सयुंक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने इस रिपोर्ट में जिन लोगों को शामिल किया,उनमें से 90 फीसदी ने कम से कम एक लैंगिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने की बात स्वीकार की. यहलैंगिक पूर्वाग्रह पुरुषों के साथ महिलाओं के लिए भी सामान्य बात थी.

मिसाल के तौर पर, दुनिया की 69 प्रतिशत जनसंख्या को अभी भी लगता है कि पुरुष हीमहिलाओं से ज्यादा अच्छे नेता बनेंगे.हालांकि यह कोई नई बात नहीं, तभी तो दुनियाभर में महिला नेताओं का सूखा पड़ा हुआ है. इसी तरह लगभग 46 प्रतिशत लोगों को लगता है कि पुरुषों का नौकरी पर ज्यादा अधिकार है, वहीं लगभग इतने ही सोचते हैं कि पुरुष बेहतर कारोबारी होते हैं.इसी रिपोर्ट में एकचौथाई जनसंख्या पुरुषों का पत्नी पर हाथ उठाना जायज मानती है.

सर्वे में पाया गया कि जिन 57 देशों में महिलाएं, पुरुषों से ज्यादा पढ़ीलिखी हैं, वहां भी आमदनी में 39 प्रतिशत का औसत अंतर है. यानी, भले महिलाएं पढ़लिख जा रही हैं लेकिन उन के लिए कमाने के अवसर सीमित हैं.

हेरिबर्टो टापिया, यूएनडीपी में शोध और रणनीतिक सामरिक साझेदारी की सलाहकार और रिपोर्ट की सहलेखक, बताती हैं कि समय के साथ जितना सुधार हुआ है, वह काफी निराशाजनक है.

इस रिपोर्ट में ऐसी कोई एक भी बातनहीं है जो आम जानकारी से बाहर की हो. मसलन, हमारा समाज महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह रखता है, यह घरघर की बात है. सवाल यह कि ये पूर्वाग्रह रखे क्यों जा रहे हैं?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए यदि अपनेअपने धर्मशास्त्रों को उठा लें तो गुरेज नहीं होगा, क्योंकि यहीं तो लैंगिग पूर्वाग्रहों को आकार और आधार देने का सुनियोजित काम किया गया. जो पुरुष समझते आ रहे हैं कि औरतों पर हाथ उठाना सही है और स्त्रियां इसे पति का प्रसाद समझ खा रही हैंवेइन्हीं शास्त्रों की देन हैंजिन में बताया गया है कि महिलाएं ताड़न की अधिकारी हैं, उन्हें घरों से बाहर कदम नहीं रखना चाहिए, न शिक्षा से उन का वास्ता है न अपने लिए खुल कर हंसने से.

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