्म से ही लड़के के जन्म पर खुशी और लड़की होने पर शोक मनाया जाता है. बड़े होने पर दहेज हत्याएं, समाज में दकियानूसी सोच का उन्हें शिकार होना पड़ता है. इन्हीं कारणों के चलते एक और अपराध जन्म लेता है भ्रूण हत्या का. अगर परीक्षण कर पता चला कि गर्भ में लड़की है तो उसे वहीं मार दिया जाता है. इतने साल बाद भी हम समाज की कुरीतियों को बदल नहीं पाए, दहेज प्रथा, बाल विवाह, लड़कियों को कम शिक्षा दिलाना आदि कुरीतियां आज भी समाज में व्याप्त हैं. नारी को सदा धर्म में भोग की वस्तु माना गया और उसे पुरुष से कमतर आंका गया है. स्त्री निंदा में भी कसर नहीं छोड़ी गई, लेकिन जब हम समाज में यह भेदभाव देखते हैं तो भी आवाज नहीं उठाते, कारण यह भी है कि आवाज कैसे दबाई जाए सब को पता है.