उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में स्थित ऊंचाहर नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन यानि एनटीपीसी में बौयलर फटने से 35 से अधिक लोगों की मौत हो गई. सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हो गये. एनटीपीसी की यह छठी यूनिट थी, जिसमें हादसा हुआ. यह सबसे नई यूनिट थी. इसको बनाने का काम रिकार्ड समय में हुआ. 31 मार्च को यह बनकर तैयार हुई और अगस्त माह में इसमें उत्पादन शुरू हो गया. इस यूनिट से 500 मेगावाट बिजली का उत्पादन होना था. अभी यहां पर केवल 200 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो रहा था.

इस यूनिट में कई तरह का काम भी बकाया था. वह भी साथ में चल रहा था. इस वजह से यहां मजदूरों की संख्या अधिक थी, जिससे हादसा भयावाह हो गया. वैसे तो यह यूनिट अब तक इस वजह से चर्चा में थी कि प्रधानमंत्री के सपनों को पूरा करने के लिये एनटीपीसी प्रशासन ने कम समय में ही उसको केवल तैयार ही नहीं किया उससे उत्पादन भी शुरू कर दिया था. हादसे के बाद यह यूनिट देश के सबसे बड़े पावर प्रोजेक्ट हादसे के रूप में याद की जायेगी.

रायबरेली और अमेठी कांग्रेस पार्टी के नेताओं गांधी परिवार की पैतृक सीट है. यहां से गांधी परिवार के राहुल गांधी और सोनिया गांधी लोकसभा सदस्य हैं. भाजपा किसी भी तरह से कांग्रेस के इन नेताओं को उनके घर में चुनौती देना चाहती है. इस रणनीति के तहत भाजपा ने स्मृति इरानी को अमेठी और रायबरेली में प्रचार के लिये लगा रखा है. रायबरेली में रेल कारखाना और एनटीपीसी दो बड़े बिजनेस रहे हैं. भाजपा अब अमेठी और रायबरेली के लोगों को यह समझाना चाहती है कि कांग्रेस ने उन लोगों के लिये कुछ नहीं किया. भाजपा ही तेजी से विकास कर सकती है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019-20 तक पावर फौर औल यानि सबको बिजली और उदय जैसी योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया. प्रधानमंत्री के इस सपने को पूरा करने के लिये एनटीपीसी ऊंचाहर ने आधीअधूरी तैयारियों के बीच अपनी छठी पावर यूनिट से बिजली उत्पादन का काम शुरू कर दिया.

जानकार मानते हैं कि 500 मेगावाट की एक यूनिट को चालू करने में कम से कम 3 से साढ़े तीन साल का समय लग जाता है. इस इकाई को ढाई साल के रिकार्ड समय में ही शुरू कर दिया गया. इसका व्यवसायिक उत्पादन भी शुरू हो गया. इस बात को लेकर एनटीपीसी प्रशासन जल्द ही अपनी उपलब्धियां घोषित करने वाली थी. अगर यह यूनिट पूरी तरह से तैयार होती तो यहां बड़ी संख्या में मजदूर नहीं होते. इस यूनिट से ट्रायल के दौरान कुछ खामियां मिली, जिसकी वजह से 28 अक्टूबर को इसका काम रोका जाना था. इसके बाद भी यह काम नहीं रुका. यूनिट की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि कोयला पूरी तरह से राख में नहीं बदलती थी. राख प्लांट से बाहर नहीं निकल रही थी. जिसकी वजह से बौयलर का तापमान बढ़ता गया और वह फट गया. हादसे के शिकार हुये लोगों का इलाज लखनऊ दिल्ली के अस्पतालों में चल रहा है.

असल में एनटीपीसी सुरक्षा मानको को सबसे अच्छा पालन करने वाली संस्था है. ऊंचाहार एनटीपीसी में 1550 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है. यहां से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, चंडीगढ़, दिल्ली और उत्तराखंड बिजली सप्लाई की जाती है. देश भर में बिजली उत्पादन का 16 फीसदी हिस्सा इस यूनिट से तैयार होता था. ऐसे में 2019 तक हर घर को बिजली देने के लिये ऊंचाहार एनटीपीसी की छठी यूनिट का काम करना बहुत जरूरी था. ऐसे में सभी तरह के सुरक्षा मानकों को पूरा किये बिना आधा उत्पादन करने के लिये यूनिट को शुरू कर दिया गया.

नई बनी इस यूनिट को तैयार करने में लगे उपकरण भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड भेल के द्वारा भेजे गये थे. अगर सही तरह से जांच हो तो यह पता चल सकेगा कि आधे अधूरे उत्पादन के साथ जल्दबाजी में इस यूनिट को शुरू क्यों किया गया? हो सकता है कि यह बातें जांच का बिन्दू न हो.

औद्योगिक हादसों के मामलों में भारत का रिकार्ड अच्छा नहीं है. राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो 2015 के मुताबिक 299 औद्योगिक हादसे हुये. इसमें 229 लोगों की जान गई. 2014 में 200 लोगों की जान गई थी. असल में हमारे देश में बिना आधारभूत ढांचा मजबूत किये बिना काम शुरू करने का रिवाज बढ़ता जा रहा है.

लखनऊ से दिल्ली के बीच डबल डेकर रेल गाडी शुरू हुई. धूमधाम से शुरू हुई यह रेलगाडी अव्यवस्था का शिकार हो गई. यह पूरी तरह से व्यवस्थित होकर कभी नहीं चल पाई. डबल डेकर ट्रेन जैसा हाल तेजस ट्रेन का भी हुआ. रेल विभाग ने कई ट्रेनो की स्पीड बढ़ा दी. जिसकी वजह से ट्रेनों के संचालन में तमाम तरह की परेशानियां आ रही हैं. रेलवे स्टेशनों पर रेल गाडियों के खड़ी होने के लिये प्लेटफार्म खाली नहीं होते. जिसकी वजह से ट्रेन लेट हो रही हैं. पटरियों की हालत खस्ताहाल है.

आजकल अफसरों में आगे निकलने की होड लगी है. वह किसी भी तरह से यह दिखाने की कोशिश में रहते हैं कि उनका काम अव्वल है. स्कूलों में बच्चे फेल न हो इसके लिये सिलेबस सरल कर दिया गया. बच्चों को फेल करना बंद कर दिया गया. रिजल्ट अच्छा दिखाने के लिये टीचर नकल कराने लगा. इस तरह वाहवाही बटोरने के चोंचले भारी पड़ने लगे हैं. बिना पूरी तैयारी के काम शुरू करके ऐसे संस्थानों को आम जीवन को जोखिम में नहीं डालना चाहिये.

सार्वजनिक उद्यम के क्षेत्रों में काम कर रहे दूसरे संस्थान भी अपने कर्मचरियों पर पूरा ध्यान नहीं दे रहे. कर्मचारियों की केवल सुरक्षा की ही बात नहीं है, उनके रहने, खाने और आवागमन तक के उपाय नहीं किये जा रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह सार्वजनिक उद्यमों में बढ़ता राजनीतिक हस्तक्षेप है. राजनीतिक और सरकारी हस्तक्षेप से सरकारी विभागों की कार्यक्षमता पहले की खत्म हो चुकी है. वहां फैले भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता से सभी परिचित हैं.

अब सार्वजनिक उद्यम संस्थान भी इसका तेजी से शिकार होते जा रहे हैं. सार्वजनिक उद्यम संस्थान के लाभ के हिस्से को कर्मचारियों की सुविधाओं पर खर्च करने की जगह नेताओं, अफसरो की ऐशोआराम पर खर्च किया जाता है. काम करने वालों में ठेका सिस्टम बढ़ गया है. अब सार्वजनिक उद्यमों को प्राइवेट कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है. जिसकी वजह से वह लाभ मे होने के बाद भी पिछड़ रही है. यह नेताओं की चारागाह बन कर रह जा रही है.

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