कम समय में, कम परिश्रम कर के अधिक लाभ पाने की इंसान की कमजोरी को ध्यान में रखते हुए हिंदू धर्माचार्यों ने बहुत सी ऐसी व्यवस्थाएं बना रखी हैं कि जिन से बिना कोई परिश्रम किए मुफ्त में भक्त को सबकुछ मिलने की आस रहे और पुजारियों को सबकुछ मिलता रहे. मंगलवार को हनुमान से जोड़ कर मंगलवार व्रतकथा कही गई है.

हनुमान के संबंध में विभिन्न धर्मग्रंथों से जो जानकारी मिलती है, उस से हनुमान का जीवन व व्यक्तित्व सुस्पष्ट होने की अपेक्षा और अधिक उलझ कर रह जाता है. धर्मग्रंथों में लिखा है कि केसरी की पत्नी से एक अन्य देवता पवनदेव ने पुत्र उत्पन्न किया. हनुमान के जन्म के संबंध में यह जानकारी परोक्ष व्यभिचार है. यह आज के सामाजिक व नैतिक मानकों के खिलाफ भी है.

‘हनुमान राम के समकालीन माने जाते हैं. रामायण में हनुमान को वानर के रूप में चित्रित किया गया है. उन की पूंछ है. उन के लिए शाखामृग, कपि, हरि, प्लंवगम आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है. इन शब्दों का अर्थ है वानर. पर ये मानव थे या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है क्योंकि इन्हीं वानर को भरत ने बहुत से पदार्थों, गायें, गांवों के साथसाथ 16 स्त्रियां भी उपहारस्वरूप भेंट की-

‘‘गवांशत सरस्रं च ग्रामाणां च शतं परम्, सकुंडला शुभाचारा भार्या: कन्यास्तुषोडश’’

(उत्तरकांड)

अर्थात भरत ने हनुमान को एक लाख गायें, 100 उत्तम गांव तथा 16 कन्याएं पत्नी के रूप में प्रदान  कीं.

यदि हनुमान वास्तव में वानर थे तो भरत द्वारा दिए गए उपहारों की उन के लिए क्या उपयोगिता रह जाती है. ऐसे में, वे रामलक्ष्मण आदि के साथ वार्त्ता किस भाषा में और कैसे करते होंगे, जबकि पूंछ उन्हें मनुष्य होने से रोकती है.

ऐसे देव से जोड़ कर यह कथा लिखी गई. यह एक गलती थी. सदियों तक इसे दोहराया गया. यह दूसरी गलती थी. तीसरी गलती है आज भी इस से चिपके रहना.

धन व यश की प्राप्ति : इस कथा को ज्यादा से ज्यादा लोग अपनाएं, इस के लिए प्रलोभन देते हुए इस कथा में कहा गया है कि जो भी कोई स्त्री/पुरुष मंगलवार को नियमपूर्वक सुबह उठ कर पूरे विधिविधान से 21 सप्ताह मंगलवार व्रत करता हुआ मंगलवार व्रतकथा कहता अथवा दानदक्षिणा अदा कर कथावाचकों से सुनता है, उसे धन के साथसाथ यश की भी प्राप्ति होती है.

धन व यश की प्राप्ति कठोर परिश्रम व लगन से संभव हो पाती है. समुद्र में छिपे रत्नों को पाने में वही व्यक्ति सफल हो पाता है जो गहरे पानी में कूद जाने की क्षमता रखता है.

मानसिक कष्टों से मुक्ति : व्यापार में नुकसान या कारोबार का ठीक न बैठना, कारोबार का न होना या असफल रहना व नौकरी के अभाव में और पारिवारिक तनाव के चलते व्यक्ति का मानसिक रूप से परेशान होना स्वाभाविक है. यदि ऐसी स्थिति लंबे समय तक चलती है तो व्यक्ति के अवसाद यानी डिप्रैशन में चले जाने से इनकार नहीं किया जा सकता व उस का मानसिक रूप से दुखी होना स्वाभाविक है. ऐसे व्यक्ति इस कथा की उपेक्षा कर सकते हैं. ऐसे लोग इस कथा की उपेक्षा न करें बल्कि सहर्ष श्रद्धा व विश्वास के साथ इस कथा को स्वीकार करें, इसलिए इस में कहा गया है कि जो भी कोई मौन रह कर इस व्रतकथा को कहता या कथावाचकों से सुनता है, उस के सभी मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं.

स्वर्ग की प्राप्ति : इस व्रत को करने और कथा को कहने या कथावाचकों से सुनने के परिणामस्वरूप हमें जो फल प्राप्त होते हैं, उन का हमारे जीवन से सीधा संबंध है. वैसे हम हिंदू मोहमाया के त्याग की बड़ीबड़ी बातें करने वाले हैं तो फिर मरने के बाद स्वर्ग की कामना क्यों करते हैं, स्वर्ग में एडवांस बुकिंग की गारंटी क्यों चाहते हैं?

स्वर्ग, भवसागर, मोक्ष आदि ये सब मात्र कल्पनाओं के अलावा कुछ भी नहीं. जब मानव शरीर का अंत हो जाता है तो उसे अग्नि में जला दिया जाता है. तब फिर स्वर्ग में कुछ नहीं जा सकता.

दूसरी तरफ धर्मग्रंथों व विभिन्न धार्मिक कथाओं में बारबार लिखा गया है कि स्वर्ग में रहने वाले हमारे देवता तो परस्पर वैमनस्य, ईर्ष्या, काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि मानवीय विकारों से पृथ्वीवासियों की अपेक्षा कहीं अधिक ग्रसित हैं व नैतिक दृष्टि से पतित रहे हैं. अपना सिंहासन छिन जाने के भय से इंद्र विभिन्न अनैतिक गतिविधियों में संलिप्त रहे. यही नहीं, उन्होंने गौतम ऋ षि का रूप धारण कर अहल्या से छल किया.

मंगलवार व्रतकथा के अंतर्गत

2 कथाएं मिलती हैं. एक कथा के अनुसार, एक निसंतान वृद्ध वेद प्राग नामक ब्राह्मण ने किसी दूसरे ब्राह्मण से कन्या ले कर उस का पालनपोषण किया. पूर्व जन्म (?) में उस कन्या ने मंगलवार के नियमपूर्वक व्रत किए व विधिविधान से मंगलवार व्रतकथा सुनी थी. इसी कारण उस के अंगों से सोना निकलता था. उस कन्या का सोमेश्वर से विवाह हुआ. चोरों ने उस के पति को मार दिया. तब उस ने अपने पति के साथ सती होना चाहा तो मंगलदेव ने प्रकट हो कर उसे ऐसा करने से रोकते हुए उस के पति को अजरअमर होने का वरदान दे दिया.

दूसरी कथा, एक मंगलभक्त वृद्धा से संबंधित है, जो मंगल के दिन रसोई को गोबर आदि से नहीं लीपती. मंगलदेव उस की भक्ति की परीक्षा के लिए साधु के रूप में प्रकट हो कर उस बुढि़या से रसोई को गोबर आदि से लीपने के लिए कहते हैं. वह बुढि़या मंगलवार को चौका लीपने की अपेक्षा अपने पुत्र की पीठ पर खाना बनाने की इजाजत दे देती है. साधु प्रसन्न हो जाता है. बालक की पीठ पर आग जला कर खाना बनाने के बाद भी वह जीवित रहता है. इन कथाओं से साफ है कि मंगलवार की कथा कितनी अतार्किक है.

कथा में बताया गया है कि  मंगलिया को उस की मां घर में आए एक साधु को इसलिए सौंप देती है ताकि वह साधु उस की पीठ पर आग जला कर खाना बना सके.

यानी साधु रूप में कोई भी व्यक्ति घर में आ कर आप से कुछ भी मांगे तो आप उसे वह सब बिना कोई किंतुपरंतु किए सौंप दें? वाह? क्या चाल है. क्या पता, जो साधु सामने खड़ा है वह किसी देवता का रूप हो या धोखेबाज का.

इन कथाओं से ही स्त्रियां अपनी संतान, पति व घरपरिवार की उपेक्षा कर के साधुसंतों की सेवा करती हैं और तथाकथित पुण्य के लोभ में पड़ कर इज्जत व बेटेबेटियों तक की बलि चढ़ा देने में संकोच नहीं करतीं.

जब मंगलवार का व्रत कर के विधिपूर्वक मंगलवार व्रतकथा सुनने के परिणामस्वरूप अंगों से सोना निकल सकता है तो भला कोई कठोर परिश्रम करने की क्यों सोचेगा. स्वाभाविक है कि वह मंगलवार व्रत कर के विधिपूर्वक मंगलवार व्रतकथा सुनना ही अच्छा समझेगा.

ऐसी कथाओं के प्रभाव के कारण ही हमारा बौद्धिक व मानसिक विकास और मौलिक चिंतन सदियों से अवरुद्ध हो रहा है.

निश्चित कर्मफल की मान्यता : हिंदू पंडेपुरोहितों ने अपनी दैनिक दिनचर्या को सुचारु रूप से चलाने व जनसाधारण को लूटने के उद्देश्य से इन कथाओं में जिन बातों का समावेश किया है, वे उन के ही बनाए हुए सिद्धांतों का विरोध करती हैं.

यदि कर्मों का फल मिलना पहले से ही निश्चित है तो पूजापाठ, वंदना आदि में समय नष्ट करने का क्या औचित्य? मंगलवार व्रत कर के मंगलवार व्रतकथा कहनेसुनने से क्या लाभ? और यदि इस व्रत को कर के ‘मंगलवार व्रतकथा’ को कहने अथवा कथा सुनने से इस कथा में कहे अनुसार फल प्राप्त हो सकता है, तब फिर हिंदू धर्म की निश्चित कर्मफल की मान्यता निराधार हो जाती है, क्योंकि कथा से तो मनचाहा फल प्राप्त किया जा सकता है. तब फिर पहले से ही निश्चित कर्मफल कैसा…

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...