Mahabodhi Temple Controversy : लड़ाई या विवाद सिर्फ इतना सा है कि ब्राह्मण पंडेपुजारी महाबोधि मंदिर से अपनी दुकान समेटना नहीं चाहते क्योंकि यह मंदिर उन के लिए दुधारू गाय सरीखा है. दूसरी तरफ बौद्ध भिक्षु इस मंदिर में पिंडदान और दूसरे कर्मकांडों से व्यथित हैं. मंदिर उन का है लेकिन पूर्ण आधिपत्य उन का नहीं. ऐसे में उन का विरोध प्रदर्शन स्वाभाविक है जिस के भविष्य में विस्फोटक या उग्र हो जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
वक्फ मामले में दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान 16 अप्रैल को उस वक्त दिलचस्प मोड़ आया था जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने बेहद तल्ख और साफ लहजे में यह पूछा था कि क्या आप कह रहे हैं कि अब से आप हिंदुओं के ट्रस्ट या दान प्रबंधन करने वाले बोर्ड में मुसलिमों को शामिल करने की अनुमति देंगे, साफसाफ बताइए. इस अप्रत्याशित सवाल पर सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सौलीसिटर जनरल तुषार मेहता कुछ देर के लिए सकपकाए, फिर संभल कर बोले थे कि संपत्ति के प्रबंधन और धार्मिक मामलों से जुड़े मामलों में फर्क करना होगा.
जाहिर है, इस दलील में कोई दम नहीं था लेकिन, हां, मेहता अपने तजरबे के दम पर बात को एक खुबसूरत से मोड़ पर ले जाने में कामयाब रहे थे पर वह मोड़ इस अफसाने का अंजाम नहीं था. इसलिए 17 अप्रैल को इस मामले को उबाऊ ढंग से भी देख और सुन रहे लोगों ने सब से बड़ी अदालत के इस सवाल का जवाब अपनेअपने ढंग से अपनेआप ही को देने की कोशिश की थी लेकिन वे भी खी झ और लड़खड़ा कर रह गए थे.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन