आज के दौर में कोचिंग क्लासेज जरूरत बनती जा रही हैं. डा. के एन मोदी कालेज के वीसी डा. दीपेंद्र पाठक का मानना है कि पुराने समय में जानकारी के लिए हमारे पास किताबें और अखबार ही हुआ करते थे, लेकिन आज जानकारी पाने के लिए कई साधन मौजूद हैं. इसी वजह से आज की जनरेशन भी काफी ऐडवांस है. आज का दौर प्रतिस्पर्द्धा का दौर है और इसी का फायदा उठाते हुए कोचिंग माफिया अपना जाल फैला कर लोगों को गुमराह करते हैं. मध्य परिवार के कई मातापिता कोचिंग का भारीभरकम खर्च वहन नहीं कर पाते हैं. ऐसे में मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों को समझाएं कि वे खुद को काबिल बनाएं.

‘‘दीपेश पढ़ने में होशियार है, अंगरेजी भी अच्छी बोलता है. कमी है तो बस, एक कि वह सुनता किसी की नहीं है. बस, कोचिंग क्लास के लिए जिद करता है.’’ परिवार के मुखिया रमेश कुमार ने अपने 15 साल के बेटे दीपेश का परिचय कुछ इस तरह से दिया. अत: जरूरी है कुछ बातों पर ध्यान देना :

स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान दें

मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों को स्कूल में हो रही पढ़ाई पर अधिक ध्यान देने के लिए कहें. समयसमय पर बच्चों के स्कूल जा कर क्लास टीचर से मिलें और उन से पढ़ाई की जानकारी लें. ऐसा करने से बच्चे के मन में भी यह बात बैठती है कि उसे पढ़ाई पर पूरी तरह से ध्यान देना है अन्यथा टीचर पेरैंट्स को सारी जानकारी दे देंगी.

पुराने नोट्स व प्रश्नोत्तर पढ़ें

दिल्ली के टैगोर इंटरनैशनल स्कूल का छात्र हरदीप कोचिंग क्लास जा कर अपनी पढ़ाई करता है. हरदीप का दोस्त समीर जो सरकारी स्कूल में पढ़ता है, वह 10 साल तक के प्रश्नउत्तर पुस्तिका व नोट्स को ध्यान से पढ़ता है. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क हैं. वे कोचिंग क्लास का खर्च वहन नहीं कर सकते.

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