8 जुलाई को मुठभेड़ में मारे गए हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के परिवार में मातम पसरा हुआ है. पुलवामा के दादसरा गांव में हायर सैकंडरी स्कूल में प्रिंसिपल रहे उस के वृद्ध पिता मुजफ्फर अहमद वानी, मां मैमूना, बहन इरम और भाई नवेद आलम का बुरा हाल है. एक तो परिवार के सदस्य की मौत और ऊपर से समूचे जम्मूकश्मीर राज्य में मौत के बाद फैली हिंसा से यह परिवार बेहद सदमे में है. पढे़लिखे वानी परिवार पर आतंकवाद, अलगाववाद समर्थक का कलंक चस्पा है. 23 साल के बुरहान वानी की मां मैमूना मुजफ्फर भी विज्ञान में पोस्टग्रेजुएट हैं. वे अपने गांव में कुरआन पढ़ाती थीं. इसे घरपरिवार में मिले धार्मिक संस्कार कहें या कुछ और, बुरहान 2010 में घर से भाग गया और 15 साल की उम्र में आतंकी बन गया. पढ़ाई में टौपर और क्रिकेट के शौकीन बुरहान ने हिंसा का रास्ता पकड़ा तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. मांबाप उस के लौट आने की बाट जोहते रहे पर वह 2011 में हिजबुल मुजाहिदीन का सदस्य बना और फिर पूरे संगठन की बागडोर अपने हाथों में ले ली.
वह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने लगा और पढ़ेलिखे युवाओं को आतंकी संगठन में भरती करने लगा. बुरहान का परिवार हमेशा उस के हिंसा के रास्ते पर चले जाने से खुद को असुरक्षित, ग्लानि, अफसोस, दुखदर्द, ताने सहने पर बेबस महसूस करता रहा. बुरहान का एक भाई खालिद पहले ही 2015 में भारतीय सेना द्वारा मारा गया था. इतने दुखों के बावजूद इस परिवार को मजहब का सहारा है.