अकेलेपन से दूर भीड़ सभी को अच्छी लगती है. हर कोई भीड़ से घिरा रहना चाहता है क्योंकि भीड़ जीवन का हिस्सा है और भीड़ हम से आप से ही बनती है. लेकिन भीड़ के अनेक चेहरे होते हैं. जीवन में भीड़ के चेहरे को पहचान कर कैसे करें उस का सामना, बता रही हैं अंजली गुप्ता.

भीड़ की परेशानियों से हम सभी वाकिफ हैं. यहां तक कि स्कूल में पढ़ने वाले छोटेछोटे बच्चे भी भीड़ की पीड़ा को महसूस करते हैं जब उन्हें बस में धक्के खाने पड़ते हैं. मातापिता के लिए यह भीड़ तब और कष्टदायक हो जाती है जब उन्हें अपने बच्चे के लिए स्कूलकालेजों में दाखिला दिलाना होता है.

परिवार नियोजन के नारे ‘हम दो हमारा एक’ के बाद भी हर जगह भीड़ बढ़ती ही जा रही है. आवास के लिए, राशन के लिए, नौकरी के लिए, दाखिले के लिए, रेलवे आरक्षण के लिए, डाकघर में, बैंक में, दफ्तर में, सड़क पर, बस में, पार्क में जहां देखिए हर जगह भीड़ से परेशान लोग हैं और भीड़ में रहने को मजबूर भी हैं. वैसे अब तो यह भीड़ एक तरह से हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है.

यहां हम बात करेंगे उस भीड़ की जिस का सामना हमें अचानक करना पड़ता है या जो भीड़ अवसर विशेष पर जमा होती है और फिर बरसाती बादल की तरह छंट जाती है, जैसे मेले, खेलतमाशे की भीड़, आक्रामक भीड़, उग्र भीड़, पिक्चर हौल की भीड़, रेलवे प्लेटफौर्म की भीड़ आदि.

डरें नहीं मुकाबला करें

उग्र भीड़ के पास सोचनेसमझने की शक्ति नहीं रहती. वह ‘करो या मरो’ वाली स्थिति में रहती है. चूंकि इस भीड़ का अपना आक्रोश जाहिर करने का तरीका आक्रामक होता है इसलिए निशाना कोई भी हो सकता है. भीड़ का यह रूप ज्यादातर पहले से नियोजित होता है कि आज फलांफलां जगह जमा होना है. फिर उस विचार से सहमत लोग उस जगह जमा हो जाते हैं. इस में प्रवेश के लिए कोई प्रतिबंध नहीं होता.

भीड़ का एक और रूप आक्रामकता भी है. इस भीड़ का शिकार निश्चित होता है वह चाहे व्यक्ति हो, चाहे समूह विशेष.

यह भीड़ किसी भी तरह अपने शिकार को अधिक से अधिक शारीरिक, आर्थिक नुकसान पहुंचाना चाहती है, भले ही उस भीड़ की अपने शिकार से कोई जानपहचान या दुश्मनी न हो. जैसे, आप गाड़ी चला रहे हैं और आप की गाड़ी से कोई दुर्घटना हो जाती है या कोई साइकिल, स्कूटर चालक अपनी गलती से आप की गाड़ी से टकरा जाता है. यहां आप की कोई गलती नहीं है पर चूंकि चोट साइकिल या स्कूटर चालक को लगती है इसलिए दुर्घटना के आसपास के लोगों की सहानुभूति उस के साथ होती है और गलती न होते हुए भी उन्हें आप की गलती नजर आने लगती है. फलस्वरूप, देखते ही देखते आप के आसपास भीड़ जमा हो जाती है, जो आप को शारीरिक चोट पहुंचा सकती है. यह भी हो सकता है कि आर्थिक हानि पहुंचाने के लिए भीड़ गाड़ी की तोड़फोड़ कर दे.इस भीड़ का एक रूप सांप्रदायिक दंगों के समय भी देखने को मिलता है जब भीड़ के रूप में जमा एक संप्रदाय के लोग दूसरे संप्रदाय के लोगों की हत्या, मारपीट और आगजनी आदि करना चाहते हैं.

रेलवे स्टेशन की भीड़ से भी सभी वाकिफ होंगे. रेलगाड़ी रुकते ही उतरने वाले तो जल्दी से उतरना चाहते हैं, चढ़ने वाले भी चढ़ने में जल्दबाजी करते हैं. इस ‘पहले हम पहले हम’ वाली भीड़ से मुकाबला करना बहुत कठिन है.

आज के हालात को देखते हुए यह कहना बहुत मुश्किल है कि कब घर का कोई सदस्य भीड़ में कहां फंस जाए क्योंकि लोग स्वभाव से काफी उग्र हो गए हैं और उन की प्रवृत्ति भी आक्रामक हो गई है. यहां किसी भी तरह की भीड़ में फंसने पर सब से जरूरी बात है उस में से सुरक्षित निकलना. इस के लिए आप को भीड़ से मुकाबला करना पड़ेगा. आजकल व्यक्ति के उग्र होने के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण है, अपने अधिकारों के प्रति सजगता. इसलिए पता नहीं चलता कि कब व्यक्तियों का कोई हुजूम उग्र भीड़ का रूप ले ले.

यह भीड़ एक तरह से पागल भीड़ होती है. इस के पास सोचनेसमझने की शक्ति नहीं होती. यह सोचती है कि जो उस के विचार हैं वे सही हैं और जो भी वह कर रही है वह ठीक है. इस में सब एकमत होते हैं. उग्र भीड़ को सांप्रदायिक सद्भावना या अहिंसा और शांति के विचारों से प्रभावित नहीं किया जा सकता यानी कि एकसाथ पूरी भीड़ की सोच को फौरन बदल पाना असंभव है.

आक्रामक भीड़ में शामिल सभी लोग इस सच को जानते हैं कि वे आपस में एकदूसरे को नहीं मारेंगे. उन्हें सिर्फ अपने निशाने को ही नुकसान पहुंचाना है इसलिए अपनी सुरक्षा के प्रति वे निश्ंिचत होते हैं. चिंता तो उस व्यक्ति को होती है जो भीड़ में घिरा होता है क्योंकि घिरा हुआ वह खुद है, इसलिए मुकाबला भी उसी को करना है. इसलिए चौकन्ना भी उसी को रहना पड़ेगा.

सावधानी की जरूरत

अपने जीवन में हमें एक और तरह की भीड़ का भी सामना करना पड़ता है और वह है मेले, खेलतमाशे या नुमाइश की भ्ीड़. ऐसी भीड़ में जब हम फंसते हैं तो हमें पता होता है कि हम भीड़ में फंसने वाले हैं. अब अगर ऐसे में किसी के साथ कोई हादसा हो जाए तो उस के ?लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए, भीड़ को या खुद को?

खेलतमाशों की भीड़ से मुकाबले की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि यहां अधिकतर लोग मनोरंजन के लिए आते हैं. हां, ऐसी जगहों पर गिरहकटों से जरूर सावधान रहना चाहिए अन्यथा वे चुपचाप अपना काम कर जाएंगे और आप का सारा उत्साह ठंडा पड़ जाएगा. औरतें मेले जैसी भीड़ वाली जगहों पर गहनों के प्रदर्शन का मोह त्याग दें तो घूमने का अधिक लुत्फ उठा सकेंगी. खुद ही नहीं बल्कि साथ के लोग भी निश्ंिचत हो कर मेले का भ्रमण कर सकेंगे.

छोटे बच्चों को भीड़ में कभी भी अकेले न छोड़ें. सदा गोद में ही रखें और थोड़े समझदार बच्चों को वह स्थान अच्छी तरह समझा दें, साथ ही घर का पता, फोन नंबर वगैरह लिख कर उस की जेब में डाल दें. बेहतर है कि भीड़ वाली जगहों पर अपना समूह बना कर ही जाएं. मनोरंजन के लिए निकले हैं तो भीड़ से क्या घबराना. पर मुकाबले को तैयार रहें.

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