28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगे 63 साल पुराने प्रतिबंध को हटा दिया. केरल के पत्तनमतिट्टा जिले के पेरियार टाइगर रिजर्व में स्थित यह मंदिर अय्यप्पन देवता का है. मंदिर की देखरेख धार्मिक और सामाजिक ट्रस्ट त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड (टीडीबी) करता है. सितंबर के इस फैसले का व्यापक विरोध हुआ. आंदोलनकारियों का कहना है कि यह फैसला मंदिर की पवित्रता को भंग करने वाला है. जिन महिलाओं ने पर्वत की चोटी पर स्थित इस मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास किया उन पर हमला हुआ. सर्वोच्च अदालत ने अब मामले पर पुनर्विचार याचिका स्वीकार कर ली है जिसकी सुनवाई खुली अदालत में 22 जनवरी 2019 को होगी. टीडीबी ने अदालत के इस फैसले पर पहले आपत्ति की थी लेकिन याचिका उसने दायर नहीं की.

सबरीमाला के संदर्भ में टीडीबी ने जो किया उससे एक अन्य मंदिर में पुजारी की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की दी हुई संस्थापनाओं की अवहेलना हुई है. 1993 में टीडीबी ने केरल के एर्नाकुलम जिले के कोंगोरपिल्ली नीरिकोडे शिव मंदिर में गैर ब्राह्मण पुजारी को शंतिकरण- मुख्य पुजारी से नीचे का पद- नियुक्त किया था. इसके बाद टीडीबी पर यह आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की गई कि गैर ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति के कारण धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ समझौता हुआ है. 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को यह कह कर खारिज कर दिया कि “संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रदत अधिकार और स्वतंत्रता के अंतर्गत ऐसा कहने का कोई आधार नहीं है कि इस मामले में केवल ब्राह्मण या मलयाली ब्राह्मण ही मंदिर में अनुष्ठान या पूजा करा सकता है.” इसके बावजूद 1902 से ही थंत्री का पद ताणमोन माडोम ब्राह्मण परिवार के सदस्य को ही दिया जाता रहा है. इसके अतिरिक्त शंतिकरण के रूप में भी मात्र पुरुष मलयाली ब्राह्मण को नियुक्त किया जाता रहा है. शंतिकरण दो प्रकार के होते है: मेलशंति अथवा मुख्य पुजारी और किणाशंति अथवा सहायक पुजारी.

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