अधिकारियों, उद्योगपतियों और धनपतियों की जिंदगी में सेवादारों का बड़ा महत्त्व होता है, खासकर ड्राइवर का. लेकिन ऐसे कम ही लोग होंगे जो अपने सेवादारों के बारे में यह सोचते होंगे कि उन के बीच कोई भावनात्मक रिश्ता भी है. ज्यादातर लोग तो यही सोचते हैं कि वे लोग जो भी सेवा करते हैं, उस के बदले उन्हें पैसे मिलते हैं. लेकिन यह सोच सही नहीं है.

महाराष्ट्र के जिला अकोला के कलेक्टर जी. श्रीकांत ने जो किया, वह अपने आप में मिसाल बन गया है. कलेक्टर जिले का सर्वेसर्वा होता है. वह जो कह दे, उसे ही कानून मान लिया जाता है. कह सकते हैं जिले में कलेक्टर ही सब से ताकतवर होता है. कई कलेक्टर अपने पद की गरिमा के हिसाब से कड़क स्वभाव के होते हैं. लेकिन जी. श्रीकांत के साथ ऐसा नहीं है.

कलेक्टर जी. श्रीकांत के ड्राइवर दिगंबर थाक को 4 नवंबर को रिटायर होना था. अपने 35 साल के कैरियर में दिगंबर 19 कलेक्टरों के ड्राइवर रह चुके थे. उस दिन औफिस में उन्हें विदाई दी जानी थी. उस दिन दिगंबर कलेक्टर साहब की कोठी पर पहुंचा तो साहब की गाड़ी सजीधजी खड़ी थी. कार पर गुलाब के फूल लगा कर सजाया गया था.

दिगंबर को कलेक्टर साहब के यहां किसी आयोजन की कोई जानकारी नहीं थी. थोड़ी देर बाद कलेक्टर जी. श्रीकांत औफिस जाने के लिए बाहर आए तो दिगंबर थाप ने कार का पीछे का दरवाजा खोला. लेकिन जी. श्रीकांत आगे का दरवाजा खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोले, ‘‘आज तुम पीछे बैठो, गाड़ी हम चलाएंगे.’’

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