राजस्थान का कोटा शहर शिक्षागरी के रूप में विख्यात है. इस ने देश को एक से बढ़ कर एक
डाक्टर्स और इंजीनियर्स दिए हैं. यह मैडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए एक बड़ा
गढ़ है. कोटा में सफलता का स्ट्राइक रेट 30 फीसदी से ऊपर रहता है और इंजीनियरिंग व
मैडिकल की प्रतियोगी परीक्षाओं में टौप 10 में से कम से कम 5 छात्र कोटा के ही रहते हैं
लेकिन कोटा से जुड़ा एक और सच भी है जो बेहद भयावह है और हतोत्साहित करने वाला
भी. कोटा में एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो नाकाम हो जाते हैं और उन में से कुछ
ऐसे होते हैं जो अपनी असफलता बरदाश्त नहीं कर पाते व आत्महत्या जैसा घातक कदम
उठा लेते हैं.

कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा
रहा है और इसीलिए यह शहर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है. यहां शिक्षा सीखने
का नहीं, सपनों के कारोबार का जरिया बन गई है.

कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं. आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग
व मैडिकल कालेजों में पढ़ने वाले छात्र बड़ीबड़ी कंपनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोड़ कर
यहां कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने आ रहे हैं, क्योंकि यहां तनख्वाह कई गुना ज्यादा है. अकेले
कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी स्टूडैंट छात्रों को पढ़ा रहे हैं.

एक सर्वे के मुताबिक, ‘कोटा कोचिंग सुपर मार्केट’ का सालाना टर्नओवर 1,800 करोड़ रुपए
का है. कोचिंग सैंटर्स सरकार को अनुमानित सालाना 100 करोड़ रुपए से अधिक टैक्स के

तौर पर देते हैं. देश के तमाम नामीगिरामी संस्थानों से ले कर छोटेमोटे 200 कोचिंग संस्थान
यहां चल रहे हैं, जो प्रवेशपरीक्षा की तैयारी करा रहे हैं.

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