जिस व्यक्ति ने संत का चोला पहन लिया, वह मनुष्यों के बनाए तमाम कानूनों से ऊपर समझ लिया जाता है. इस तरह की सोच धर्मांध लोगों में ही नहीं, सरकारी मुलाजिमों में गहरे तक बैठी हुई है. दिल्ली पुलिस ने बहुचर्चित दाती दुष्कर्म मामले में हाईकोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में खुद ही फैसला दे दिया कि पीड़ित लड़की के बयानों में विरोधाभास है और आरोपी दाती महाराज के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं है. आरोप पत्र में पुलिस ने पीड़िता को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था.

अदालत ने पुलिस की जांच पर सवाल उठाते हुए मामला अपराध शाखा से ले कर सीबीआई को देने का आदेश दे कर इंसाफ का रास्ता ही साफ करने की कोशिश की है.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन एवं न्यायाधीश वीके राव की पीठ ने पीड़ित युवती की शिकायत स्वीकार करते हुए जांच सीबीआई को देने का आदेश दिया है. पीठ ने जांच में खामियां बरतने पर कि इस मामले की पूरी जांच प्रभावित नजर आ रही है.

पीठ ने आदेश में कहा है कि यह विडंबना ही है कि अगर इस मामले के आरोप पत्र को देखा जाए तो जांच एजेंसी ने पीड़िता के बयान लेने के बाद आरोपी को गिरफ्तार करने की बजाय उसे ही कठघरे में खड़ा कर दिया है. पीड़िता ने दाती महाराज और उन के तीन भाईयों पर गंभीर आरोप लगाए थे. इस के बावजूद आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया.

दिल्ली पुलिस की ओर से आरोप पत्र में कहा गया कि इस मामले में शिकायतकर्ता के बयानों में विरोधाभास बताया गया है पर हाईकोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र इस तरह तैयार किया गया है कि पीड़िता के बयान विरोधाभासी हैं जबकि पुलिस का काम उन बयानों के आधार पर सच तक पहुंचना था न कि आरोपियों को पीड़िता के आरोपों को झुठलाना. लेकिन ऐसा किया गया जो कि इस तरह के गंभीर अपराध के मामले में न्यायसंगत नहीं है.

आरोप पत्र में यह भी कहा गया है कि मुख्य पीड़िता के अलावा इस मामले में 54 अन्य लड़कियों को गवाह बनाया गया है. ज्यादातर ने आरोपों को गलत बताया है. इस पर हाईकोर्ट ने कहा है कि जिस तरह से यौन शोषण के मामले की जांच पुलिस ने की है वह चौंकाने वाली है. एक साथ 4 दर्जन से ज्यादा महिलाओं को एक बस में  ले जाया जाता है और वहां उन से पूछताछ होती है. प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि यह जैसे इन्हें सैरसपाटे के उद्देश्य से लाया गया हो. इस तरह की जांच पर कैसे भरोसा किया जा सकता है. यह आश्यर्चजनक है कि  4 दर्जन से ज्यादा महिलाओं से एक साथ पूछताछ पुलिस से किस प्रकार संभव की.

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस का यह रवैया आरोपियों के प्रति उन के प्रभाव को दर्शाता है. अदालत ने यह भी कहा कि अगर कोई विरोधाभास है भी तो अदालत जमानत के वक्त आरोपी को राहत दे सकती है लेकिन इस के लिए गिरफ्तारी जरूरी है.

राजस्थान की एक युवती ने दाती महाराज पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. पुलिस कई महीनों से जांच में जुटी थी. युवती ने दिल्ली के फतेहपुर बेरी और राजस्थान के पाली स्थित आश्रम में बलात्कार किए जाने का आरोप लगाया था.

दरअसल बाबाओं के ऊपर पहले तो कोई आरोप लगाने की हिम्मत नहीं कर सकता. अगर कोई साहस करता भी है तो पुलिस मामला दर्ज करने से कतराती है. मामला दर्ज हो भी गया तो जांच में कई तरह के दबाव का सामना करना पड़ता है. दाती के मामले में भी संभव है  पुलिस को दबाव झेलना पड़ा हो क्योंकि धार्मिक प्रवचन देते वक्त कई टेलीविजन चैनलों के संपर्क में आने से बाबाओं की पहुंच नेताओं, अफसरों और मीडिया के प्रभावशाली लोगों से हो जाती है. इस दौरान कई बाबा बेशुमार दौलत के मालिक बन जाते हैं इसलिए पैसा और प्रभाव किसी भी तरह की जांच पर असर डालने के लिए काफी है.

इस देश में ऐसे अनगिनत मामले आते हैं जहां पुलिस पीड़ित व्यक्ति के न्याय की राह में रोड़ा डालने से नहीं चूकती. उच्च अदालतों का ही यह साहस है कि वह पीड़ित को आखिरी तक न्याय दिलाने की कोशिश करती है.

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