बात कोविड के समय की है. सोशल मीडिया पर बहुत सारे शोक संदेश लोग दे रहे थे. मोहनलाल नामक एक व्यक्ति रेलवे से रिटायर हुए थे. उन के बेटे मदन ने अपनी फेसबुक पर उन की फोटो पोस्ट की जिस में उन के गले में फूलमाला पड़ी हुई थी. बेटे मदन ने लिखा पिताजी रिटायर हो गए. सफलतापूर्वक नौकरी की. उस के नीचे कमैंट में कई लोगों ने शोक संदेश लिख दिए. कुछ ने लाइक भी कर दिया.

शोक संदेश देने में जल्दी का कोई महत्त्व समझ नहीं आया. कई बार छोटेबड़े सभी के साथ ऐसा हो गया कि वह अस्पताल में भरती है. किसी ने उस के मरने की अफवाह उड़ा दी. ऐेसे में बिना सच का पता किए लोगों ने शोक संदेश देने शुरू कर दिए. बाद में पता लगा कि वह इंसान तो अभी जिंदा है. पहली बात बिना किसी सच को जाने ऐसे संदेश देना बहुत ही गलत बात होती है. इस से बचना चाहिए.

शोक संदेश में एक और चलन बहुत तेजी से बढ़ी है. महल्ले, अपार्टमैंट, सोसाइटी, घरपरिवार के ऐसे वाट्सऐप ग्रुप हो गए हैं जिन में लोग आपस में संदेश देते रहते हैं. इन में शोक संदेश भी दिए जाते हैं. इस ग्रुप में एक तो वह खुद नहीं होता जिस को शोक संदेश दिया गया है. आखिर वह संदेश किस काम का होता है ?

शोक संदेश में सब से प्रमुख बात यह होती है कि इसे भेजने की संख्या सैकड़ोंहजारों में होती है. जिस के घर शोक होता है उस के घर मिलने कितने लोग जाते हैं ? अंतिम संस्कार में कितने लोग हिस्सा लेते हैं? यह सख्या उंगली पर गिनने भर की होती है. आगरा की रहने वाली कविता सोशल मीडिया की इंफ्लुएंसर थी. 5 लाख उस के फौलोअर्स थे. एक दुर्घटना में उस की मौत हो गई. पोस्टमार्टम के बाद उस की बौडी के पास केवल उस के पिता और मां ही थे.

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