गाय, गौभक्त, गौरक्षक की आड़ में धार्मिक उन्माद, सामाजिक वैमनस्यता, मानवों में भेदभाव आदि फैलाने की राजनीति करती भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज हो गई है. कुछ छोटी राजनीतिक पार्टियां, जो ऐसी राजनीति नहीं करती हैं, सत्ता के लालच में उन पार्टियों के संग सत्ता की भागीदार बनी हुई हैं. वहीं, सर्वधर्म समभाव की राजनीति करने वाली पार्टियां सत्ताधारियों से खुल कर लोहा लेने से कतरा रही हैं, बहुसंख्य मतदाताओं के भटक जाने का डर जो उन्हें है. यह है देश में आज का राजनीतिक परिदृश्य.
धार्मिक पुस्तकों में गाय के बारे में सकारात्मक बातें हैं तो नकारात्मक भी दर्ज हैं. बल्कि, यों कहें कि धार्मिक ग्रंथों में विपरीत बातें मौजूद हैं. इस में शक नहीं कि गाय का दूध पौष्टिक होता है. उस के बच्चे, जिसे बछड़ा कहते हैं, बड़ा हो कर खेतीकिसानी के काम आता है. इसलिए, गौधन को उपयोगी धन कहा जाता है.
हिंदू धर्म के कुछ मतों के अनुसार, गौदान सर्वश्रेष्ठ दान है. और दान केवल ब्राह्मणों को दिया जाता है. गौदान की महिमा से कुछ हिंदूग्रंथ भरे पड़े हैं, उन में गाय की जो महिमा की गई है वह सम झ से परे है.
गोरखपुर के गीता प्रैस द्वारा प्रकाशित कल्याण के गौसेवा अंक (1995) को तो गौदान महिमा के लिए ही प्रकाशित किया गया था, इस में लिखा था कि लोग गौदान में कंजूसी न करें क्योंकि ऐसा करने से पिछली सात व अगली सात पीढि़यों को स्वर्ग मिलने की गारंटी है. ?यह पाठकों के मन में बैठाया गया. इस प्रकार के प्रचार के बल पर 50-60 वर्षों बाद भाजपा आज अपनी मंजिल पा पाई है.
‘‘गौदान करने से मनुष्य अपनी सात पीढ़ी पितरों का और सात पीढ़ी आने वाली संतानों का उद्धार करता है.’’
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(महाभारत अनु. पर्व 74/8)
आगे कहा गया, पाप धोने के लिए गौदान तो डिटर्जेंट पाउडर की तरह है.
‘‘जो गायबैल दान करता है वह सब पापों से छूट जाता है और उत्तम लोक प्राप्त करता है.’’
(महा. अनु. 71/51, 76/20)
लेकिन दान पाने वाले को दूध से मतलब है, बूढ़ी गाय की देखभाल से नहीं. इसलिए व्यवस्था है, बूढ़ी, रोगग्रस्त, दुबलीपतली, दूध न देने वाली और बिना बछड़े की गाय दान नहीं करनी चाहिए. अच्छे स्वभाव वाली, जवान, बछड़े वाली और दुधारू गाय ही ब्राह्मण को दान करनी चाहिए.’’
(स्कंद पुराण प्रभास खंड 208, कल्याण गौसेवा अंक)
‘‘गाय का शृंगार ऐसा हो कि सोनाचांदी भी दान में मिल सके.’’
‘‘जो व्यक्ति गाय के सींगों को सोने से, खुरों को चांदी से, पीठ पर तांबा चढ़ा कर, कांसे का बरतन दूध दुहने के लिए और गहनेकपड़ों से सजा कर ब्राह्मण को दान करता है, वह सदा विष्णुलोक में निवास करता है.’’
गौदान करने से पुरखे तर जाते हैं और देवता प्रसन्न होते हैं. इसे चालाकी कहा जाएगा कि ब्राह्मण को देने वाली गाय देवता को अर्पित कराई जाती है अर्थात नाम देवता का हो और उस का उपभोग ब्राह्मण ही करे. गरुणपुराणकार श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण को गाय दान कराता है.
‘‘गौदान च ततो दद्यात् पितृणां तारणाय वै.
गौरेषा हि मया दत्ता प्रीतये तेज्स्तु माधव.’’ (ग. पुराण 12/13)
स्पष्ट है गौदान से स्वर्ग की गारंटी मिलना ब्राह्मणों की साजिश है, ताकि मुफ्त का गौधन उन्हें मिलता रहे.
गौमांस के सेवन पर काफी तथ्य हमारे ग्रंथों में मौजूद हैं पर जो समाज झूठी आस्थाओं और मान्यताओं पर टिका हो वह इन्हें मानने को तैयार ही नहीं होता. हत्या करने वाले का सिर फोड़ना उन्हें तर्क देने से ज्यादा सरल लगता है.
अब गौमांस नहीं खाने वाले हिंदू गौभक्त हो चुके हैं. लेकिन मुसलमान और ईसाई गौमांस से परहेज नहीं करते हैं. अगर कहीं गौधन कट जाता है तो गौभक्त बावेला मचा देते हैं. इस बावेले से हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है, जिस से हिंदूवादी पार्टियां सत्ता पर कब्जा करने में सफल हो गई हैं. इस प्रकार गौभक्ति का मूल लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना बन चुका है अर्थात कहीं निगाहें और कहीं निशाना वाली कहावत चरितार्थ हुई है.
गाय की पूंछ पकड़ कर ही भाजपा ने सत्ता प्राप्त की है. गाय के नाम पर विधर्मियों के प्रति जितनी घृणा फैलाई जाएगी, उतनी ही तेजी से हिंदू वोटों का धु्रवीकरण होगा और हिंदूवादी पार्टी यानी भाजपा को फायदा मिलेगा. इसी स्वार्थ के कारण गौभक्ति ने उन्माद का रूप ले लिया. गौभक्ति का यह उन्माद निर्दोर्षों का और देश का बहुत अहित कर रहा है.
पशु व चमड़ा व्यवसाय चौपट
ग्रामीण जगत में कृषि के बाद पशु व्यापार सदियों से चला आ रहा है. यह व्यापार अधिकतर मेवाती मुसलमानों के हाथों में है. हाटबाजारों में पशुओं का क्रयविक्रय होता है. पशुओं को इधर से उधर लानेलेजाने में मालिकों की अपेक्षा मजदूरों की संख्या अधिक रहती है, जिस से हजारों गरीबों की रोजीरोटी इस व्यापार से चलती है.
मध्य प्रदेश में ही क्या, लगभग पूरे ही देश में गौवध अब प्रतिबंधित है लेकिन हिंदूवादी संगठनों से जुड़े भाजपा के लोग यह प्रदर्शन करते हैं कि हम ही गौरक्षक हैं और उन की सरकार ने ही पूर्व में गौवध बंद किया है. बिक्री के लिए ले जाए जाने वाले पशु झुंड को देखते ही ये लोग शोर मचा देते हैं कि यह पशुधन कटने जा रहा है.
मोदी सरकार के पिछले व मौजूदा कार्यकाल में ‘मौब लिंचिंग-मौब लिंचिंग’ का शोर गूंज रहा है. गांवदेहातों में खौफ फैला हुआ है. देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि हिंदू और मुसलमान एकदूसरे को शक की निगाह से देखने लगे हैं. हिंदू समाज को भड़काने और उन के दिमाग में यह बिठाने की कोशिश की जा रही है कि मुसलमान सिर्फ गायों को मारते हैं. हिंदुत्वहिंदुत्व का शोर मचा कर मुसलमानों और दलितों की हत्या का खौफनाक खेल खेला जा रहा है. देश में गौरक्षकों के नाम पर हत्यारों के गिरोह पैदा हो गए हैं. इन के जरिए गुंडागर्दी फैला कर लोगों में भय पैदा किया जा रहा है. इन के जरिए भावनाओं को भड़का कर धु्रवीकरण किया जा रहा है.
हरियाणा के नूह जिले के कोलगांव में रोतीकलपती अस्मीना को जा कर देखिए. उस के 26 साल के जवान बेटे रकबर को इन गौरक्षकों ने पीटपीट कर मार डाला था. उस की आंखों से आज भी बेटे को याद कर के जारजार आंसू बहते हैं. उस के जवान बेटे का कुसूर क्या था? वह सीधासादा ग्वाला अपने पिता और दोस्त के साथ बाजार से दुधारू गाएं खरीद कर ला रहा था. गायभैंस से तो उस का घर चलता था, उन्हीं का दूध बेच कर 7 बच्चों के परिवार को उस की मां अस्मीना ने पाला था.
अस्मीना और उस का बेटा रकबर अपने जानवरों से प्यार करता था. मगर गायों को प्यार करने वाले, उन को सानीपानी देने वाले, उन को तालाब पर ले जा कर रोज नहलाने वाले, दिनरात उन से प्यारदुलार करने वाले रकबर को गौरक्षकों ने गौतस्कर घोषित कर के लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. रकबर के दर्द की कल्पना ही थर्रा देती है. और आज तक उस को मारने वाले खुले घूम रहे हैं, क्योंकि उन्हें सत्ता की शह मिली हुई है.
सितंबर 2015 में दादरी में मोहम्मद अखलाक की हत्या ने पूरी दुनिया में सनसनी मचा दी थी. बूढ़े अखलाक को गौरक्षकों ने यह कह कर मार दिया कि उन के घर में गाय का गोश्त रखा है. उन के छोटे बेटे को मारमार कर अधमरा कर दिया. फोरैंसिक रिपोर्ट आने के बाद पता चला कि उन के घर की फ्रिज से जो मांस मिला था, वह गाय का नहीं, बल्कि बकरे का था. आज अखलाक के बड़े बेटे सरताज, जो भारतीय एयरफोर्स के अधिकारी हैं, अपने निर्दोष पिता के कत्ल पर इंसाफ पाने के लिए अदालत के चक्कर लगा रहे हैं. उन की मां और छोटे भाई की हालत ठीक नहीं है. किस ने दिया इस निर्दोष परिवार को इतना दुख? यह देश में गुंडाराज चलाने वाले लोगों की शह का नतीजा है कि अखलाक की हत्या करने वालों के नाम तक चार्जशीट से हटा दिए गए हैं.
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अखलाक से ले कर अब तक डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मौबलिंचिंग में मारे जा चुके हैं. गौरक्षा के नाम पर देशभर में अराजकता, अपराध और दहशत का माहौल बना हुआ है. गुजरात में 200 से अधिक ऐसे गौरक्षक समूह हैं जो अपनी आक्रामकता के कारण कानूनव्यवस्था के लिए चुनौती बने हुए हैं.
गौर करने वाली बात है कि मोदी सरकार के बीते कार्यकाल में बीफ का एक्सपोर्ट पिछली सरकारों के मुकाबले सब से ज्यादा रहा है. भाजपा राज में यह बहुत तेजी से बढ़ा है. यह भी गौर करने वाली बात है कि देश में सब से बड़े बूचड़खाने किसी मुसलमान या दलित के नहीं हैं, बल्कि इन के मालिक जैन और हिंदू लोग हैं. फिर ये गौरक्षक बीफ एक्सपोर्ट कंपनियों के मालिकों तक क्यों नहीं पहुंच पाते? मोदी सरकार इन बूचड़खानों को क्यों नहीं बंद करवा देती है? उन के लाइसैंस क्यों नहीं रद्द कर दिए जाते हैं? गौरक्षा की चिंता में इंसानों की हत्या करने वाले आखिर बीफ एक्सपोर्ट को खत्म करने के लिए सरकार पर दबाव क्यों नहीं बनाते?
मोदी सरकार ऐसा कभी चाहती ही नहीं है, क्योंकि यह धंधा नेताओं और व्यापारियों की कमाई का बड़ा स्रोत है. हैरत की बात है कि गोवा, जहां भाजपा की सरकार थी, में बीफ पर कोई पाबंदी नहीं थी. इन के ही मंत्री किरन रिजुजू और गोवा के तब के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर, जो बीफ के मुद्दे पर भाजपा से अलग राय रखते थे, के पीछे ये गौरक्षक कभी नहीं पड़े. न ही किसी भाजपाई ने बीफ खाने वाले इन भाजपा नेताओं की कभी निंदा की. इसलिए नहीं की क्योंकि भाजपा के लिए गाय सिर्फ सियासी धंधा है. इन्हें गायों की फिक्र न कभी थी, न है. गुजरात में जहरीला चारा खा कर 16 गाएं मर गईं. कौन जिम्मेदार है? कहां हैं ये गौरक्षक? क्यों नहीं पकड़ कर मारा उन को, जिन्होंने गायों को जहरीला चारा दिया?
27 अगस्त, 2017 को छत्तीसगढ़ में गौशाला चलाने वाले भाजपा के जमुल नगर पंचायत उपाध्यक्ष हरीश वर्मा की गौशाला से मरी हुई गायों के सैकड़ों शव और कंकाल निकले. उन कंकालों पर मौजूद बचाखुचा मांस कुत्ते नोच रहे थे. चारों तरफ सड़ांध फैली हुई थी. गौशाला में बड़ी संख्या में गाएं भूखीप्यासी मर गईं. गौशाला के नाम पर, गायों की सेवा के नाम पर हरीश ने 93 लाख रुपए सरकारी कोष से लिए. फिर भी गायों को सानीभूसी नहीं मिली. गौशाला में वैसे ही बूढ़ी, लाचार और बीमार गाएं लाई जाती हैं, ऐसे में अगर उन को वहां भी दानापानी न मिले तो कैसे तड़पतड़प कर मर जाती हैं, यह सोच कर ही आंसू निकल आते हैं.
हरीश वर्मा के पास एक तालाब है, जिस में मांगुर मछली पलती है. यह मछली मांस खाती है, इसलिए वह गौशाला में भूखप्यास से मरी हुई गायों को तालाब में डाल देता था और लोगों को पता ही नहीं चलता था. जब उस का तालाब बंद हुआ तब गायों के कंकाल सामने आए. कहां थे तब ये बजरंग दल वाले गौरक्षक?
गाय के नाम पर इस देश में सिर्फ राजनीति होती रही, मारपीट, दंगे, हत्याएं होती रहीं. मगर भाजपा राज में गायों के लिए कुछ नहीं हुआ. राजस्थान के जालौर जिले से 27 जुलाई, 2017 को भारी वर्षा के कारण एक गौशाला में 700 गाएं मर गईं. गौशाला में भूखप्यास के कारण गाएं इतनी अशक्त हो गई थीं कि उठ तक नहीं पाईं. जहां बैठी थीं वहीं पानीकीचड़ में सन गईं और मर गईं. बारिश के कारण चारा नष्ट हो गया. 3,300 गाएं घायल हो गईं.
वर्ष 2016 के जुलाई माह में जयपुर के हिंगोनिया गौशाला में 500 गायों की मौत हुई. साफ है कि देशभर में गौशालाओं में गायों को रखने के लिए बुनियादी ढांचा तक मुहैया नहीं है. गायों को मां का दर्जा देने वालों ने ही उन के चारागाहों पर कब्जे कर के बड़ीबड़ी कालोनियां खड़ी कर ली हैं. देशभर में गायों को चरने के लिए हरी घास के चारागाह गायब हो चुके हैं.
हरियाणा में 368 गौशालाएं हैं. 212 लाख गाएं हैं. 1950-52 में चकबंदी के दौरान पंचायती जमीन में चारागाहों के लिए जो जमीनें छोड़ी गई थीं, उन सभी पर अब कब्जा हो चुका है. बड़ीबड़ी कालोनियां, दुकानें और सरकारी दफ्तर बन गए हैं. पंचायत और विकास विभाग के पास कब्जे की रिपोर्टें भी हैं, लेकिन कोई इस पर कार्यवाही नहीं करना चाहता. आखिर ऐसी जगहों पर क्यों नहीं दिखाई देते गौरक्षा का नारा देने वाले?
बीते साल छत्तीसगढ़ में 200 से अधिक गायों की भूख और कुपोषण से मौत हो गई. किसी ने ललकारा क्यों नहीं? देशभर में सड़क दुर्घटनाओं में और पोलिथीन खाखा कर हजारों गाएं मरती हैं. सड़क दुर्घटना से मरने वाली गायों की संख्या को ले कर तो कोई आंकड़ा ही इस सरकार के पास नहीं है. क्या सड़कों पर लावारिस घूम रही गायों के लिए कुछ नहीं किया जाना चाहिए? गौरक्षा का नारा देने वालों को गायों के साथ हो रहे ये अत्याचार दिखाई नहीं देते?
अफसोसनाक है कि आज युवावर्ग को बरगला कर उस की सारी ऊर्जा गाय के नाम पर बेवकूफ बनाने और नफरत की राजनीति फैलाने के लिए खर्च की जा रही है. गौरक्षा के नाम पर आम लोगों को वहशी भीड़ में बदला जा रहा है. मोदी सरकार ने गाय के नाम पर आयोग बना दिए, मंत्रालय बना दिए, करोड़ों रुपए अपने मंत्रियोंअधिकारियों की जेबों में भर दिए, मगर गाय का भला न हुआ. सिर्फ भावनाएं भड़का कर निर्दोष मुसलमानों और दलितों का कत्ल हुआ. बेरोजगारी, गरीबी, कुपोषण और बुनियादी समस्याओं से देश की जनता का ध्यान भटकाने के लिए मोदीराज में गाय का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है. गाय वोट देती है, गाय नोट देती है, गाय, दरअसल, उन के लिए सिर्फ सियासी धंधा भर है.इस प्रकार चमड़ा व हड्डी व्यापार भी चौपट है.
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उपभोक्ताओं पर संकट
गौभक्ति के उन्माद की सजा छोटे किसानों व उपभोक्ताओं को भुगतनी पड़ रही है. छोटे किसानों की कृषि आज भी बैलों पर निर्भर है. पशु व्यापार ठप होने से उन्हें अच्छे बैल नहीं मिलते. उन्हें औनेपौने दामों में अनचाहे बैलों को खरीदना पड़ता है.
गौभक्ति की सजा उपभोक्ताओं को बहुत महंगी पड़ रही है. दुधारू पशु न मिलने से दूध का उत्पादन घट चुका है. पहले जो दूध 15-16 रुपए लिटर मिलता था, अब वह 45 रुपए लिटर मिल रहा है. बच्चे दूध को तरसते हैं. होटल व्यवसाय ठप होने की कगार पर है. सहकारी दुग्ध डेयरियों को इतना घाटा हो रहा है कि कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ रहे हैं. पूरी तरह से शुद्ध घी मिलना बंद हो चुका है.
सोचना यह है कि जब ब्राह्मण बूढ़ी गाय को कसाई को बेचते हैं तब गौभक्त क्यों चुप रहते हैं? बूढ़ी गाय बेचने वाले हिंदुओं को सख्त सजा देने की मांग क्यों नहीं उठाई जाती है?
जो लोग गाय पालते हैं वे दूध दुहने के बाद उसे डंडा मार कर भगा देते हैं.
33 करोड़ देवों का यह पुंज नालियों की टट्टी, पन्नी,
कचरा आदि खा कर सड़कों पर आवारा फिरता है और आवागमन में बाधक बनता है.
पशुधन का तड़प कर मरना
गौभक्ति के उन्माद से बचने के लिए व्यापारियों ने अब अनुपयोगी (बूढ़े) पशुओं को खरीदना बंद कर दिया है. जब पशु अपनेआप उठनेबैठने योग्य नहीं रहते तो मालिक उन्हें एकांत जगह में छोड़ कर उन के जिंदा रहते ही उन्हें तिलांजलि दे देते हैं.
ऐसे जानवरों की मृत्यु देखी नहीं जाती है. भूखेप्यासे एक ही स्थान पर पड़े रहते हैं, कीड़े पड़ जाते हैं.
कौआ, चील, गिद्ध आदि चोंच मारते हैं, कुत्ता, सियार व अन्य हिंसक जानवर उन की खालें खींचते हैं.
सोचना यह है कि बूढ़े पशुओं को महीनों तड़पातड़पा कर मारना अच्छा है या एक झटके में प्राण लेना? क्या यही गौभक्ति है? ऐसी तड़प से बचने के लिए आज असाध्य रोगों से पीडि़त व्यक्ति तक सरकार से इच्छामृत्यु का अधिकार मांग रहे हैं.
हां, गौरक्षा के नाम पर खूब कमाई हो रही है. गौसदनों को सरकारी पैसा मिल रहा है और अंधविश्वासी लोगों से चंदा भी. गौभक्ति के उन्माद से लोगों की रोजीरोटी छिन रही है, उपभोक्ता परेशान हैं, सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं, भ्रष्टाचार पनप रहा है और बूढ़े पशुओं की तड़प देख कर हृदय कांप उठता है.