Religion : परदादा ने बेगारी ढोई. दादा ने बोझा ढोया. बाप ईंट ढोता है और बेटा कांवड़ ढोने में लगा है. शूद्रों के लिए यह नई तरह की गुलामी का आगाज है.

पंडिताइन परेशान थी. पंडिताइन के घर के बाहर 5 घंटों से डीजे चल रहा था. डीजे के तेज शोर में पंडिताइन का बड़ा लड़का डिस्टर्ब हो रहा था. पंडिताइन से रहा नहीं गया तो वो बाहर निकली और सीधे राम लखन जाटव के दरवाजे पर पहुंच गई. पंडिताइन को अपने दरवाजे पर देख कर राम लखन जाटव को लगा कि वो उन के बेटे की कांवड़ यात्रा के लिए उन्हें अप्रिशिएट करने आई है लेकिन पंडिताइन ने चिल्लाते हुए कहा, ‘तुम्हारा बेटा कांवड़ लेने जा रहा है तो इस में मेरे बेटे की पढ़ाई का नुकसान क्यों कर रहे हो?’

यही इस कांवड़ यात्रा का सब से कड़वा सच है. कुछ अपवादों को छोड़ कर इस यात्रा में सिर्फ और सिर्फ शूद्रों के बच्चे ही शामिल होते हैं. मजदूर बाप के वो बेटे जिन्हे बोझा ढोने की आदत है. जिन का बाप ईंट ढोता है उन का बेटा कुछ न कुछ तो ढोएगा ही. कांवड़ ही सही.

अभी हाल ही में बरेली के शिक्षक डा. रजनीश गंगवार की लिखी एक कविता सुर्खियों में आई. कविता की पंक्तियां थीं. "कांवड़ लेने मत जाना, तुम ज्ञान के दीप जलाना" और "मानवता की सेवा कर के, तुम सच्चे मानव बन जाना" इस तार्किक कविता ने पाखंडवादी सिस्टम की चूलें हिला कर रख दी. धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और डा. रजनीश गंगवार पर एफआईआर दर्ज हो गई.

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