जेल की घड़ी की सुई 12 बजा कर आगे बढ़ रही थी. एल आकार के उस लंबे गलियारे के आखिरी छोर पर असलम तोता बैरक के सींखचों से टेक लगाए खड़ा था. इकराम मिर्ची उस से कह रहा था, ‘‘इस तरह कैसे चलेगा असलमभाई, एक साल में ही अनूप पाडि़या ने पूरा धंधा कब्जा लिया. तुम्हारे हाथों से निवाला खाने वाला जेल का डिप्टी जेलर कैसे करिश्माई ढंग से अनूप का मुरीद हो गया. कदमकदम पर तुम्हारी दया को तरसने वाला शकील भी उस की शागिर्दी में पहुंच गया.
‘‘आखिर ऐसा कौन सा करिश्मा हुआ कि वसूली के हर मामले पर उस की पकड़ हो गई. आज हम न केवल डरेसहमे हैं, दुत्कारे जा रहे हैं, बल्कि रोज पिट रहे हैं. हैरानी की बात तो यह है कि कभी तुम्हारा भरोसेमंद रहा इमरान अब शकील के साथ अनूप के लिए माल कूट रहा है. बंजारा दिखावे के लिए तुम्हारी सरपरस्ती में कैंटीन चला रहा है, लेकिन हकीकत में वह भी अनूप की परछाई बना हुआ है.’’
मिर्ची ने भड़ास निकालना जारी रखा, ‘‘अफसोस तो इस बात का है उस्ताद कि कुछ समय पहले तक लोग असलम तोता और शकील बकरे की दोस्ती को सलाम करते थे. जेल में सजा काटते हुए हम कमाई करते रहे और डेढ़ हजार कैदियों में से कोई भी कभी हम से नजरें नहीं मिला सका. लेकिन अनूप की एक ही फूंक में हमारा गिरोह ताश के पत्तों की तरह बिखर गए. जेल में चर्चा है कि जेलर ने कभी असलम तोता और शकील बकरा के साथियों पर जुल्म ढाने की हिम्मत नहीं की, अब हम उसी डिप्टी जेलर और उस के नए साथियों से न सिर्फ रोज जलील हो रहे हैं, बल्कि पिट भी रहे हैं.’’