लोगों की धर्मांधता भी कई तरह की मुश्किलों की जड़ है. धर्म के धंधेबाज जनता को बेवकूफ बनाते हैं. कमाई करते हैं. ऐसे धंधेबाजों की हमारे देश में कमी नहीं है. धार्मिक भावनाओं को भुनाने वाले ये लोग तरहतरह के ललचाऊ जाल बिछाते हैं. लोगों को चूना लगाते हैं और मौज उड़ाते हैं. सितंबर 2023 में मदुरै में एक बोगी में आग लगने से 10 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए. चूंकि यह मामला मदुरै में हुआ, इस को 2002 में गुजरात के गोधरा की ट्रेन की आग की तरह वोटों के लिए भुनाया नहीं जा सकता. बहरहाल, इस घटना में टूर औपरेटर के खिलाफ मुकदमा हुआ पर उन के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा जा रहा जो धंधे को चमकाने के लिए भाषण देते हैं, धर्मों का उद्घाटन करते फिरते हैं.

शायद जैसे गोधरा की बोगी में स्टोव से आग लगी थी, वैसे ही यहां गैस के चूल्हे से आग लगी क्योंकि ये लोग अपना खाना खुद पकाते हैं. दक्षिण भारत में स्वामी दर्शन के लिए ये यात्री लखनऊ से चले थे. धर्म से जुड़ा एक बहुत बड़ा कारोबार धार्मिक यात्राएं कराने का भी बहुत तेजी से फलफूल रहा है. रेल, बस, टैक्सी, हवाई जहाज आदि से तीर्थों की धार्मिक यात्राएं कराने वाले भक्तों की जेब हलकी करने में लगे रहते हैं. अपने धंधे व फायदे के लिए लोगों को जहांतहां ले जाना ही उन का पहला मकसद होता है, जिसे भक्त नहीं सम झते. कंप्यूटर पर तरहतरह की वैबसाइटें बनी हैं जिन में पहले पैसे ले कर तरहतरह की सुविधाएं देने का वादा कर अंधभक्तों को बेवकूफ बनाया जा रहा है.

सैरसपाटे की तर्ज पर धार्मिक यात्राएं करने वाले  झट तैयार हो जाते हैं और ‘पुण्य’ भी मिल जाता है, वही पुण्य जिसे किसी ने नहीं देखा. जब से भगवा बाजार नरेंद्र मोदी की सरकार आने से चमका है, तीर्थयात्राओं का धंधा भी चौतरफा हो गया है. देश के हर इलाके में टूरिस्ट बसों व टैक्सीकार वालों ने अपना धंधा चलाने के लिए तिरुपति बालाजी (राजस्थान), नैमीशारण्य, हरिद्वार, मथुरा वृदावंन, अयोध्या, वाराणसी, अजमेर आदि अनेक धार्मिक शहरों के लिए यात्रियों के टूर ले जाने का पूरा व पक्का इंतजाम कर रखा है. अब आयोध्या की तैयारी हो रही है. उन के एजेंट तयशुदा कमीशन पर भक्तों को ढूंढ़ कर लाते हैं और इस तरह सौदा पटवाते हैं कि धार्मिक लोग  झट सीट बुक कराने को तैयार हो जाते हैं.

हमारे देश में धार्मिक यात्राएं करने के लिए इतनी ज्यादा गुंजाइश है कि सफर में कईकई महीने लग जाते हैं. इसलिए अब सिर्फ बसों से ही नहीं, रेल और हवाई जहाज से भी यात्राएं कराई जाती हैं. इस के लिए देशभर के अखबारों में अकसर इश्तिहार छपते रते हैं. स्पैशल तीर्थयात्रा के नाम पर दर्शन कराने, शुद्ध घी से तैयार खाने लाने ले जाने, ठहराने, घुमानेफिराने का वादा किया जाता है. वैसे भी, नए हाईवे बन गए हैं, इसलिए सफर करना आसान हो गया है. फिर भी घर से बाहर निकलते ही मुश्किलें शुरू हो जाती हैं. इसलिए बेवजह सफर करना अब बुद्धिमानी नहीं है. फिर भी धर्मांध लोग जानबू झ कर यात्राओं की ओखली में अपना सिर देने को तैयार रहते हैं. वे प्रचार के शिकार हो जाते हैं. धार्मिक यात्राएं कराने वाले जोरदार प्रचार के हथकंडे खूब अपनाते हैं.

औनलाइन बुकिंग का सच

एक ऐसा ही विज्ञापन औनलाइन देख कर बरेली की श्रीमती नयना देवी ने भी अपनी सीट बुक कराई थी. रेल से 26 दिनों की तीर्थयात्रा के लिए उन्होंने मुंहमांगे रुपए दिए थे क्योंकि औनलाइन पर बहस या बारगेन की सुविधा नहीं है. उन्होंने बताया कि, ‘‘सफर के दौरान पता लगा कि दिक्कतें क्या होती हैं? रोज सवेरे शौच के लिए लाइन लग जाती थी. यों तो रेल के हर डब्बे में 2 टौयलेट होते हैं लेकिन उन में से एक पर यात्रा कराने वाली कंपनी का कब्जा रहता था. वे उस में खाना पकाने का समान भरे रहते थे. इस के अलावा रास्तेभर नहाने की बड़ी दिक्कत हुई. औरतों को भी रेल की बोगियों पर खुले में ही नहाना पड़ता था. बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी.’’ यह बोगी स्पैशल बुक कराई गई थी जो दूसरी ट्रेनों के साथ जुड़ जाती थी.

मिलतेजुलते नामों वाली कई कंपनियां बरसों से रेल के जरिए तीर्थयात्रा कराने का काम कर रही हैं. सभी खुद के असली होने का दावा करती हैं. जगहजगह इन कंपनियों के अपने बुकिंग दफ्तर व एजेंट होते हैं. वे कथा, कीर्तन, सत्संग और मंदिरों में जाजा कर अपने ग्राहक पटाते व ढूंढ़ते हैं और कंपनियों से कमीशन खाते हैं. मौजूदा भगवा सरकार के जमाने में प्रवचनों का भी दौर खूब बढ़ा है. इन से ग्राहक आसानी से मिल जाते हैं.

धार्मिक यात्रा का धंधा

भक्तगण अकसर मंदिरों के दर्शन करने या तीर्थों में पुण्य कमाने के मकसद से धार्मिक यात्राओं पर जाते हैं लेकिन उन की इन यात्राओं से फायदा उन्हीं का होता है जो यात्रा कराने का धंधा करते हैं और इसी की कमाई खाते हैं. भक्त सोचते हैं कि तीर्थयात्रा से उन के दुख दूर होंगे व सुखशांति मिलेगी. ऐसा नहीं है. सारे तीर्थों की यात्रा करने वाले भी कष्टों से घिरे रहते हैं. फिर भी लोग नहीं मानते.

2015 में पाकिस्तान गए यात्रियों की ट्रेन भी लरकाना शहर के बाहर जल गई. इस ट्रेन से हिंदू सिख और बागड़ी ननकाना साहब से लौट रहे थे. अपवादों को छोड़ कर अकसर हर अमीरगरीब अपनी जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा धार्मिक यात्राएं करना चाहता है. हमारे धर्मग्रंथों में लिखा है कि- ‘‘जो बारबार तीर्थों में स्नान करने जाता है वह सब से अच्छा माना जाता है.’’ (श्रीमद्भागवत 3-33-7).

इसीलिए, लोगों के मन में यह बात दबी रहती है कि हर हाल में उन्हें तीर्थयात्रा जरूर करनी चाहिए,वरना उन्हें मोक्ष नहीं मिलेगा. बहुत से बूढ़े लोग इसी चक्कर में चारों धाम की यात्रा पर निकल जाते हैं. हर तीर्थयात्रा में धन देने की तो जरूरत होती ही है और इसीलिए यह धंधा फलफूल रहा है. धर्मग्रंथों में दान देने और तीर्थों में जाने की बातें एक ही सांस में कही जाती हैं न. देश में धार्मिक आस्था रखने वाले बहुत ज्यादा हैं. उसी के नाम पर भक्तों को धार्मिक यात्राएं कराई जाती हैं. तीर्थों व मंदिरों की महिमा गागा कर उन का गुणगान किया जाता है. अंधविश्वास को जगाया जाता है. धार्मिक यात्राएं करा के मुनाफा कमाने वालों को सफर की दिक्कतों से कुछ लेनादेना नहीं होता. वे तो बस अपने ग्राहकों को पटाते हैं.

उत्तराखंड के स्पैशल टास्क फोर्स ने एक ऐसे गैंग को पकड़ा है जो चारधाम यात्रा के लिए औनलाइन हैलिकौप्टर बुकिंग एक फेक यानी नकली बैवसाइट पर करता था. इस ने कम से कम 6,100 यात्रियों को ठगा है. इस पर कोई हल्ला नहीं कर सका क्योंकि हल्ले से पर्यटक भाग सकते हैं. धार्मिक यात्राओं में औरतें तो मर्दों से भी आगे रहती हैं. वे  झट तैयार हो जाती हैं. उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में सहसवान के पास 4 भक्त अपने बीवीबच्चों के साथ देवी की जात के लिए कादराबाद जा रहे थे. रास्ते में बदमाशों ने सरेआम उन्हें लूट लिया. पतियों के हाथपांव बांध कर उन्हीं के सामने चारों औरतों के साथ गैंगरेप भी किया.

लुटेपिटे भक्तों में से एक रामकिशोर ने कहा, ‘‘हादसे के बाद उन की फरियाद न तो पुलिस ने सुनी और न उस देवी मां ने जिस के मंदिर में वे मनौती मांगने जा रहे थे.’’ जरा सी चोट खाते ही भरम टूट कर सच सामने आ गया. इस हादसे के शिकार अनपढ़ रामाकृष्णन ने अस्पताल में बताया कि उन के गांव के मंदिर का पुजारी 40 भक्तों को तीर्थयात्रा पर ले कर निकला था. इस के बदले में उस ने सभी से 30-30 हजार रुपए इकट्ठे किए थे. रेल में रिजर्वेशन न होने के कारण वे अपना सफर बसों और ट्रक वगैरह से ही पूरा कर रहे थे कि बीच में ही यह हादसा हो गया. इस हालत में इतनी दूर से घर कैसे वापस जाएंगे? हड्डीपसली टूटने के बाद भक्तों को यात्रा बेकार लगने लगी थी.

देश के इस कोने से उस कोने तक यात्राएं कराने वाले वाहनों की टक्कर तो होती ही रहती है. लगातार कईकई रात जाग कर चलने वाले ड्राइवर ऊंघने लगते हैं. रास्तों की सही जानकारी नहीं होती. ऊपर से बस या ट्रक में सवार भक्तगण लगातार भजनकीर्तन करते हुए चलते हैं. इस से ड्राइवर का ध्यान बंटता है और वाहन टकरा कर पलट जाते हैं.

पछतावे के सिवा कुछ नहीं

भगवान के नाम पर अपना तनमनधन और जान तक सब न्योछावर करने वाले भक्त बेहद लंबीलंबी दूर की यात्राएं भी माल ढोने वाले ट्रक जैसे तकलीफदेह वाहनों से भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. धार्मिक यात्रा पूरी करने के जोश में उन्हें यह भी नहीं सू झता कि सफर के दौरान व बाद में उन की क्या हालत होगी? इसीलिए उन के घायल या बीमार होने का खतरा बना रहता है. यात्रा कराने वाले ट्रैवल एजेंट भक्तों को भरोसा दिलाते रहते हैं कि भगवान सब भला करेगा. वही है जो सब की सुनता है और रक्षा करता है. यह बात अलग है कि वक्त पड़ने पर रोना व पछताना पड़ता है. इसलिए बाद के रोनेगाने से तो पहले ही सावधानी भली.

धर्म के नाम पर अंधेरगर्दी

अमरनाथ की यात्रा करने वाले मुसाफिरों के सिर पर हर साल आंतकवादियों का खतरा बना रहता है. उन की हिफाजत के लिए भारी तादाद में पुसिस बल लगाया जाता है. एक ओर धार्मिक यात्रियों की जानमाल को बचाना एक चुनौती हो जाता है, वहीं दूसरी ओर कहींकहीं धार्मिक यात्राएं करने वाले दूसरों के लिए खासी मुसीबत खड़ी कर देते हैं. दिल्ली- देहरादून रोड पर हर साल सावन में और शिवरात्रि पर यही होता है. मेन रोड बंद कर के वाहनों को इधरउधर से निकाला जाता है.

शास्त्रीनगर, मेरठ के एस एन सिंह अपने परिवार के साथ हरिद्वार जा रहे थे. तभी बीच में अचानक उन्हें कांवड़ लाने वालों ने घेर लिया. इन्होंने बताया कि बोल बम बोल बम करते हुए अनगिनत कांवाडि़ए पूरी सड़क घेर कर चल रहे थे. वे आतेजाते वाहनों से खुद ही पंगा ले रहे थे. लेकिन हमारे देश में सब से ज्यादा अराजकता और अंधेरगर्दी तो धर्म के नाम पर फैली हुई है. भक्तों की बेकाबू भीड़ के आगे पुलिस प्रशासन गूंगा, बहरा व बौना हो जाता है. इसी का नतीजा मु झे भुगतना पड़ा. जरा सी टक्कर होने पर दंगे हो जाते हैं. नशे में डूबे हुए कांवड़ यात्री गाडि़यों को तोड़ देते हैं.

धार्मिक यात्राएं करने वालों की भीड़ किसी से भी भिड़ जाती है. वह जम कर उत्पात मचाती है. पैदल कांवड़ लाने वाले बहुत से शिवभक्त भांग, सुलफा, गांजा पीते हैं. क्या नशा, हुल्लड़बाजी और गुंडागर्दी करना ही धर्म रह गया है? ऐसे लोग तो धर्म का हिस्सा हैं क्योंकि ये ही धर्म के प्रति डर पैदा करते हैं. ये गैंग अपनी बेजा हरकतों से धार्मिक यात्राओं में रह कर भी दूसरों को परेशान करते हैं.

 

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...