कुछ अच्छा हुआ तो भगवान, कुछ बुरा हुआ तो भगवान. कुछ हुआ तो भगवान, कुछ नहीं हुआ तो भगवान. आखिर भगवान हर मसले के बीच में कैसे घुस गया? हर सवाल का जवाब भगवान कैसे बन गया? भगवान सच है या मुफ्तखोरों की बनाई कोरी कल्पना है? क्या भगवान पर हमारा विश्वास करना सही है? यह सब जानने व सम?ाने के लिए पढ़ें यह लेख.
हे भगवान, जरा बताओ तो कि भगवान है या नहीं? यह सवाल सदियों से पूछा जा रहा है और आज ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कितने ही देशों की सरकारें सच में इस काल्पनिक भगवान के भरोसे हैं. भगवान को बेचने वाले धर्म के दुकानदारों ने सैकड़ों सालों से एक विशाल स्ट्रकचर खड़ा किया है और लोगों को उस काल्पनिक भगवान के पास लाने के लिए मंदिर, मसजिद, चर्च, मोनैस्ट्री, गुरुद्वारों से ले कर पिरामिड और मकबरे तक बनवाए हैं.
आज विश्व में फैले तनाव के पीछे भगवान का अस्तित्व ज्यादा है, दूसरों की जमीन या फर्म हड़पने की हरकतें कम. धर्मों के दुकानदार भगवान को विश्व रचयिता घोषित कर के सारी जनता को अपने कहे अनुसार चलने को मजबूर कर रहे हैं.
ज्ञान और श्रद्धा एक समस्या के दो उत्तर हैं. जब हम अपने प्रश्नों के समाधान में कोई तार्किक व तथ्यों पर आधारित उत्तर प्राप्त करते हैं तो उसे ज्ञान कहते हैं. इस के विपरीत अगर कोई बिना प्रश्न पूछे किसी काम को अपने सवालों का उत्तर मान ले तो उसे श्रद्धा कहते हैं.
जहां विश्वास यानी फेथ या बिलीव आ जाता है, वहां विचार नहीं होता. ज्ञान होता है खुद का देखा, परखा, सत्य का प्रकाश. श्रद्धा होती है एक अंधे द्वारा रोशनी का विवरण. जो समाज ऐसे अंधों द्वारा दी गई प्रकाश की परिभाषा पर चल रहा हो उसे यह एहसास दिलाना आवश्यक है कि वह खुद ही अपनी आंखें खोल कर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त कर सकता है.
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