धार्मिक शहर उज्जैन से 57 किलोमीटर दूर माकड़ोंन कसबे में पसरा सन्नाटा और तनाव दरअसल 2 जातियों की लड़ाई की देन है जो देश में हर कभी हर कहीं देखने में आती है. लगभग 16 हजार की आबादी वाले इस कसबे में दलितों की हिस्सेदारी 20 फीसदी के करीब है. पिछड़े हालांकि इन से कम हैं लेकिन पैसे वाले हैं. इन में भी पाटीदार समुदाय के लोग ज्यादा हैं जबकि दलित समुदाय में मालवीयों की संख्या ज्यादा है.

25 जनवरी की सुबह पूरे मालवा में बेहद सर्द थी. माकड़ोंन भी ठिठुरन से अछूता नहीं था. लेकिन यह ठंड देखते ही देखते गरमी में बदल गई. सुबहसुबह ही मंडी गेट और बसस्टैंड के पास खड़ी वल्लभभाई पटेल की मूर्ति को कुछ लोगों ने ट्रैक्टर से तोड़ दिया. यह मूर्ति पिछली रात को ही कुछ अज्ञात लोग लगा गए थे. मूर्ति तोड़ने की खबर की वही प्रतिक्रिया हुई जो देश में आमतौर पर होती है.

पिछड़े तबके के कुछ लोग बाहर आ गए और गिराने वालों यानी भीम आर्मी के लोगों से विवाद करने लगे. दलित तबके के लोग चाहते थे कि खाली पड़ी इस जगह पर भीमराव आम्बेडकर की मूर्ति लगे. यह मामला पंचायत में विचाराधीन है लेकिन जब पिछड़ों ने चोरीछिपे अपना फैसला पटेल की मूर्ति लगा कर सुना या थोप दिया तो भला दलित कहां पीछे रहने वाले थे. उन्होंने इस फैसले को मिट्टी में मिला दिया.

दिन निकलतेनिकलते भारी तादाद में दलित-पिछड़े आमनेसामने आ खड़े हुए. तू तड़ाक से बात शुरू हुई तो गालियों के आदानप्रदान से ले कर हाथापाई से होते हुए हिंसा में तबदील हो गई. पथराव दोनों तरफ से हुआ और आगजनी भी हुई. इसी दौरान खबर मिलने पर पुलिस आ गई और स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रणवाली हो गई. हालांकि, यह सब अभी तात्कालिक ही कहा जाएगा.

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