देश में अमीर और गरीब के बीच अंतर बढता जा रहा है. आर्थिक नीतियों का गरीबों की आर्थिक दशा पर बुरा असर पड़ रहा है. क्रेडिट स्विस की ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2018 के अनुसार देश के 10 प्रतिशत सब से अमीर लोगों के पास तीन चौथाई से ज्यादा संपत्ति है. यह संपत्ति लगभग 77.4 प्रतिशत है.
इस के विपरीत सब से गरीब 60 प्रतिशत आबादी के पास सिर्फ 4.7 प्रतिशत संपत्ति है. जानकारों के अनुसार प्रतिदिन दो डौलर से कम आय को पैमाना माना जाए तो देश में गरीबी पिछले 10-12 सालों में 55 प्रतिशत से 28 प्रतिशत रह गई है. देश में मध्य वर्ग भी तेजी से उभर रहा है पर संपत्ति में गरीबों को पर्याप्त हिस्सा नहीं मिल पा रहा है.
इसी कारण सब से अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास जितनी दौलत है, उस का दस प्रतिशत हिस्सा भी सब से गरीब 60 प्रतिशत आबादी के पास नहीं है.
देश में 91 प्रतिशत वयस्क आबादी के पास 10 हजार डौलर यानी करीब 74.4 लाख रुपए से कम संपत्ति है जबकि 0.6 प्रतिशत वयस्कों की संपत्ति 7.5 करोड़ रुपए से अधिक है.
औसत आय में अंतर के मामले में अमेरिका, आस्ट्रेलिया जैसे देश भारत, चीन और ब्राजील जैसे विकासशील देशों से कहीं आगे हैं. भारत में प्रति वयस्क औसत आय 1289 डौलर, चीन में 16,133 डौलर, ब्राजील में 4263 डौलर, अमेरिका में 61,667 डौलर है. भारत प्रति व्यक्ति औसत संपत्ति के मामले में 128वें स्थान पर है.
आर्थिक गैरबराबरी को आंकने वाले गिनी वेल्थ कोफिसिएंट के अनुसार 2013 में भारत में असमानता का स्तर 81. 3 प्रतिशत था जो 2018 में 85.4 प्रतिशत पहुंच गया. इस का अर्थ अमीरों और गरीबों के बीच खाई और चौड़ी हो रही है.
सरकार की विभिन्न विकास योजनाओं के चलते लाखों गरीब विस्थापित हो गए और लाखों विस्थापन के कगार पर है. इस का असर इन लोगों के रोजगार पर पड़ा है. सरकार की नोटबंदी की वजह से पिछले समय से लाखों छोटे कारोबारी, रेहड़ी, पटरी, खोमचे वालों को रोजगार छिन गया. शहरों में रोजगार के लिए आए इन लोगों को वापस गांव जाना पड़ा या दूसरे शहर में पलायन करना पड़ा.
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा रोजगार और विकास के बड़ेबड़े दावे किए जाते हैं लेकिन उन की पोल रोजगार की तलाश में बड़ी तादाद में इधर से उधर आजा रहे लोग खोल रहे हैं. यही वजह है कि कभी उत्तरप्रदेश, बिहार के लोगों को महाराष्ट्र से खदेड़ा जाता है तो कभी गुजरात से.
असल में यह कमजोरी उन राज्य सरकारों की है जो अपने लोगों को उचित रोजगार मुहैया कराने में नाकाम रही हैं. उन की इस नाकामी की वजह से ही लोगों को अपना घर, अपना परिवार, अपना प्रदेश छोड़ कर मजबूरन दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ रहा है.
लिहाजा सरकारों की नीतियों का दंश गरीब लोग भुगत रहे हैं. सरकारों की योजनाएं और नीतियां अमीरों को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं जिन में गरीबों को रोजीरोटी से हाथ धोना पड़ता है.
किसी भी कल्याणकारी सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने राज्य के नागरिकों को रोजगार के पर्याप्त साधन, सुविधाएं और माहौल उपलब्ध कराए पर यह नहीं हो पा रहा है. अमीरी और गरीबी के बीच सरकारी नीतियों और मंशाओं की वजह से फासला बढ़ रहा है.