जैसे गधे के सिर से सींग गायब होते हैं वैसे ही सोशल मीडिया से रवि सुन्तजानी कुमार गायब हैं. 25 साल की उम्र छू रहे इस स्मार्ट युवा को कोई और जाने न जाने पर वे लोग अच्छी तरह जानने लगे थे जो इस के वित्तीय शिष्य बन गए थे. यानी, पैसा डबल, ट्रिपल और ज्यादा मल्टीप्लाई करने के लालच व चक्कर में वे लोग रवि को किसी सिद्धपुरुष से कम नहीं मानते थे.

रवि सुन्तजानी इस नए दौर के फाइनैंशियल इन्फ्लुएंसर में से एक था जो निवेशकों को टिप्स देता था कि वे कब, कैसे, कहां और कितना पैसा अपनी गाढ़ी कमाई का निवेश करें कि उस का रिटर्न रेन यानी बरसात होने लगे. अगर उस की कलई न खुलती तो मुमकिन है उसे रवि सुन्झुन वाला कहा जाने लगता.
रवि एक घंटे के ज्ञान के 50 हजार रुपए तक चार्ज करने लगा था. उस की शोहरत के आलम के बारे में तो कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई दिग्गज भाजपा नेता उसे सोशल मीडिया पर फौलो करते थे. कुछ बात तो थी इस स्मार्ट लड़के में जो एक दफा उस का बनाया वीडियो केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी पोस्ट किया था.
इस वीडियो में रवि बता रहा है कि आप यूपीआई के जरिए एटीएम से पैसे कैसे निकाल सकते हैं. सितंबर 2023 के पहले सप्ताह में मुंबई में फाइनैंशियल टैक्नोलौजी इवैंट हुआ था जिस में रवि ने इस वीडियो का डेमो देते हर किसी को हैरान कर दिया था जिसे पीयूष गोयल ने भी रीपोस्ट किया था. देखते ही देखते यह वीडियो जम कर वायरल हो गया था.

मुझ को यारो माफ करना

सोशल मीडिया अकाउंट्स पर रवि की प्रोफाइल बेहद आकर्षक और इंप्रैसिव थी. उस ने इलाहाबाद से बीटैक की डिग्री ली थी. मैनेजमैंट की डिग्री उस ने एमडीआई गुड़गांव से ली थी. इस के बाद उस ने ओयो और जोमैटो कंपनियों में काम किया था. उस की प्रोफाइल में बड़े फख्र से यह जिक्र भी था कि वह उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव से है और अपने सपने पूरे करने के लिए गांव से निकल लिया था. वह एकदो नहीं, बल्कि 30 क्रैडिट कार्ड इस्तेमाल करता था. बकौल रवि, उस का आईआईटियन बनने का सपना अधूरा रह गया लेकिन अब वह आईआईटी और आईआईएम के स्टूडैंट्स को पढ़ाता है.

पर जल्द ही रवि की हकीकत उजागर हो गई कि उस ने कोई डिग्री नहीं ली है. वह बस यों ही तंबू गाड़ कर दीक्षाएं देने वाले बाबाओं की तरह वित्तीय दीक्षाएं दे रहा था. यानी, लोगों को इन्फ्लुएंसर बन कर पैसा बढ़ाने की सलाह दे रहा था और खुद इस के एवज में तगड़ी कमाई कर रहा था.

जैसे भी खुली जब पोल खुली तो वह सोशल मीडिया के आभासी संसार से गायब हो गया. जातेजाते सारे अकाउंट डिलीट करते उस ने अपने चेलों से वादा यह पोस्ट करते किया कि ‘सौरी फ्रैंड्स, अभी एक ब्रेक लूंगा.’ उस की इस अदा से लगा ऐसा कि कोई बाबाजी अधूरी सिद्धि पूरी करने या नई सिद्धि हासिल करने या पुरानी को रिन्यू कराने के मकसद से हिमालय पर तपस्या करने जा रहे हों और जल्द लौटेंगे. तब तक भक्तगण दूसरा बाबा या गुरु कर इन्वैस्टमैंट करने का सिलसिला जारी रखें.

रवि के यों भागने के बाद अर्थजगत में बहस भी हुई. उसे चाहने वालों की दलील यह थी कि मुमकिन है उस की डिग्रियां फर्जी हों या वजूद में ही न हों लेकिन वह इन्वैस्टमैंट का अच्छा जानकार तो था. जबकि उस की मुखालफत करने वालों के तर्क जमीनी थे कि डिग्री पर किसी के भी झूठ बोलने पर उस की विश्वसनीयता पर तो सवाल खड़े होंगे. रवि के समर्थक दरअसल कहना यह चाह रहे थे कि नीम हकीम है तो क्या हुआ, अगर कोई झोलाछाप डाक्टर इलाज अच्छा करता है तो उसे प्रैक्टिस करने की छूट मिलना हर्ज की बात नहीं.

यह बहुत बड़े खतरे वाला तर्क और मानसिकता है, जिस की नाव पर कई ऐसे इन्फ्लुएंसर सवार हैं जो तकनीकी योग्यता और डिग्रियों को कागज का टुकड़ा करार देते हैं. ये लोग श्रुति और स्मृति वाले ज्ञान के हिमायती हैं जिस के चलते देश पिछड़ रहा है. लोग अतार्तिक और भाग्यवादी बन रहे हैं और इस से भी ज्यादा अहम चिंतनीय यह है कि बात अगर इन्वैस्टमैंट की हो तो अर्थशास्त्र को नहीं, बल्कि धर्मशास्त्रों को मानने लगते हैं. जो यह कहते हैं कि अगर भाग्य में लिखा है तो पैसा घर की छत से टपक पड़ेगा या फिर फर्श चीर कर बाहर आ जाएगा.

फिर ऐसे लुटते हैं लोग

रवि के चेहरे से वित्तीय प्रभावक होने का नकाब हटने के बाद शेयर बाजार को रैगुलेट करने वाली एजेंसी सेबी की आंखे खुलीं कि रवि जैसे सैकड़ोंहजारों नीमहकीम यानी फाइनैंशियल इन्फ्लुएंसर निवेशकों को उलटीसुलटी सलाह दे रहे हैं जो कि गैरकानूनी है.

म्यूचुअल फंड और शेयर खरीदनेबेचने की सलाह वही लोग दे सकते हैं जिन्हें सेबी ने मान्यता दे रखी हो और इसे हासिल करने के लिए पहले सेबी का इम्तिहान पास करना पड़ता है जो कि न रवि ने किया था और न ही उस के जैसे दूसरे गुरुघंटालों ने किया हुआ है और अगर वे सोशल मीडिया पर ज्ञान बांट रहे हों तो उन पर कानूनी कार्रवाई करना भी आसान नहीं.

कानून की सीमाएं तो तभी खुलेंगी जब कोई बड़ा घोटाला ठगी या फ्रौड हो जाए और उस की भी रिपोर्ट पीड़ित लिखाए. बात अकेले फंड्स या शेयरों की नहीं है बल्कि इन्फ्लुएंसर तो यूजर्स को जायदाद खरीदी की भी सलाह देता है और क्रिप्टोकरैंसी की भी व बजट बनाने की भी सलाह देता है. सेबी ने ऐसे ज्ञानियों को नया शब्द दे दिया है

‘FIN-FLUENCERS’.

घटना – एक – 21 फरवरी को कोलकाता का 58 वर्षीय एक शख्स ऐसे ही किसी इन्फ्लुएंसर के चक्कर में फंस कर 20 लाख रुपए गंवा बैठा. पीड़ित फेसबुक के जरिए इन ठगों यानी इन्फ्लुएंसर के चक्कर में आया था. जहां उसे फ्री औनलाइन स्टौक ट्रेडिंग कोर्स करने का लालच दिया गया था.

कुछ दिनों बाद उसे एक व्हाट्सऐप ग्रुप से जोड़ लिया गया. जब पीड़ित को ठगों पर भरोसा हो गया तो उसे ZOKSA नाम के ट्रेडिंग प्लेटफौर्म के बारे में जानकारी दी गई कि इस कंपनी में इन्वैस्ट करने से पैसा तुरंत बढ़ेगा. बढ़ा तो एक छदाम भी नहीं, उलटे, इन्वैस्ट किए गए 20 लाख रुपए भी डूब गए.

घटना – दो – कोलकाता वाले सज्जन तो मुंबई के न्यू पनवेल में रहने वाली 40 वर्षीया पीड़िता के मुकाबले सस्ते में ही निबटे कहे जाएंगे. इस महिला से इन्फ्लुएंसर ने हाई रिटर्न दिलाने का वादा किया था. ज्यादा पैसों के लालच में आई पीड़िता ने दिसंबर 2023 से फरवरी 2024 तक अपने नएनवेले वित्तीय गुरुजी की सलाह पर शेयरों की औनलाइन ट्रेडिंग के नाम पर 1 करोड़ 92 लाख रुपए उस के बताए बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए.

कुछ दिनों बाद पीडिता को ज्ञान प्राप्त हुआ कि चिड़वा खेत चुग गया है और वह एक नहीं बल्कि 9 हैं. साइबर पुलिस में उस ने रिपोर्ट दर्ज कराई. अब पुलिस आईपीसी की धाराओं 420, 406 और 34 के अलावा आईटी एक्ट के प्रावधानों के तहत आरोपियों को ढूंढ रही है. इन्वैस्टमैंट के नाम पर तो महिला का तगड़ा पैसा वेस्ट गया यानी भाग्य नहीं चमका जो अगर अच्छा होगा तो मुमकिन है ये इन्फ्लूएंसर्स पकड़े जाएं और पैसा वापस मिल जाए.

फर्क इन्फ्लुएंसर्स का

पैसे को डबलट्रिपल करने वाले ये ठग हर कहीं मौजूद हैं और लालचियों के लिए औनलाइन भी उपलब्ध हैं.

– 18 फरवरी को मध्यप्रदेश के कटनी शहर की दुबे कालोनी की अनीता मिश्रा को एक गुरु और उस के चेले ने ऐसे चूना लगाया कि यह तय करना मुश्किल हो जाए कि असली गुरु कौन औफलाइन वाले या औनलाइन वाले. इन ठगों ने पहले राह चलती अनीता को 20 रुपए का नोट डबल करने का झांसा दिया.

अनीता इतनी प्रभावित हुई कि इन दोनों को घर ले गई. इन्हें चायनाश्ता कराया और दोगुने करने के लिए 30 हजार रुपए नकद व ढाई तोले के कान के अपने टौप्स भी दे दिए. गुरुजी ने हाथ का यह मैल कागज में बंधवाया और कोई मंत्र फूंक कर उसे वापस करते कहा कि इसे कल खोलना, सब डबल हो जाएगा.

कब कागज से माल ठगों ने उड़ा लिया, इस का पता अनीता को अगले दिन चला जब उस ने बेचैनी और उत्सुकता से उसे खोला तो वह मुंह चिढ़ा रहा था. गरीबी में गीला आटा वाली बात यह कि पुलिस उसे रिपोर्ट लिखाने को टरकाती रही. अनीता ने भोपाल सीएम हाउस से जोर लगवाया तब कहीं जा कर रिपोर्ट दर्ज हुई. इस के बाद पता चला कि कटनी में ये ठग कईयों को चूना लगा चुके हैं.

खुद ही संभलें तो बेहतर

इन तमाम ताजे मामलों में भी फसाद की जड़ लालच है. लोग रातोंरात टाटा, बिरला, अंबानी और अडानी बन जाना चाहते हैं. औनलाइन हों या औफलाइन, ये इन्फ्लुएंसर इसी चमत्कारी और लालची मानसिकता का फायदा उठाते हैं. गांवदेहातों से ले कर महानगरों तक लोगों की मानसिकता एक सी है, ऊपर बताए उदाहरण इस की पुष्टि भी करते हैं.

पैसा डबलट्रिपल और ज्यादा मल्टीप्लाई होता है, यह मानसिकता दरअसल धर्म ने लोगों को दी है जिस में ऐसे किस्सेकहानियों की भरमार है जिन में कोई रातोंरात अमीर हो गया. राजा नल और दयमन्ती रानी की कहानी के साथसाथ सत्य नारायण की कथा से होते सैकड़ों किस्से चलन में हैं जिन्हें सुन लगता है कि ऐसा चमत्कार होता होगा.
गड़ा धन, खजाना और जुआ-सट्टा ये सब इसी मानसिकता के देन हैं कि बिना मेहनत किए भाग्य के भरोसे भी पैसा कमाया जा सकता है. इस लिहाज से मुंबई, कोलकाता और कटनी के इन्फ्लुएंसरों ने नया कुछ नहीं किया था, बस, नए दौर के प्लेटफौर्म का इस्तेमाल किया था. ये ठग आदिकाल से हैं और आम लोगों के लालच के चलते वे अनंत काल तक रहेंगे भी. इस की गारंटी कोई भी दे सकता है.

ये पहले प्रिंट मीडिया के सुनहरे दौर में अखबारों और पत्रिकाओं में विज्ञापन दे कर पैसा बनाते थे कि यह वर्गपहेली भर कर भेजो, जो अगर सही हुई तो 500 रुपए की कीमत वाला रेडियो 50 रुपए में मिलेगा. अंकों वाली यह वर्गपहेली इतनी आसान होती थी कि 6ठी क्लास के बच्चे भी इसे हल कर लेते थे.

घर के बड़े इसी बताए गए पते, जो आमतौर पर बौक्स नंबर वाला होता था, पर भेज देते थे. लौटती डाक से उन्हें यह खुशखबरी मिलती थी कि बधाई हो, आप का नाम लकी विजेताओं में आ गया है. अब आप 50 रुपए भेज कर 500 रुपए वाला रेडियो ले सकते हैं. लालची लोग ख़ुशीख़ुशी 50 रुपए का मनीऔर्डर कर देते थे लेकिन वह रेडियो उन्हें नहीं मिलता था और जिन्हें मिला, वे आपबीती सुनाते कहते हैं कि एक बार पार्सल आया था लेकिन उस में कंकड़पत्थर और घासफूस भरा था.

ऐसे बहुत से तरीके 70-80 के दशक के इन्फ्लुएंसरों ने ईजाद किए, मसलन फिल्मी हीरो का आधा चेहरा पहचानो और ईनाम जीतो. अब दौर डिजिटल है तो ये लोग सोशल मीडिया पर नएनए हथकंडों के साथ हाजिर हैं. तब शेयर्स और फंड नहीं थे और लोगों के पास ज्यादा पैसा भी नहीं था, इसलिए ये लोग छोटामोटा हाथ मार पाते थे. अब लाखोंकरोड़ों का चूना मक्खन बता कर लगा जाते हैं.

ज्योतिषियों और तांत्रिकों ने भी पैसा बनाया. वे अब भी हैं. लेकिन हैं तो वे लोग भी इन्फ्लुएंसर ही जो रोज रात को टीवी के परदे पर और मोबाइल पर भी श्री यंत्र, लक्ष्मी यंत्र और कुबेर यंत्र सहित धनवर्षा यंत्र बेच रहे हैं और लोग इन यंत्रों में पैसा लगाते अमीर बनने का मुगालता पाले बैठे हैं. यह प्रोत्साहन और लालच विरासत में मिला है जो अब बहुत बड़े धंधे की शक्ल ले चुका है तो इस से बचा स्वयं के विवेक से ही जा सकता है, कानून की तो अपनी सीमाएं हैं.

सोशल मीडिया पर ही बताया जाता है कि इन्फ्लुएंसर्स से ऐसे बचें, वैसे बचें. यानी, उन की प्रोफाइल और हिस्ट्री जांच लें, सेबी में उन का रजिस्ट्रेशन हो तभी उन की सलाह पर गौर करें वगैरहवगैरह लेकिन इन में सब से अहम यह है कि यह याद रखें कि पैसा कहीं भी निवेश करें वह वंदेमातरम ट्रेन की रफ्तार की तरह नहीं बढ़ सकता. वह बढ़ेगा तो पैसेंजर ट्रेन की गति से ही, इसलिए अपने अंदर के लालच को काबू में रखें.

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