नोटबंदी के 37 दिन बाद भी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की दशा सुधरने का नाम नहीं ले रही है. चारों तरफ नोटों की किल्लत देखने को मिल रही है. अधिकतर एटीएम पर ‘नो कैश’ का बोर्ड लगा हुआ है. जहां कैश है वहां सिर्फ दो हजार के नोट मिल रहे हैं. उन नोटों को लेकर किसी भी दुकान पर जाएं तो दो हज़ार का नोट देकर आप कुछ खरीद नहीं सकते. किसी बड़े दुकानदार के पास भी अगर आपने 500 रुपये का सामान खरीद लिया फिर भी आपको बाकी पैसे मिलना मुश्किल है. कई बार तो ग्राहक बिना सामान लिए ही घर लौट रहे है.

दरअसल नोटबंदी की कामयाबी का ताज जो नरेन्द्र मोदी अपने सिर पर सजाना चाह रहे हैं, वह पूरी तरह फेल है. सारा काला धन उनकी इस नोट बंदी से धड़ल्ले से सफेद हो रहा है. जिसकी मिसाल मुंबई से लेकर दिल्ली तक दिखाई दे रही है. ऐसे में भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में जो कहानी नरेन्द्र मोदी जनता को बता रहे हैं, वह कहीं लागू नहीं होती. साथ ही लोगों की समस्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है. बिना प्लानिंग के कोई भी नीति कभी सफल नहीं होती, शायद इसका नतीजा मोदी को भी दिख रहा है. जिसने भ्रष्टाचार को लगाम लगाने के वजाय अर्थव्यवस्था पर ही लगाम लगा दिया है.

बैंक की लाइन में लगी संध्या बताती है कि मैं पिछले कुछ दिनों से लगातार बैंक के चक्कर लगा रही हूं. इतनी लंबी कतार देखकर वापस आ जाती हूं. एक बार जब अंत तक गई तो पता चला कि अपना अकाउंट वाले ब्रांच में 24 हजार और बाकि में 10 हजार तक निकाल सकते हैं. फिर मैं अपने अकाउंट वाले ब्रांच में गई, लेकिन वहां भी कैश की कमी की वजह से केवल 15 हजार ही मिले. जिसमें अधिकतर नोट दो हजार के थे. इसे लेकर कुछ भी खरीदने के पहले दस बार सोचना पड़ता है कि दो हजार के छुट्टे मिलेंगे भी या नहीं.

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