जिस्म का कारोबार भले ही महानगरों से निकल कर छोटे कसबों तक पांव पसार चुका हो मगर वह कानूनी बाधा आज तक पार नहीं कर सका है. जिस्म के बाजार को आज भी कानून की इजाजत का इंतजार है. हालांकि गैरकानूनी होने के बावजूद इस कारोबार के आंकड़े चौंकाने वाले हैं.

भारत के रैडलाइट एरिया में रह कर जिस्म का सौदा करने वाली महिलाओं की कुल आबादी 30 लाख से भी अधिक है. यही कारण है कि अब ये सैक्स वर्कर्स का दरजा पाने की मांग को बुलंद कर रहे हैं. हमारा कानून इन्हें मुजरा या नाचगाने की इजाजत तो देता है मगर जिस्म बेचने की नहीं. यानी कानून कोठे खोलने की इजाजत तो देता है मगर वेश्यालय चलाने की नहीं.

आजादी से पहले अंगरेज सैनिकों की सैक्स संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरे हिंदुस्तान में जगहजगह वेश्यालय बना दिए गए थे. उन में यूरोपीय देशों की वेश्याओं को भी ला कर रखा गया था. आजादी के साथ ही कुछ वेश्याएं वापस यूरोप लौट गईं लेकिन तब तक भारतीय महिलाओं का एक बड़ा तबका जिस्म के इस कारोबार का हिस्सा बन चुका था. भारतीय संस्कृति इस की इजाजत नहीं देती थी. नतीजतन, 1956 में अनैतिक गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत इसे अपराध की श्रेणी में शामिल कर लिया गया, हालांकि उन्हें नाचगाने और मुजरे आदि की इजाजत थी. लेकिन देहव्यापार में लिप्त महिलाओं के पुनर्वास की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई. इन के लिए एक खास इलाका निर्धारित कर दिया गया जिसे आज रैडलाइट एरिया के नाम से जाना जाता है.

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