Constitution : कांग्रेस के लिए सेक्युलरिज्म का मतलब कुछ और है तो बीजेपी अपने तरीके से सेक्युलरिज्म की व्याख्या करती है. राजनीति के पक्षविपक्ष के खेल में आम जनता सेक्युलरिज्म को ले कर हमेशा भ्रमित ही रहता है. क्या है सेक्युलरिज्म की वास्तविकता? क्या यह भारत जैसे देश के लिए जरूरी है?
जब भी "सेक्युलरिज्म" की बात होती है कुछ लोगों के कान खड़े हो जाते हैं. तमाम राजनैतिक दल सेक्युलरिज्म शब्द को अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं. दिनरात चलते टेलीविजन डिबेट्स ने तो सेक्युलरिज्म शब्द की गरिमा को लगभग नष्ट ही कर दिया है. यही कारण है कि कुछ लोग सेक्युलर होने को सिक्कुलर होना कहने लगे हैं. हिंदू धर्मगुरुओं को तो सेक्युलरिज्म से नफरत है ही सत्ताधारी दल की विचारधारा में भी सेक्युलरिज्म के लिए कोई जगह नहीं है.
सेक्युलरिज्म का विरोध कौन करता है?
बीजेपी के कई नेता कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल में लिखे गए "सेक्युलर" शब्द को हटाने की बात करते हैं. पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल से "सेक्युलर" शब्द को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. याचिका में कहा गया "1976 में 42वें संशोधन के जरिए संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द जोड़ा गया और इस बदलाव पर संसद में कभी बहस नहीं हुई इस वजह से "सेक्युलर" शब्द को संविधान की प्रस्तावना से हटा देना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट में 20 अक्टूबर 2024 को कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल से 'सेक्युलर' शब्द हटाने की मांग वाली इस याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा "इस अदालत ने कई फैसलों में माना है कि सेक्युलरिज्म हमेशा से संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रही है. अगर संविधान में समानता और बंधुत्व शब्द का इस्तेमाल किया गया है तो यह स्पष्ट संकेत है कि सेक्युलरिज्म संविधान की मुख्य विशेषता है."
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