Banking Law: हमारे देश की सब से बड़ी विडंबना यह है कि पूरा सिस्टम कोर्ट पर निर्भर होता जा रहा है. हमारी न्याय व्यवस्था की सब से बड़ी खासियत यह है कि जब कोई उस के पास पहुंच जाता है तो उस की बात को सुनती है और जरूरत पड़ने पर कानून के अनुसार उस की व्याख्या भी करती है. इस का परिणाम यह हुआ कि जो काम दूसरी संस्थाओं को करना चाहिए उस के लिए भी लोग सुप्रीम कोर्ट तक आ जाते हैं. इस तरह का एक काम है चैक बांउस होने के बाद पैसों की वापसी का. यह काम बैंक या ज्यादा से ज्यादा जिलों में बनी अदालतों में हो जाना चाहिए. यह मसले भी सुप्रीम कोर्ट तक आने लगे हैं.
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट यानी परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अनुसार अगर कोई चैक बाउंस हो जाए तो प्राप्तकर्ता यानि वह व्यक्ति जिसे चैक दिया गया था, बैंक से चैक वापसी मेमो प्राप्त करने के बाद चैक जारीकर्ता यानी चैक काटने वाले व्यक्ति, को कानूनी नोटिस भेज सकता है. इस नोटिस में भुगतान के लिए 15 दिनों का समय दिया जाता है. यदि 15 दिनों के बाद भी भुगतान नहीं मिलता है, तो प्राप्तकर्ता को मजिस्ट्रेट के पास नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करानी होगी. यह एक दंडनीय अपराध है जिस के लिए जारीकर्ता को जुर्माना या जेल की सजा हो सकती है.
पूरे देश में इस तरह के मामले बढ़ गए. कई मामले सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचने लगे. सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2022 में अपने आदेश में एक पायलट प्रोग्राम बनाने को कहा था. जिस के तहत पांच राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों की सहायता से 25 विशेष अदालतें गठित करने का निर्देश दिया गया था. इन का काम चैक बाउंस से होने वाले विवादों को हल करने का था जिस से यह काम जल्दी हो जाए. मामले कोर्ट पर बोझ न बने जिस से दूसरे जरूरी मुकदमों को निपटाने का समय मिल सके.
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