अमेरिका सहित सारे पश्चिमी देशों में डिग्निटी औफ लेबर यानी श्रम की प्रतिष्ठा है. यहां किसी भी काम को छोटा नहीं माना जाता है. ज्यादातर काम मशीनों द्वारा संपन्न होते हैं. फिर भी कुछ काम ऐसे हैं जिन का हाथों द्वारा श्रम किए बिना संपन्न होना संभव नहीं है. ऐसे काम करने वालों की यहां अच्छी मांग है लेकिन ये महंगे बहुत हैं.

भारत में हमें महरी, धोबी, माली, कुक आदि आसानी से मिल जाते हैं. अमेरिका में ज्यादातर परिवारों में पतिपत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं. भारतीय परिवारों में भी यही स्थिति है. ऐसे लोगों को अपने घर की सफाई के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. यहां हम कामवाली, जिसे मेड कहते हैं की चर्चा कर रहे हैं.

भारत की तरह रोज कामवाली को बुलाना यहां असंभव है. वर्षों पहले मैं पहली बार अमेरिका आई तो बड़ा अटपटा सा लगता था. बुढ़ापे में भी खाना खुद बनाना होता है. बरतन तो डिशवाशर में धुल कर सुखा दिए जाते हैं, पर मशीन में डालने के पहले उन्हें पानी से हाथों से साफ करना होता है. उसी तरह गंदे कपड़े वाश्ंिगमशीन में धुल जाते हैं और ड्रायर उन्हें पूरी तरह सुखा देता है. पर साधारण सूती कपड़ों का तो बुरा हाल हो जाता है ड्रायर में. यहां तक कि सिंथैटिक साडि़यों को इतनी बुरी तरह मरोड़ देता है कि उन्हें सीधा कर तह करना बड़ी बात है.

मैं यहां कैलिफोर्निया के सिलिकौन वैली, जो बे एरिया भी कहलाता है, आई थी. दुनिया की मशहूर सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां यहीं स्थित हैं. यहां आने पर मैं ने देखा बड़ीबड़ी गाडि़यों पर बड़ेबड़े अक्षरों में मेड लिखा होता और उस में एक या 2-4 लड़की या औरत होती थीं. उन की कार पर उन के फोन नंबर और ईमेल लिखे होते थे. मैं ने एक का नंबर नोट कर लिया था. मैं ने बेटे से कहा, ‘‘मैं बूढ़ी हो चली हूं, डोमैस्टिक हैल्प तो लेनी ही होगी.’’ बेटे ने कहा, ‘‘मैं उसे बुला कर काम के लिए बोल देता हूं. मगर ध्यान रहे ज्यादा से ज्यादा सप्ताह में एक दिन बुला सकता हूं और यह भी काफी महंगा है. आप खुद देख लेना.’’

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