हर मकर संक्रांति पर्व अपने पीछे छोड़ जाता है सुंदरवन के मैनग्रोव की तबाही. चक्रवाती तूफान और बरसात यानी प्राकृतिक आपदा किस रूप में आ सकती है, इस का पूर्वानुमान तो लगाना संभव है पर इस प्राकृतिक आपदा की तबाही से बचना नामुमकिन सा है. तमाम पूर्वानुमानों के बावजूद यह बंगाल की खाड़ी के करीब 2 जिलों उत्तर और दक्षिण परगना समेत बंगलादेश में तबाही मचाता है. हर साल बंगाल की खाड़ी से इस दौरान कम से कम 6 चक्रवाती तूफान उठते हैं. हालांकि ये तूफान महज कुछेक मिनटों के होते हैं पर मिनटों में ही बड़े पैमाने पर तबाही मचाते हैं.

25 मई, 2009 में आया आइला तूफान इस की एक बड़ी मिसाल है, जिस ने पश्चिम बंगाल और बंगलादेश के तटीय इलाकों में बड़े पैमाने पर कहर ढाया. पर्यावरण विशेषज्ञ और कलकत्ता विश्वविद्यालय के समुद्र व जीव विभाग के प्राध्यापक अमलेश चौधुरी की अगुआई में तत्कालीन सुंदरवन विकास परिषद द्वारा 1983-84 में वेणुवन नदी के द्वीप से 7 किलोमीटर इलाके में मैनग्रोव के पौधे लगाए गए थे. इस का उद्देश्य था मैनग्रोव के जरिए नदी बांध की सुरक्षा. 1984 में लगाए गए मैनग्रोव अब पूरी तरह से जंगल में तबदील हो गए थे. लेकिन इस साल के गंगासागर मेले के दौरान इस जंगल की बलि चढ़ा दी गई.

अमलेश चौधुरी का कहना है, ‘‘चक्रवाती तूफान और बाढ़ के लिहाज से इस साल इस क्षेत्र का समय कठिन होगा. गौरतलब है कि इस इलाके में गरमी के मौसम की शुरुआत में अकसर चक्रवाती तूफान आते हैं. हलकेफुलके चक्रवाती तूफान भी यहां बड़ी तबाही मचाया करते हैं.’’आइला तूफान ने पश्चिम बंगाल और बंगलादेश के खाड़ी के करीबी जिलों के भूगोल और मौसम के पैटर्न को ही बदल कर रख दिया है. आज तक वहां का जनजीवन अपने ढर्रे पर नहीं लौट पाया है. वहीं, गंगासागर मेले के मद्देनजर मैनग्रोव की अंधाधुंध कटाई को ले कर पर्यावरणविदों के माथे पर बल पड़ गए हैं. इस से जो तबाही हो रही है वह प्राकृतिक आपदा से ज्यादा है.

तीर्थयात्रा की मार

हर साल मकर संक्रांति के मौके पर गंगासागर मेला लगता है. साल दर साल तीर्थयात्रियों की भीड़ बढ़ रही है. तीर्थयात्रियों की सुविधा और पुराने जेटी पर लोगों का दबाव कम करने के लिए स्थानीय सागरद्वीप के करीब चेमागुड़ी पौइंट के वेणुवन में नई सड़क और जेटी के निर्माण किए गए. इस के लिए लगभग 100 मीटर से भी बड़े इलाके में, अधिक पैमाने पर मैनग्रोव को काटा गया.

नई जेटी और सड़क बनाने का जिम्मा गंगासागर बकखाली उन्नयन (विकास) परिषद का था. पर्यावरणविदों की आशंका के बारे में पूछे जाने पर परिषद के चेयरमैन बंकिम हाजरा ने माना कि सागरमेला के दौरान तीर्थयात्रियों की सुविधा के मद्देनजर मैनग्रोव के जंगलों का सफाया किया गया था. लेकिन जंगल काटने का फैसला तमाम स्तर पर बैठक और सहमति के बाद किया गया. हालांकि उन का यह भी कहना है कि बरसात के मौसम में नदी के कटाव को रोकने के लिए नदी के द्वीप में बड़े पैमाने पर मैनग्रोव के पौधे लगाए गए हैं. इन से नदी के बांध के लिए किसी तरह का खतरा पैदा नहीं होगा. इधर, दक्षिण चौबीस परगना जिला प्रशासन का कहना है कि हर साल गंगासागर में बढ़ते तीर्थयात्री मुश्किलें पेश कर रहे हैं. गंगासागर तक पहुंचने के रास्ते में चेमागुड़ी पौइंट, जो बंगाल की खाड़ी से बहुत करीब है, के पास मुड़ीगंगा नदी में जेटी है. लेकिन भाटा के दौरान इस में समस्या इसलिए पेश आती रही है क्योंकि तीर्थयात्रियों से भरा लौंच अकसर नदी की गाद में अटक जाता है. इस के कारण जेटी में भीड़ बढ़ती जाती है. इस से बड़ी दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. इस कारण वेणुवन में नए जेटी के निर्माण का फैसला लिया गया.

गौरतलब है कि वेणुवन में नदी की गहराई अधिक है, जिस के कारण वहां यात्री लौंच चलाने में परेशानी नहीं पेश आएगी, यही सोच कर प्रशासन ने वहां नई जेटी का निर्माण किया. इस के अलावा जेटी से जोड़ कर 60 फुट चौड़ी सड़क का भी निर्माण किया गया. जेटी और सड़क निर्माण के लिए बड़ी तादाद में मैनग्रोव के जंगल का सफाया किया गया.

प्रकृति से खिलवाड़

चिंता इस बात की है कि यह क्षेत्र विकसित प्रजाति के मैनग्रोव का है, जिस की अंधाधुंध कटाई की गई. इस को ले कर पर्यावरणविदों में बड़ी नाराजगी है. मैनग्रोव के ये जंगल बरसात के मौसम में बाढ़ के कारण नदी के कटाव को रोकने में बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं. पर्यावरणविदों को आशंका है कि इतने बड़े पैमाने पर मैनग्रोव को काटे जाने से सागरद्वीप के पर्यावरण संतुलन पर जरूर आंच आएगी. इस का नतीजा इस बार बरसात के मौसम में साफ नजर आएगा. इस मेले का प्रचार बहुत बड़े पैमाने पर होता है. जत्थों के साथ पंडेपुजारी भक्तों के खर्च पर आते हैं और अपनी जेबें भरते हैं. भक्तों के चढ़ावे और उन की खरीदारी में अफसरों के साथ पंडों का भी हिस्सा होता है. इसीलिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ की बात कोई सुनना ही नहीं चाहता.

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