कक्षा 8 पास करने के बाद अभिषेक ने कक्षा 9 में ऐडमिशन लिया. उस के पिता दिनेश चाहते थे कि बेटा बड़ा हो कर इंजीनियर बने, उस का प्रवेश आईआईटी या फिर किसी अच्छे सरकारी कालेज में हो जाए.  अभिषेक के पिता ने जानकारी हासिल की तो पता चला कि आईआईटी में ऐडमिशन के लिए कक्षा 9 से ही इंजीनियरिंग की कोचिंग करनी चाहिए. इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में पूरे देश से हर साल करीब 7 लाख बच्चे बैठते हैं. इन में से केवल 1 लाख 50 हजार ही आईआईटी प्रवेश परीक्षा दे पाते हैं. इन 1 लाख 50 हजार छात्रों में से केवल 10 फीसदी ही आईआईटी में प्रवेश पाते हैं. कुछ ऐसी ही हालत डाक्टरी और एमबीए की पढ़ाई करने वालों की भी है. अच्छे कालेजों में प्रवेश के लिए बच्चे 3-5 साल कोचिंग करते हैं. पहले बहुत सारे बच्चे राजस्थान के कोटा शहर जा कर कोचिंग करते थे. लेकिन बदलते समय के साथ कोचिंग का धंधा तेजी से फलनेफूलने लगा. अब हर शहर में बहुत सारी कोचिंग संस्थाएं खुल गई हैं.

कोचिंग में पढ़ाई करने वाले छात्र मुख्यरूप से इंजीनियरिंग, डाक्टरी और एमबीए की पढ़ाई करना चाहते हैं. इस के अलावा दूसरी किस्म के वे छात्र कोचिंग करते हैं जो प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छे नंबर लाना चाहते हैं. अब तो बैंकिंग में नौकरी पाने के लिए भी छात्र कोचिंग संस्थाओं पर निर्भर रहने लगे हैं. कोचिंग का यह रूप सभी ने देखा और महसूस किया है. कोचिंग चलाने वालों ने इसे और विस्तार देने का काम किया है. अब वे हर कक्षा में परीक्षाओं में अच्छे नंबर लाने के लिए कोचिंग क्लास चलाने लगे हैं जिस से बच्चे स्कूल और कोचिंग में एकसाथ पढ़ाई करने को मजबूर होते हैं. महंगे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के बाद भी अभिभावक बच्चों को कोचिंग भेजने के लिए मजबूर होते हैं. कईकई स्कूलों में तो वहीं के पढ़ाने वाले शिक्षक कोचिंग कराते हैं. वे बच्चों को क्लास में पढ़ाने के बजाय कोचिंग कराना ज्यादा पसंद करते हैं.

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