सरकारी विभागों को जनता के प्रति जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिए प्रस्तावित विधेयक सिटिजंस चार्टर व्यावहारिक तौर पर कितना कारगर होगा, कहना मुश्किल है क्योंकि अरसे से भ्रष्टाचार और कामचोरी की आदी हो चुकी लालफीताशाही को खुद पर अंकुश कभी गवारा नहीं होगा. बहरहाल, क्याक्या है सिटिजंस चार्टर में, बता रहे हैं शाहिद ए चौधरी.
हालांकि यूपीए-2 की मौैजूदा सरकार ने अब तक लोकपाल कानून नहीं बनाया है लेकिन मार्च 2013 के दूसरे सप्ताह में उस के मंत्रिमंडल ने ‘द राइट औफ सिटिजंस फौर टाइमबाउंड डिलीवरी औफ गुड्स ऐंड सर्विसेज ऐंड रिड्रैसल औफ देयर ग्रीवैंसिस बिल 2011’ को मंजूरी दे दी है. इस विधेयक के तहत नागरिकों को निश्चित अवधि के दौरान सरकार से अपने काम कराने व जन सेवाएं हासिल करने का अधिकार होगा. इस के अलावा उन की शिकायतों का भी निर्धारित समयसीमा में निवारण किया जाएगा. इसलिए इस विधेयक को अधिक पारदर्शी व जवाबदेह प्रशासन के संदर्भ में मील का पत्थर माना जा रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक कानून बनने के बाद न सिर्फ समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक्षम रहेगा बल्कि इस के जरिए आरटीआई का असली मकसद भी पूरा हो सकता है. साथ ही, इस से सरकार का कुछ बोझ कम भी हो सकता है.
पहले आरटीआई और अब इस नए विधेयक के जरिए जो व्यवस्था विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है वह भले ही परफैक्ट न हो पाए लेकिन इन के जरिए सरकार जनसमीक्षा के लिए खुल जाती है, इसलिए उसे मजबूरन अपने विभागों को अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बनाना होगा. साथ ही, इस प्रक्रिया से यह उम्मीद भी की जा सकती है कि जो भ्रष्टाचार आम आदमी को दैनिक जीवन में प्रभावित करता है उस पर भी किसी हद तक अंकुश लग सकेगा. बहरहाल, इस नए विधेयक की संभावित सफलता का अंदाजा लगाने से पहले यह जानना जरूरी है कि जो राज्य इस किस्म का कानून पहले से ही गठित कर चुके हैं उन में इस से जनता को क्या लाभ हासिल हो सका है. गौरतलब है कि पूर्व में दिल्ली, राजस्थान व मध्य प्रदेश में ‘जनसेवा डिलीवरी व शिकायती कानून’ बनाया जा चुका है.
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