राजा बोला रात है,
रानी बोली रात है,
मंत्री बोला रात है,
सब बोले रात है,
ये सुबह सुबह की बात है.
पूर्वांचल के मशहूर कवि गोरख पांडे की एक कविता के इस हिस्से को वही लोग समझ पाएंगे जिनकी गहरी दिलचस्पी साहित्य में होगी. हिंदी व मराठी फिल्मों के नामी अभिनेता और फिल्म निर्देशक अमोल पालेकर की ताजी बेबाकी का इन पंक्तियों का संबंध जोड़ा है उभरती अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने जो मौजूदा दौर की राजनीति से अमोल जितनी ही आहत हैं. स्वरा उस चर्चित वाकिए या हादसे कुछ भी कह लें पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहीं थीं जिसमें अमोल पालेकर को अपना पूरा भाषण नहीं देने दिया गया था.
संक्षेप में घटना इस तरह है. 8 फरवरी को मुंबई की एनजीएमए यानि नेशनल गैलरी औफ मौडर्न आर्ट में कलाकार प्रभाकर बर्बे की स्मृति में आयोजित प्रदर्शनी इंसाइड द एंप्टीबौक्स में अमोल बतौर अतिथि आमंत्रित थे. जैसे ही उन्होंने अपने भाषण में यह कहा कि गैलरी के बंगलुरु और मुंबई केन्द्रों में कलाकारों की सलाहकार समितियों को भंग कर भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय मनमानी कर रहा है तो आयोजकों ने उन्हें यह कहते टोक दिया कि वे अपनी बात को आयोजन तक ही सीमित रखें.
अमोल को टोक रहीं एनजीएमए की निदेशक अनिता रूपावतरम को अमोल ने पलटकर करारा जबाब यह दिया कि मैं इसी बारे में बात कर रहा हूं, क्या आप उस पर भी सेंसरशिप लागू कर रहीं हैं.
इसके बाद वे और बेबाकी से बोले कि कलाकारों की सलाहकार समीतियों को भंग करने के बाद दिल्ली में सांस्कृतिक मंत्रालय तय करेगा कि किस कलाकार की कला का प्रदर्शन किया जाएगा और किसका नहीं. इस पर फिर उन्हें टोकते गैलरी की एक सदस्य ने चेतावनी दी कि आप कृपया प्रभाकर बर्बे के बारे में ही बोलें.
इतना सुनने पर अमोल के भीतर के कलाकार का स्वाभिमान पूरी तरह जाग उठा और उन्होंने आयोजकों की नसीहतों को नजरंदाज करते अपने मन की बात कह ही दी कि, ये जो सेंसरशिप है, जो हमने अभी यहीं देखी, कहा जा रहा है कि ये मत बोलो, वो मत बोलो, ये मत खाओ, वो मत खाओ. मैं सिर्फ इतना कहना चाह रहा हूं कि एनजीएमए जो कि कला की अभिव्यक्ति और विविध कला को देखने का पवित्र स्थल है उस पर ये नियंत्रण, जैसा कि किसी ने हाल ही में कहा है कि मानवता के खिलाफ जो युद्ध चल रहा है उसकी सबसे ताजा त्रासदी है.
अमोल ने अपनी बात पीड़ा और व्यथा को विस्तार देते लगभग अतुकांत कविता के अंदाज में कहा कि ये सब कहां जाकर रुकेगा, आजादी का सागर सिमट रहा है धीरे धीरे लेकिन लगातार…हम इसे लेकर खामोश क्यों हैं. भाषण के दौरान उन्होंने वरिष्ठ साहित्यकार नयनतारा सहगल का भी जिक्र किया कि उन्हें एक मराठी सम्मेलन में आखिरी वक्त में आने से मना कर दिया गया था क्योंकि वो जो बोलने वालीं थीं वो आज जिस हालत में हम रह रहे हैं उसकी आलोचना में था और हम यहां भी वैसी ही परिस्थिति बना रहे हैं.
इससे आगे वे कुछ बोल पाते इसके पहले ही आयोजन जाहिर है ड्रामाई तरीके से बीच में ही खत्म कर दिया गया.
फिर शुरू हुआ सोशल मीडिया का हल्ला जिसमें अमोल पालेकर का पलड़ा भारी रहा. अधिकांश बुद्धिजीवी और कलाकार उनसे सहमत थे और इस बात की हिमायत कर रहे थे कि उन्हें बोलने दिया जाना चाहिए था. सबसे सटीक टिप्पणी स्वरा भास्कर ने जिन गोरख पांडे की कविता के हवाले से दी, वे खुद अंधविश्वासों और वर्जनाओं से इतने दुखी थे कि एक वक्त में उन्होंने अपना जनेऊ तक तोड़कर फेक दिया. लोग गोरख पांडे को एक खब्त और सनकी कवि मानते थे, क्योंकि उनकी रचनाएं शोषकों के प्रति काफी मारक और प्रहारक होती थीं. लेकिन अस्सी और नब्बे के दशक में उनकी कवितायें दलित वर्ग में काफी लोकप्रिय हुईं थीं.
अमोल पालेकर और स्वरा भास्कर दोनों ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिटलरशाही पर बिना उनका नाम लिए यह भर कहा था कि देश में बोलने की आजादी नहीं है और सरकार कला और साहित्य को अपनी गिरफ्त में लेते अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट रही है.
सच भी यही है कि नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि सभी कलाकार अनुपम खेर, गजेंद्र चौहान, परेश रावल, मौसमी चटर्जी और ऋषि कपूर जैसे बनते भाटगिरी और उनकी स्तुति करते बकौल गोरख पांडे सुबह को रात बताते रहें और जो सुबह को रात नहीं बोलेगा उसे भगवा खेमे के चौकीदार बोलने ही नहीं देंगे. पांच साल से लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ रहे नरेंद्र मोदी में अपनी आलोचना बर्दाश्त करने और सुनने की हिम्मत नहीं है.
लेकिन सच और कलाकारों की आवाज वे दबा पाएंगे ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं क्योंकि मीडिया ( ? ) के बाद कोई अगर सरकार की असल मंशा कोई उजागर कर सकता है तो वह कलाकार ही होता है जो हर दौर में शासकों की आंख की किरकिरी रहा है. खुशामदी कलाकारों को जरूर हर दौर में इनामों और खिताबों से नवाजा जाता रहा है. मौजूदा दौर इससे अछूता नहीं है, यह पांच साल में कम से कम पचास बार साबित हो चुका है.
ऐसे में अमोल पालेकर की निर्भीकता तारीफ के काबिल है. गोलमाल से लेकर मेरी बीबी की शादी जैसी हास्य फिल्मों के जरिये दर्शकों को हंसाते और गुदगुदाते रहने वाले इस अभिनेता की हिम्मत की दाद जो लोग खुलेआम नहीं दे पाये वे भी कमतर दोषी नहीं और सरकार की मनमानियों को शह देने वालों में ही शुमार किए जाएंगे.
देश का माहौल किस तरह सांप्रदायिक और भेदभाव भरा हो चला है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मोदी भक्तों ने अमोल पालेकर को पाकिस्तान चले जाने का मशवरा नहीं दिया क्योंकि वे नसीरुद्दीन शाह और आमिर खान की तरह मुसलमान नहीं हैं. अब यही लोग बेहतर बता सकते हैं कि घुटन महसूस कर रहे अमोल पालेकर जैसे अभिनेता और कलाकार कहां जाएं.