पर्वउत्सवों का भारतीय जनजीवन में बड़ा महत्त्व है. त्योहार हमारे जीवन को खुशियों से भर देते हैं, वर्षभर की खुशियों को एंजौय करने का अवसर देते हैं और वर्षभर के दुखों को भुलाने को प्रेरित करते हैं. जीवन में नया जोश, नया आत्मविश्वास, नया उत्साह देने वाले सब से बड़े त्योहार दीवाली की तैयारियां काफी दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं.

दीवाली अंधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक मानी जाती है. हम भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है, झूठ का नाश होता है. इसीलिए दीवाली को रामायण की एक दंतकथा से जोड़ दिया गया. हिंदुओं का विश्वास है कि इस दिन अयोध्या के राजा राम लंका के राजा रावण का वध कर के लौटे थे तो उन के स्वागत की खुशी में घी के दीये जलाए गए थे. इसलिए यह त्योहार मनाया जाता है.

इधर, कृष्णभक्तों का कहना है कि इस दिन कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था. इस नृशंस राक्षस के वध से जनता को अपार हर्ष हुआ और लोगों ने खुशी से घी के दीपक जलाए. लेकिन प्राचीन साहित्य में इस पर्व को मनाए जाने का कारण इन में से कोई भी नहीं मिलता. इस त्योहार को मनाने के पीछे नई फसल के आगमन का वर्णन जरूर मिलता है.

अफसोस है कि इस पर्व का रूप परिवर्तित हो चुका है. रोशनी का यह पर्व घोर अंधकार को भी साथ ढोता चल रहा है. असल में दीवाली के पर्व में अंधविश्वास का अंधेरा भर दिया गया है. धर्म के व्यापारियों ने खुशियों के इस पर्व को धार्मिक ढोंगढकोसलों से जोड़ दिया है ताकि उन की अंधी कमाई होती रहे और मुफ्तखोरों, तिलकधारियों के लिए हलवापूरी का इंतजाम बना रहे. उस में कोई व्यवधान न आए, इस के लिए बाद के धार्मिक साहित्य में कई भय व अंधविश्वास भी खड़े कर दिए गए और साथ में सुखसमृद्धि का लालच भी दिया गया.

लक्ष्मी को इस पर्व की अधिष्ठात्री देवी बता कर उसे प्रसन्न करने के लिए तरहतरह के उपाय भी सुझा दिए गए. प्रचारित किया गया कि लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए उस की पूजा आवश्यक है. उसे प्रसन्न करने के लिए कई तरह के विधिविधान बना दिए गए. कहा गया कि इस की प्रसन्नता से ही धन की प्राप्ति होगी. दीवाली के अवसर पर पुजारी इसीलिए एक घर से दूसरे घर भागते हैं ताकि सारे जजमानों से वसूली की जा सके. कर्म, पुरुषार्थ के सहारे समृद्धि पाने की प्रेरणा देने वाले इस पर्व पर वे लक्ष्मी की प्रसन्नता के उपाय, दान के मार्ग बता कर लोगों को गुमराह करते हैं, उन्हें अंधकार की ओर ले जाते हैं.

‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात अंधेरे से ज्योति (प्रकाश) की ओर जाइए, के बजाय समाज अंधेरे से और अंधेरे की तरफ जा कर समृद्धि तलाश रहा है जबकि दीवाली को अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व कहते हैं.

जगाएं आत्मविश्वास

दीवाली व्यक्तिगत व सामूहिक दोनों तरह से मनाए जाने वाला खास पर्व है जिस की अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक विशिष्टता है. इस पर्व को व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर एंजौय करें. घर में, परिवार में उमंग का माहौल बनाएं. घर का कोनाकोना खुशियों से महकाएं. नए कपड़े पहनें. परिवार के लिए नई वस्तुओं की खरीदारी करें. मिठाइयों का उपहार एकदूसरे को भेंट करें. एकदूसरे से मिलें. आपसी गिलेशिकवे दूर करें. घरघर में सुंदर रंगोली बनाएं, दीये जलाएं, आतिशबाजी करें. वे खुशियां ही हैं जो आत्मविश्वास जगाती हैं.

इस पर्व पर सारी खुशियां समेट कर अपनों का साथ और प्यार पाएं. पकवानों का परिवार के साथ आनंद लें. दीवाली पर लगने वाले मेलों में जाएं.  कई पर्वों का समूह होने के कारण खूब धूम रहती है. आप सभी अंधविश्वास की कालिख को हटा कर इस आत्मविश्वास से भरे पर्व का आनंद लें. इस समय खुशियों से सराबोर लोग बाजारों में उमड़ पड़ते हैं. दुकानों पर विशेष साजसज्जा और भीड़ दिखाई देती है. प्रत्येक परिवार अपनी आवश्यकतानुसार कोई न कोई खरीदारी करता है.

दीवाली जीवन की रंगीनियों का पर्व है. इसे अंधविश्वासों के अंधेरों में मत खोइए. घर, परिवार, समाज व देश की खुशहाली का संकल्प लीजिए. इसी से प्रकाश आएगा, प्रगति आएगी. धर्म ने आज जीवन के हर हिस्से पर अपनी जकड़न बना ली है. इस ने जन्म, विवाह, त्योहार, मनोरंजन, मरण आदि हर जगह जबरन अवैध कब्जा कर लिया है.

धर्म व धर्म के कारोबारियों ने उत्सवों की खुशियों पर भी फुजूल के कर्मकांड व अंधविश्वासों का खौफ पैदा कर दिया है. कुछ पाने का लालच लोगों के मनमस्तिष्क में भर दिया गया है. आप को पता ही नहीं चलता कि किस कदर धर्म के कारोबारियों ने आप के दिलोदिमाग में घुसपैठ कर ली है.

उत्सवों पर हावी अंधविश्वासों से दूर होइए. बदलते वक्त के साथ आज समस्याएं और मान्यताएं बदल रही हैं. ऐेसे में दीवाली जैसे त्योहार के स्वरूप को नियंत्रित करना भी आवश्यक हो गया है. फुजूल कर्मकांडों के साथसाथ त्योहारों पर अपव्यय और दिखावा बढ़ गया है. प्रेम, मिलन, भाईचारे की जगह आगे दिखने की होड़ पीछे की ओर ले जा रही है. अधिकतर मध्यवर्गीय लोगों का वेतन निश्चित होता है और आमदनी थोड़ी होती है. लेकिन परंपरा में बंधे होने के चलते दीवाली के मौके पर चादर से बाहर पैर फैला लेने के कारण उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

नई शुरुआत करें

दीवाली पर हर घर की मुंडेर पर जगमगाते दीये निरंतर अंधकार से प्रकाश व जड़ता से प्रगति की ओर बढ़ने का संदेश देते हैं. इसी माने में दीवाली प्रकाशोत्सव है. यह संपूर्ण जीवन की अभिव्यक्ति है. इस दिन नए खाते खोले जाते हैं. घरबाहर की

साफसफाई की जाती है लेकिन केवल घरदुकान की जबकि आवश्यकता है मन की सफाई की, मनुष्य की आंतरिक चेतना को जगाने की, ताकि भारतीय जनजीवन की ऊर्जा व उल्लास को अभिव्यक्त करने वाला यह आलोक पर्व वास्तव में प्रगति और विकास का संदेश दे सके.

आज भी ऐसे लोग हैं जो तर्क और बुद्धि को छोड़ कर लकीर के फकीर बने भाग्यवाद, अंधविश्वासों और आडंबरों की लकीर पीट रहे हैं और पुरुषार्थ पर भरोसा करने के बजाय दिवास्वप्नों में भटक रहे हैं. अफसोस की बात तो यह है कि गांवकसबों के अनपढ़ लोग ही नहीं, खुद को मौडर्न और अपडेटेड कहने वाले सभ्य लोग भी व्यर्थ के कर्मकांडों और अंधविश्वासों में डूबे हैं.

दीवाली के दिन हर घर में जलने वाले दीये की रोशनी का उद्देश्य मन में छिपे व्यर्थ के अंधविश्वासों और आडंबरों को दूर करना है जबकि व्यर्थ की पूजापाठ व पंडेपुजारियों के चक्कर में पड़ कर लोग मेहनत व ईमानदारी के बजाय ऐसे काम करते हैं जो उन्हें भाग्यवादी तथा मन से निकम्मा और अकर्मण्य बना देते हैं. अंधविश्वास व आडंबर हमें भीतर से कमजोर बनाते हैं तथा हमारे संकल्प को खोखला करते रहते हैं. जो लोग साल के दूसरे दिनों में जुआ नहीं खेलते वे भी इस दिन रीति, परंपरा व अंधविश्वासों की लकीर पीटते हुए जुआ खेलते हैं और यह सब धर्म की आड़ में होता है.

इस दीवाली प्रण कीजिए कि आप अंधविश्वासों और आडंबरों के बजाय समाज की प्रगति में निवेश करेंगे, खुद को नए विचारों की रोशनी में देखेंगे और घरबाहर की सफाई के साथसाथ मन को भी विवेक के सहारे जाग्रत करेंगे तभी हर ओर धनधान्य और खुशहाली के दीये जलेंगे और तब दीवाली एक सच्चे आलोक पर्व का रूप लेगी.

मिलजुल कर मनाएं दीवाली

आज के अति व्यस्त दौर में यदि प्रकाशोत्सव को पड़ोसियों के साथ मिलजुल कर मनाया जाए तो आसपास के वातावरण के साथसाथ दिल भी रोशन हो जाते हैं. यदि समाज से कटुता और वैमनस्य को खत्म करना है तो दीवाली की खुशियां पड़ोसी के साथ भी बांटें. कई बार किसी पड़ोसी की मजबूरी हो सकती है कि वह निसंतान हो या उन के बच्चे उन से दूर शिक्षा, नौकरी आदि के कारण दूसरे शहरों में हों. ऐसे में आप का कर्तव्य बनता है कि ऐसे पड़ोसियों को अपनी खुशियों में शामिल करें और इस दीवाली उन के चेहरों पर खुशियों की रोशनी चमकाएं.

अमावस्या के अंधकार में अंधेरे से रोशनी की तरफ जाने का संदेश देता दीवाली का त्योहार जहां सत्य की विजय का संदेश देता है वहीं जीवन में जीने का उत्साह और उल्लास का रंग भरने का अवसर भी देता है. दीवाली फुजूल व्यय का रूप धारण कर चुकी है. मध्यवर्गीय भारतीय समाज के लिए त्योहारों पर अपव्यय करना अभिशाप के समान है. परिवार की त्योहारी मांगों के आगे कमाऊ त्योहार के नाम पर कतराने लगते हैं. वास्तविक खुशियों की जगह त्योहार औपचारिक पर्व न बन जाएं, इसलिए ऐसे पर्वों के प्रति अतिभावुकता व आस्था को त्याग कर खुशियों को तरजीह दें. दीयों के उत्सव को अंधविश्वास के अंधेरे में नहीं, आत्मविश्वास के उजाले में मनाएं.

कुछ प्रचलित धारणाएं बनाम अंधविश्वास

  1. कहा जाता है कि इस दिन विष्णु ने राजा बलि को पाताललोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जान कर प्रसन्नतापूर्वक दीवाली मनाई थी.
  2. इसी दिन समुद्रमंथन के समय क्षीरसागर से लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था.
  3. इस दिन जब राम लंका से वापस आए तो उन का राज्यारोहण किया गया था. इसी खुशी में अयोध्यावासियों ने घरों में दीपक जलाए थे.
  4. इसी समय कृषकों के घर में नवीन अन्न आते हैं, जिस की खुशी में दीपक जलाए जाते हैं.
  5. इसी दिन गुप्तवंशीय राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने ‘विक्रम संवत’ की स्थापना की थी. धर्म, गणित तथा ज्योतिष के दिग्गज विद्वानों को आमंत्रित कर यह मुहूर्त निकलवाया कि नया संवत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाए.
  6. इसी दिन आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण हुआ था.
  7. कार्तिक वदी अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त हो कर अमृतसर वापस लौटे थे.
  8. 500 ईसापूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के पास अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार, उस समय भी दीवाली मनाई जाती थी. उस मूर्ति में मातृदेवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं.
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