बुक रिव्यू : 'जनतंत्र एवं संसदीय संवाद'

संसद से जुड़ी, उसकी कार्यप्रणाली को उजागर करती हुईं किताबें वैसे तो कई हैं लेकिन 'डा. राकेश कुमार योगी' की लिखी हुई यह किताब 'जनतंत्र एवं संसदीय संवाद' अपनी तरह की एक अलग किताब है. यह न केवल यह संसद की बाहरी दुनिया से परिचय कराती है बल्कि संसद के पूर्व अध्यक्षों के माध्यम से संसद के आंतरिक रूप, मुद्दे, देशविदेश की नीतियों की सही समीक्षा और व्यवस्थाओं का सही ब्योरा भी देती है. डा. योगी ने लोकसभा और राज्यसभा के कार्यों और  नीतियों को समीप से देखने वाले 'शिवराज पाटिल', 'डा. मनोहर जोशी', 'डा. नजमा हेप्तुल्ला', 'करिया मुंडा', 'हरिवंश और सुभाष कश्यप' से साक्षात्कारों के माध्यम से किताब को लिखा है. सत्य की पराकाष्ठा पर खरी उतरती यह किताब न केवल संसद को समझने का एक माध्यम है बल्कि संसद के दोनों सदनों की आवश्यकता से सरोकार भी रखती है.

नई दिल्ली की संसद रहीं 'मीनक्षी लेखी' पुस्तक की भूमिका को लिखते हुए कहती हैं, “पार्लियामेंट में जो बातचीत होती है उसे पार्लियामेंटरी डिबेट कहते हैं, लेकिन हम इस पुस्तक का नाम संसदीय संवाद यानी पार्लियामेंटरी डाइलाग रख रहे हैं.” बकौल मीनाक्षी लेखी संसदीय बातचीत असल में वाद-विवाद न हो कर बातचीत होनी चाहिए जो एक निश्चित मुद्दे को आगे ले जाए. संसद को इतने समीप से देखने और समझने के बाद जब व्यक्ति उसका आकलन कर लोगों तक पहुंचाता है तो लोग भी इसे भलीभांति समझने में सक्षम होते हैं.

किताब के लेखक 'डा. राकेश कुमार योगी' ने ‘लेखक की बात’ के माध्यम से अपना नजरिया लोगों के सामने रखा है. लेखक के किताब लिखने के पीछे का कारण उनके संसद को लेकर विचारों का सटीक न होना था और न ही वह उस की असल संरचना से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने अपने प्रश्नों के समाधान के लिए इस पुस्तक के लेखन को प्रारम्भ किया. लेकिन, अन्य लेखकों की तरह उन्होंने अपने विचार पाठकों पर थोपने की बजाए उन लोगों की विचारधारा का समावेश इस पुस्तक के माध्यम से किया है. जिनके पास संसद का अनुभव भी है और जिन्होंने असल में संसद को करीब से देखा, जाना, समझा और कार्य किया हैं. यह काबिलेतारीफ होने के साथ साथ सराहनीय भी है.

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