धर्म के नाम पर पहले लोगों को अपमानित, तिरस्कृत और बहिष्कृत करो, फिर धर्म के ही नाम पर, कीमत ले कर, तरहतरह की दलीलें दे कर गले लगाने का ड्रामा करो. धर्म का पैसा उगाहने और स्वार्थ साधने का यह पुराना फंडा है जिसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने शूद्रों, किन्नरों, बंदरों, भालुओं और रीछों तक पर आजमाया था. और अब मशहूर कथावाचक मोरारी बापू ने अपने आराध्य के पदचिह्नों पर चलते वेश्याओं पर आजमा डाला.
मकसद कहने को भले ही वेश्याओं का उद्धार करना हो लेकिन असल मंशा वेश्याओं से भी दान झटकने और उन्हें धर्म का ग्राहक बनाने की थी क्योंकि उन के पास इफरात से पैसा होता है.
अयोध्या में पिछली 22 से 30 दिसंबर तक संपन्न हुई मोरारी बापू की चर्चित रामकथा की थीम इस बार गणिकाएं थीं, जिन्हें वेश्याएं और सैक्सवर्कर भी कहा जाता है. रामकथा की कथित महिमा वाकई अपरंपार है जिसे सुन कर मानव मात्र तो दूर की बात है, पशुपक्षी, पेड़पौधे और कीड़ेमकोड़े तक तर जाते हैं. मोरारी बापू इस बार वेश्याओं को तारने के लिए इस हद तक उतारु हो आए कि उन के कल्याण के लिए खुद मुंबई के देहव्यापार के लिए मशहूर इलाके कमाठीपुरा जा पहुंचे.
बदनाम इलाके में संत
जब सारी दुनिया अंधेरा कर सोने की तैयारी कर रही होती है तब रात को कमाठीपुरा की जगमगाहट देखने काबिल होती है. वेश्याएं सजधज कर छज्जों और दरवाजों के बाहर खड़ी ग्राहकों को बुला और लुभा रही होती हैं. सस्ते क्रीम, पाउडर और लिपस्टिक से सजीधजी इन वेश्याओं के भीतर कहने को ही एक औरत होती है जिस का काम यानी पेशा पुरुषों को देहसुख देना होता है. देहजीवा कही जाने वाली इन वेश्याओं का समाज में कोई सम्मान न पहले कभी था न आज है और अब अयोध्या में रामकथा सुनने के बाद भी न होगा. ऐसा कहने की कोई ठोस या तार्किक वजह नहीं.
मोरारी बापू 13 दिसंबर की सुबह इस बदनाम इलाके में पहुंचे थे तो वहां खासी हलचल मच गई थी. उन के चरणकमल कमाठीपुरा में पड़ने से पहले ही उन की शिष्यमंडली उस इलाके में प्रचार कर चुकी थी कि भगवान का एक आदमी यहां आने वाला है, गोया कि पिछली रात जो आए थे या पहले जो आते रहे हैं वे शैतान के आदमी थे और भगवान की उन पर चलती नहीं है.
बहरहाल, मोरारी बापू कमाठीपुरा पहुंचे, वहां की वेश्याओं से मिले और उन्हें रामकथा सुनने के लिए अयोध्या आने का आमंत्रण दिया. उन्होंने तुलसीदास का उदाहरण दिया कि उन्होंने एक गणिका वासंती को उस के आग्रह पर रामकथा सुना कर उस का उद्धार किया था. पर वे थोक में वेश्याओं का उद्धार करना चाहते हैं.
वेश्याएं कहीं उद्धारित होने से मना न कर दें, इसलिए मोरारी बापू ने उन के मुंबई से अयोध्या आनेजाने का न केवल किराया दिया, बल्कि अयोध्या में उन के ठहरने व खानेपीने का इंतजाम भी किया.
मौजूदा दौर के इस मशहूर रामकथा वाचक से वेश्याओं ने धरमकरम की कोई बात नहीं की, बल्कि उन्हें हस्ती जान कर वही रोना रोया जिसे वे अकसर समाज कल्याण संस्थाओं, पत्रकारों, शोधार्थियों और नेताओं के सामने रोते रहने की आदी हो गई हैं कि वे बड़ी बदहाली में जी रही हैं. कमाठीपुरा में बुनियादी सहूलियतें नहीं हैं. आएदिन पुलिस वाले तंग करते हैं और उन के बच्चों का कोई सुरक्षित भविष्य नहीं है.
वेश्याओं की इस घोषित दुर्दशा का कोई इलाज मोरारी बापू के पास नहीं था, सिवा इस मूक आश्वासन के कि आओ, अयोध्या में रामकथा सुनो, यह जन्म तो पापों में गया, शायद अगला सुधर जाए. लेकिन मोरारी बापू यह नहीं बता पाए कि वेश्याएं क्यों हैं और हैं भी तो उन्हें नफरत की निगाह से क्यों देखा जाता है.
बदबूदार गलियां
कमाठीपुरा की बदहाली देख कोई भी गैरवेश्यागामी पुरुष द्रवित हो सकता है जहां सुबह तक शराब की दुर्गंध फैली रहती है. वेश्याओं के बच्चे खेलते नजर आते हैं पर उन का वाकई कोई भविष्य नहीं होता. बदबूदार गलियों के इस नर्क के बारे में कई किस्से मशहूर हैं जिन में से एक यह है कि प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता कादर खान ने अपना बचपन यहीं गुजारा था. अपनी बायोपिक में कादर खान ने विस्तार से कमाठीपुरा जैसे इलाकों की जिंदगी का खुलासा किया है.
1983 में प्रदर्शित श्याम बेनेगल कृत वेश्या प्रधान फिल्म ‘मंडी’ में भी बदनाम बस्तियों का सटीक चित्रण है कि कैसे राजाश्रय में रह रही वेश्याओं का इस्तेमाल राजनेता अपने स्वार्थ व पैसों के लिए करते हैं. इस फिल्म की मुख्य पात्र रुक्मणिबाई को शबाना आजमी ने सजीव किया था.
इन सब बातों या कहानियों से वेश्याओं का कोई भला नहीं हुआ. हुआ इतना भर कि लोगों ने उन की जिंदगी को दिलचस्पी से देखा और मान लिया कि इन का कुछ नहीं हो सकता क्योंकि ये भी शूद्रों की तरह अपने पूर्वजन्म के पापों का फल भुगत रही हैं, इसे ही प्रारब्ध कहते हैं.
यही साबित करने मोरारी बापू कमाठीपुरा पहुंचे थे. ऐसा कर उन्होंने कोई जोखिम नहीं उठाया था, बल्कि अपने धर्म के धंधे की ब्रैंडिंग की थी और खुद को कलियुग का तुलसीदास साबित करने की कोशिश की थी.
रामकथा सुनाने का शौक उन्हें है, तो वे कमाठीपुरा में भी उसे पूरा कर सकते थे. उद्धार किसी स्थान विशेष का मुहताज नहीं होता, क्योंकि बकौल रामकथा, राम अगर हैं तो सब जगह हैं और नहीं हैं तो फिर कहीं नहीं हैं.
लेकिन असल मंशा ग्राह?की और भीड़ बढ़ाने की थी, जिस में वे कामयाब रहे.
अयोध्या में कमाठीपुरा
अपने धंधे का प्रचारप्रसार कर मोरारी बापू अयोध्या वापस पहुंचे तो वहां उम्मीद के मुताबिक प्रायोजित विरोध उन का स्वागत कर रहा था. अयोध्या निवासियों ने वेश्याओं को बुलाए जाने का विरोध किया और धर्म के कुछ छोटेमोटे ठेकेदारों ने भी एतराज दर्ज कराया.
इस से हल्ला और मचा, और लोगों की उत्सुकता साल 2018 के आखिरी धार्मिक इवैंट रामकथा में और बढ़ गई. नतीजतन, भीड़ उम्मीद के मुताबिक आई. अब यह तय कर पाना मुश्किल नहीं है कि भीड़ रामकथा सुनने आई थी या इन वेश्याओं को देखने जो आम लोगों के आकर्षण का केंद्र हमेशा से रही हैं.
अपनी रामकथा में मोरारी बापू ने कैसे गणिका थीम को भुनाया, इस के पहले यह जान लेना जरूरी है कि इस रामकथा में वेश्याओं को आमंत्रित किए जाने का विरोध भी बड़े पैमाने पर हुआ था. धर्मसेना के अध्यक्ष संतोष दुबे, जो विवादित ढांचा ढहाए जाने के मुख्य अभियुक्तों में से एक हैं, का कहना था कि पवित्र नगर अयोध्या में सैक्सवर्कर्स को आमंत्रित कर के मोरारी बापू इस शहर को अपवित्र करना चाहते हैं. अगर उन्हें समाजसुधार के काम करने हैं तो उन्हें इस प्रकार के आयोजन नक्सली और रैडलाइट इलाकों में जा कर करना चाहिए.
वेश्याओं के अयोध्या आने से आहत एक हिंदूवादी नेता प्रवीण शर्मा ने तो मोरारी बापू की शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कर डाली जो खुद बेचारे हनुमान को दलित कहने पर तरहतरह की आलोचनाएं पहले से ही झेल रहे थे. इसलिए इस संवेदनशील मसले पर वे खामोश रहे.
अयोध्या के डांडिया मंदिर के महंत भरत व्यास ने भी मोरारी बापू के इस कृत्य की आलोचना करते कहा कि एक ऐसे शहर, जो धार्मिक नगरी के लिए प्रसिद्ध हो और जहां भगवान राम का जन्म हुआ हो, में सैक्सवर्कर्स का जमावड़ा ठीक नहीं, इस से लोगों में गलत संदेश जाएगा. अयोध्या आध्यात्मिक नगरी है, न कि समाजसुधार का केंद्र. मोरारी बापू को समाजसुधार करना है तो कहीं और करें, कथा करनी हो, तभी अयोध्या आएं.
इन 2-3 बयानों से ही धर्म का वास्तविक चेहरा सामने आ गया जिस से उम्मीद है कमाठीपुरा से अयोध्या लाई गई 200 वेश्याओं को समझ आ गया होगा कि उन्हें दरअसल अपमानित करने और उन की हैसियतऔकात व सामाजिक स्थिति बताने के लिए वहां ले जाया गया था.
वेश्याओं की तुलना नक्सलियों से की गई और यह भी कहा गया कि उन के आने से अयोध्या अपवित्र हो गई. अगर शहरों की पवित्रता वेश्याओं के न आने से ही है तो काशी, मथुरा, प्रयागराज और उज्जैन जैसे धार्मिक शहर तो मुद्दत से अपवित्र हैं क्योंकि वहां वेश्याएं इफरात से हैं.
इन बयानों की बाबत मोरारी बापू ने न तो वेश्याओं से माफी मांगी और न ही किसी तरह का खेद जाहिर किया. उलटे, वेश्याओं के लिए 11 लाख रुपए की घोषणा कर दी थी, ठीक वैसे ही जैसे किसी रेल हादसे में मृतकों और घायलों को सरकार मुआवजा देती है. मोरारी बापू की गुहार पर देखते ही देखते देशविदेश से करोड़ों रुपए इकट्ठा हो गए. पर यह भारीभरकम राशि किस माध्यम से वेश्याओं तक पहुंचाई जाएगी, यह पूरे तौर पर स्पष्ट नहीं किया गया.
ये वेश्याएं कमाठीपुरा में रोज इसी तरह से अपमानित होती हैं. इन के ग्राहक, दलाल और पुलिस वाले इन्हें रंडी कहते हैं. इन से हफ्तावसूली करने वाले गुंडों के हौसले बुलंद रहते हैं. अगर वेश्याएं उन्हें हफ्ता न दें तो ये लोग इस इलाके में इतना आतंक मचा देते हैं कि ग्राहक मारे डर के कमाठीपुरा की तरफ झांकते नहीं, जिस से वेश्याओं की आमदनी मारी जाती है.
इन समस्याओं, परेशानियों या शोषण की बाबत भी कहने को मोरारी बापू के पास कुछ नहीं था. हां, उन्होंने वेश्याओं को देवी, शगुन, गुरु और अप्सराएं जरूर कह दिया जो सोने के फ्रेम में मढ़ी हुई हैं. एक प्रचलित उदाहरण उन्होंने बंगाल का भी दे डाला कि वहां दुर्गा मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी गणिका के घर से ही आती है.
एक बात जरूर उन्होंने ईमानदारी से स्वीकारी कि सफेदपोश लोग भी इन के पास आते हैं, लेकिन उन में सच बोलने और कुबूलने की हिम्मत नहीं है.
वेश्याएं हैं ही क्यों
मोरारी बापू की रामकथा से इन वेश्याओं का कोई भला या उद्धार नहीं हुआ है, बल्कि उन्हें अयोध्या में अपमानित ही होना पड़ा है.
जाहिर है वे देहव्यापार की जरूरत से सहमत हैं और उस का प्रचारप्रसार कर बैठे हैं. मोरारी बापू की नजर में दुनिया में कोई महान संस्कृति है तो वह हिंदू संस्कृति ही है. फिर इस में देहव्यापार क्यों है और लोग क्यों उस में लिप्त होते हुए, भोगते हुए इस की बुराई करते हैं, यह वे शायद ही बता पाएं.
हिंदू संस्कृति में हर पुरानी परंपरा को महान कहा जाता है. फिर इस में वेश्याओं का क्या काम और ये पतिताएं क्यों कही जाती हैं, जबकि ये समाज का अनिवार्य हिस्सा हैं और वैदिककाल से हैं. इस पर भी मोरारी बापू खामोश रहे कि वेश्याएं कभी सैनिकों, तो कभी साधुसंतों की हवस मिटाने के काम भी आती थीं. धर्म के नाम पर कमउम्र लड़कियों को देवदासी कौन बनाता है, इस सच को भी वे पचा और छिपा गए.
देश की लाखोंकरोड़ों वेश्याएं अब रामनाम पर दान करेंगी और अपनी बदहाली की वजह अपने कर्मों को मान कर चुपचाप अपने धंधे में लग जाएंगी. यही उन की नियति है जिस का इलाज किसी रामकथा में नहीं.
‘मंडी’ फिल्म का अंत आज की प्रासंगिकता है जिसे प्रतीकात्मक रूप से दिखाया गया है कि रुक्मणिबाई हमेशा एक पिंजरा अपने पास रखती है जिस में एक तोता बंद रहता है. यही राज वेश्याओं का है. वे धर्म और समाज के बनाए पिंजरे में कैद हैं, जिस से आजाद होने की कोशिश करती हैं तो उन के पर कुतर दिए जाते हैं.
ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कमाठीपुरा में उन से मिलने, फिर अयोध्या बुला कर उन्हें रामकथा सुनाने के ड्रामे के पीछे मोरारी बापू का मकसद वेश्याओं को शिष्ट तरीके से यह एहसास कराना था कि वे पापिन और पतिता हैं तो वे इस में कामयाब रहे हैं.