इंदौर में फैमिली कोर्ट ने ब्यूटी पार्लर चलाने वाली पत्नी को आदेश दिया कि वह 12वीं पास पति को हर महीने 5 हजार रुपए का गुजारा भत्ता देगी. 23 साल के विजय और 22 साल की दीपा का तलाक और गुजारा भत्ते को ले कर मुकदमा इंदौर फैमिली कोर्ट में चल रहा था. इन की दोस्ती अपने एक मित्र के जरिए हुई थी. पहले दोनों में बातचीत हुई इस के बाद प्यार और शादी की तरफ मामला बढ़ गया. विजय के मुताबिक दीपा उस को पसंद करने लगी थी इसलिए उस ने ही प्रपोज किया.
विजय उस से शादी नहीं करना चाहता था लेकिन दीपा ने धमकी दी कि अगर शादी नहीं की तो वह जान दे देगी. इस दबाव में आ कर विजय ने दीपा के साथ साल 2021 में आर्य मंदिर में शादी कर ली. विजय की शादी से उस के परिवार वाले खुश नहीं थे. विजय मजबूरी और डर में घुटघुट कर दीपा के साथ रह रहा था. दीपा से परेशान विजय एक दिन उसे छोड़ कर भाग गया और अपने परिजन को पूरी बात बताई. इस के बाद विजय ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और कोर्ट में भरण पोषण के लिए केस भी दायर किया.
विजय के केस दर्ज करवाने के बाद दीपा ने भी विजय पर घरेलू हिंसा का केस दर्ज करा दिया. कोर्ट में दीपा ने बताया कि वो कामकाजी नहीं है. उस ने विजय से भरण पोषण की भी मांग की. विजय ने कोर्ट को बताया कि वो 12वीं पास है और दीपा की वजह से उस की पढ़ाई छूट गई. वह उसे बहुत प्रताड़ित करती थी इसलिए वह घर से भाग गया.
विजय ने कोर्ट को बताया कि जब पत्नी दीपा ने पुलिस में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई तब उस ने पुलिस को बताया था कि वह ब्यूटी पार्लर चलाती है. इस से दीपा का झूठ पकड़ा गया. इस के बाद कोर्ट ने पत्नी दीपा को आदेश दिया कि वह हर महीने 5 हजार रुपए भरणपोषण अपने पति विजय को देगी.
पति भी मांग सकता है गुजारा भत्ता
जब पतिपत्नी के बीच तलाक का मुकदमा चल रहा हो तो सेक्शन 25 के तहत भरणपोषण के लिए पति द्वारा गुजारा भत्ता की मांग कर सकता है. आमतौर पर पत्नी को गुजारा भत्ता मांगने के मामले ज्यादा होते हैं. यह समझना जरूरी है कि पति किन हालातों में गुजारा भत्ता के लिए मांग कर सकता है. तलाक के लिए शादी से बाहर यौन संबंध, शारीरिक-मानसिक क्रूरता, दो सालों या उस से ज्यादा वक्त से अलग रहना, गंभीर यौन रोग, मानसिक अस्वस्थतता, धर्म परिवर्तन कुछ प्रमुख वजहें होती हैं. असल में यह नियम नहीं होने चाहिए.
इस के अलावा पति अगर बलात्कार या अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता हो, पहली पत्नी से तलाक लिए बगैर दूसरी शादी की हो या फिर युवती की शादी 18 वर्ष के पहले कर दी गई हो तो भी शादी अमान्य की जा सकती है. पतिपत्नी में से जो भी तलाक ले रहा हो उस से वजह पूछनी जरूरी न हो. इस से बदनामी होती है. बाद का जीवन मुश्किल हो जाता है.
पति के मामले में यदि पति बेरोजगार है, जबकि उस की पत्नी के पास कमाई का साधन है तो वह भत्ते की मांग कर सकता है. इसी प्रकार, यदि पति शारीरिक या मानसिक रूप से कमाने में असमर्थ है, और उस की पत्नी कार्यरत है, तो वह वित्तीय सहायता का अनुरोध कर सकता है. इस के अलावा, यदि पति के पास अपनी पत्नी के साथ अदालती मामले के दौरान कानूनी फीस को कवर करने के लिए धन की कमी है या यदि वह बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है तो वह वित्तीय सहायता मांग सकता है.
देश में तलाक के 2 तरीके हैं, एक तो आपसी सहमति से तलाक और दूसरा एक तरफा अर्जी लगाना. पहले तरीके में दोनों की राजीखुशी से संबंध खत्म होते हैं. इस में वादविवाद, एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप जैसी बातें नहीं होती हैं. इस वजह से इस के जरिए तलाक मिलना अपेक्षाकृत आसान होता है. आपसी सहमति से तलाक में कुछ खास चीजों का ध्यान रखना होता है. आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पतिपत्नी दोनो को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 ख के तहत कोर्ट में एक एप्लीकेशन देनी होती है.
आपसी सहमति से तलाक की अपील तभी संभव है जब पतिपत्नी सालभर से अलगअलग रह रहे हों. पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में याचिका दायर करनी होती है. दूसरे चरण में दोनों पक्षों के अलगअलग बयान लिए जाते हैं और दस्तखत की औपचारिकता होती है. तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वे अपने फैसले को ले कर दोबारा सोच सकें. कई बार इसी दौरान मेल हो जाता है और घर दोबारा बस जाते हैं. 6 महीने के बाद दोनों पक्षों को फिर से कोर्ट में बुलाया जाता है. अगर किसी तरह से शादी नहीं चलने वाली होती है तो कोर्ट अपना फैसला सुनाती है और रिश्ते के खत्म होने पर कानूनी मुहर लग जाती है.
महंगा है तलाक लेना
आपसी रजामंदी से तलाक में वकील की फीस 10 हजार से ले कर 1 लाख तक हो सकती है. विवादित मामलों में यह 50 हजार से 5 लाख तक हो सकती है. अब ज्यादातर मामलों में वकील एक बार में ही फीस लेते हैं. कोर्ट में एप्लीकेशन लगाते समय ही 75 हजार से 1 लाख तक पहले ले लेते हैं. आपसी सहमति वाला मुकदमा भी 1 साल तक चल जाता है. जिन में विवाद होते हैं वह अभी भी सालोंसाल चलते हैं. जल्दी निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है जहां के वकील की फीस 5 लाख से शुरू होती है. लोवर कोर्ट में फैसला लटका रहता है.
अमीरों के मामलों में पैसा खर्च करने में कोई दिक्कत नहीं होती इसलिए मामले जल्दी निपट जाते है. वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की फीस देने में पीछे नही रहते. बड़ेबड़े वकील उन के लिए खड़े हो जाते हैं. गरीब के लिए हाई कोर्ट तक पंहुचना ही मुश्किल होता है. उसे गुजारा भत्ता देना ही पड़ता है. ऐसे में वह लंबे खर्च में पड़ जाता है. इन के मुकदमें भी लंबे चलते हैं.
तलाक को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अब तलाक के लिए 6 महीने इंतजार करने की जरूरत नहीं रहेगी बल्कि इस से पहले भी विवाहित दंपति अलगअलग हो सकते हैं. अगर कोर्ट को लगता है कि रिश्ते इतने खराब हो चुके हैं कि रिश्ता नहीं सुधरने वाला, तलाक हो कर ही रहेगा तो इस 6 महीने के इंतजार को खत्म किया जा सकता है.
अगर कोर्ट को लगता है कि 6 महीने के लिए सुलह का समय देना चाहिए तो वह ऐसा कर सकता है. इस फैसले से उम्मीद की एक किरण दिखी है. असली सुधार तक होगा जब बिना किसी अधिक समय के कम से कम समय में तलाक मिलने लगे.
सरल हो तलाक लेना
पति पत्नी में से एक अगर आर्थिक तौर पर दूसरे पर निर्भर है तो तलाक के बाद जीवनयापन के लिए सक्षम साथी को दूसरे को गुजारा भत्ता देना होता है. इस भत्ते की कोई सीमा नहीं होती है, ये दोनों पक्षों की आपसी समझ और जरूरतों पर निर्भर करता है. कोई समस्या होने पर कोर्ट को इस में दखल देना पड़ता है. यदि पतिपत्नी के बच्चे होते हैं तो बच्चों की कस्टडी किसे मिले ? यह भी विवाद का विषय होता है. इसी तरह से अगर शादी से बच्चे हैं तो बच्चों की कस्टडी भी एक अहम मसला है. चाइल्ड कस्टडी शेयर्ड यानी मिलजुल कर या अलगअलग हो सकती है. कोई एक पेरैंट भी बच्चों को संभालने का जिम्मा ले सकता है लेकिन अगले पक्ष को उसकी आर्थिक मदद करनी होती है.
असल में गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी दो ऐसे बड़े मामले हैं जिन के जरिए तलाक के मामले लंबे समय तक चलते रहते हैं. ऐसे में जरूरी है कि तलाक जल्दी मिले. जिस से दोनों ही अपने तरह से अपना जीवन गुजार सके. तलाक की प्रताड़ना से शादी सजा लगने लगती है. पतिपत्नी दोनों में से जो भी तलाक मांगे उसे मिल जाना चाहिए.
शादी के बाद अगर बच्चा हो गया है तो उस की देखरेख के लिए अच्छी रकम मिलनी चाहिए. क्योंकि बच्चे के पैदा होने में उस की कोई सहमति नहीं होती है. इस के उलट जब लड़कालड़की शादी करते हैं तो उन की आपसी सहमति होती है. ऐसे में तलाक के जिम्मेदार दोनों होते हैं. शादी करने का मतलब यह नहीं होता कि जिदंगीभर पत्नी की जिम्मेदारी निभाई जाए.
सरल हो आगे का जीवन
आज समाज में पतिपत्नी दोनों कमाने वाले होते हैं. लड़कियों को भी नौकरी करनी चाहिए. जिस से वह अपनी आजीविका चला सके. कोई किसी पर निर्भर न रहे. जब तक साथ है तब तक भी आपसी खर्च मिल बांट कर करें. जिस से अलग होने पर किसी तरह की बेचारगी का भाव न रहे. यदि कोई पत्नी अपनी कमाई से अपना भरण पोषण करने में सक्षम है तो वह भरणपोषण का अनुरोध नहीं कर सकती. इस के अतिरिक्त यदि वह स्वेच्छा से बिना किसी वैध कारण के अपने पति से अलग रहती है, यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं, या यदि वह शादी के बाद किसी अन्य रिश्ते में शामिल है तो वह भरणपोषण के लिए गुजारा भत्ता की मांग नहीं कर सकती है.
तलाक का मुकदमा अगर आपसी सहमति और बिना किसी लंबी बहस के मिल जाए तो बहुत सारे पतिपत्नी विवाद खत्म हो जाएं. एकदूसरे के खिलाफ कई तरह के मुकदमें लिखाते हैं. संबंध खराब होते हैं. पत्नी मारपीट, घरेलू हिंसा, बलात्कार जैसी धाराओं में मुकदमा पति पर प्रभाव डालने के लिए लिखाती है तो जवाब में पति जेवर चोरी, अवैध संबंध जैसे आरोपों में मुकदमा लिखाता है. यह एकदूसरे पर दबाव के लिए डालने के लिए लिखाए जाते हैं.
अगर आसानी से तलाक मिल जाए तो तलाक के बाद भी आपसी संबंध खराब नहीं होंगे. दिक्कत यह है कि फैमिली कोर्ट हो, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट, सभी सोचते हैं कि हिंदू विवाह संस्कार है जिस में औरत को कोई हक नहीं है और वह पति को परमेश्वर मान कर सेवा करे. वे कोशिश करते हैं कि विवाह को तोड़े नहीं चाहे दोनों पक्ष रोते रहें. यह संस्कार और संस्कृति पुरुष पर भी भारी है, औरतों का तो कहना ही क्या.