गौड पार्टिकल से जुड़े धार्मिक अंधविश्वास को वैज्ञानिकों ने निराधार साबित कर जता दिया है कि विज्ञान मानव जाति को सृष्टि के जन्म तथा विकास से जुड़े धार्मिक पाखंडों की अंधेरी गलियों से ठोस व तार्किक आधार द्वारा बाहर निकालने के लिए कटिबद्ध है. सदियों से धार्मिक हैवानियत और यातनाओं से गुजर कर दुनिया को सच से वाकिफ कराते वैज्ञानिक प्रयासों पर पढि़ए जितेंद्र कुमार मित्तल का लेख.
विज्ञान की नईनई खोजें सृष्टि के रहस्यों को समझने में हमारी मदद करती आई हैं. पिछले दिनों वैज्ञानिकों द्वारा की गई उस कण (पार्टिकल) की खेज इसी शृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है जो इस ब्रह्मांड को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है और जो ‘हिंग्स बोसौन’ या ‘गौड पार्टिकल’ के नाम से जाना जाता है. यूरोपीय सैंटर फौर न्यूक्लियर रिसर्च यानी सर्न की 2 टीमें इस महत्त्वपूर्ण खोज में वर्षों से लगी हुई थीं और अब ऐसा लगता है कि उन की यह मेहनत रंग लाई है और वे इस गुत्थी को सुलझाने में कामयाब रही हैं.
मोटे तौर पर सृष्टि की हरेक चीज चाहे वे तारे, ग्रह या फिर हम स्वयं ही क्यों न हों, मैटर यानी पदार्थ से बनी हैं और पदार्थ अणु व परमाणुओं से बना है. ‘मास’ यानी द्रव्यमान वह फिजिकल प्रौपर्टी है जिस से अणु व परमाणुओं जैसे तमाम कणों को ठोस रूप मिलता है. अगर यह ‘मास’ यानी द्रव्यमान (भार) नहीं होगा तो ये कण रोशनी की रफ्तार से ब्रह्मांड में दौड़ते रहेंगे और कभी भी दूसरे कणों के साथ मिल कर किसी ठोस आकार में बदल नहीं सकेंगे. यही ‘मास’ जब गुरुत्वाकर्षण से गुजरता है तो वह भार के रूप में भी मापा जा सकता है.
सब से अहम सवाल जो वैज्ञानिकों को बरसों से परेशान कर रहा था वह यह था कि यह ‘मास’ या भार आखिर आता कहां से है? जब तमाम कणों को एक निश्चित वैज्ञानिक व्यवस्था के अनुरूप रख कर इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की गई तो वैज्ञानिकों को इस में किसी कण की कमी या गैप नजर आने लगा.
वर्ष 1965 में इस कमी को भरने के लिए इस अज्ञात कण को ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिंग्स ने ‘गौडडैम पार्टिकल’ की संज्ञा दी लेकिन बाद में उन के संपादक ने ‘गौडडैम’ में से ‘डैम’ को काट कर इसे ‘गौड पार्टिकल’ बना दिया. चूंकि क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्र में अलबर्ट आइंस्टीन के समकालीन भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस ने महत्त्वपूर्ण काम किया था, जिसे बाद में आइंस्टीन ने और आगे बढ़ा कर ‘बोस आइंस्टीन थ्योरी’ के रूप में पेश किया, इसीलिए इस कण को हिंग्स और बोस दोनों के नामों को जोड़ कर हिंग्स बोसौन पार्टिकल’ नाम दिया गया.
हिंग्स बोसौन कण लगभग रोशनी की रफ्तार से दौड़ता है और उसे पकड़ पाना मुश्किल है. उसे नजर में लाने व उस का विश्लेषण करने के लिए इतनी शक्ति की जरूरत थी, जितनी अरबों वर्ष पहले ब्रह्मांड के जन्म के समय रही होगी, इसलिए दुनियाभर के कुछ गिनेचुने वैज्ञानिकों ने वर्ष 2008 में 10 अरब डौलर की लागत से 27 किलोमीटर लंबी गोलाकार सुरंग बनाई, जिसे एलएचसी यानी ‘लार्ज हैड्रौन कोलाइडर’ का नाम दिया गया.
वैज्ञानिकों का यह मानना था कि इस प्रयोग से ब्रह्मांड के रहस्यों से परदा उठेगा, लेकिन कुछ सिरफिरे लोग ऐसे भी थे जो यह मानते थे कि यह भगवान के काम में हस्तक्षेप करने जैसा है और इसलिए इस मशीन का बटन दबाते ही दुनिया खत्म हो जाएगी. लेकिन दुनिया खत्म नहीं हुई और यह प्रयोग अंधविश्वासी लोगों की तमाम आशंकाओं को गलत साबित कर पूरी तरह सफल रहा.
इस कौलाइडर में प्रोटोंस को रोशनी की रफ्तार से दौड़ा कर जब टकराया गया तो उस से जो ऊर्जा पैदा हुई उस से कई कण वजूद में आए. तभी यह भी पता लगाया गया कि इन कणों में से एक कण ‘गौड पार्टिकल’ था.
सर्न के डायरैक्टर रौल्फ डीहेयर के शब्दों में, ‘‘प्रकृति को समझने की दिशा में हम अपनी मंजिल तक पहुंच गए हैं. हिंग्स बोसौन पार्टिकल की खोज नई खोजों का रास्ता खोलेगी, जिन से ब्रह्मांड के दूसरे रहस्य भी खुलेंगे.’’
हिंग्स बोसौन सिद्धांत के जन्मदाता पीटर हिंग्स अब काफी वृद्ध हो चुके हैं. उन्होंने इस खोज पर अपनी खुशी का इजहार कुछ इस तरह किया, ‘‘मुझे अपने जीवनकाल में इस सदी की इतनी महत्त्वपूर्ण खोज की उम्मीद नहीं थी.’’ लिवरपूल विश्वविद्यालय के प्रोफैसर थेमिस बोकौक के अनुसार, ‘‘भौतिकशास्त्रियों के लिए यह खोज उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज.’’
इस खोज से यह साफ हो जाता है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक मानवजाति को सृष्टि के जन्म व विकास से जुड़े धार्मिक किस्सेकहानियों की अंधेरी बंद गलियों से निकाल कर एक ठोस तार्किक व वैज्ञानिक आधार प्रदान करने के लिए कटिबद्ध हैं. लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि धर्मगुरुओं ने हमेशा ही वैज्ञानिक खोजों का विरोध किया है. यूरोप में तो धार्मिक पुनर्जागरण के प्रारंभिक दिनों में अपनेआप को भगवान का दूत कहने वाले पादरियों द्वारा कई वैज्ञानिकों को नरक का भागी करार दे दिया गया, यहां तक कि उन में से कई को तो जिंदा जला कर मार डालने का अमानवीय काम भी किया गया.
पादरी लोग वैज्ञानिकों को यह कह कर सजा देते रहे हैं कि बाइबिल जैसे धर्मगं्रथ स्वयं भगवान ने लिखे हैं और वे उन के खिलाफ कुछ नहीं कह सकते. यहां पर सवाल उठता है कि अगर बाइबिल भगवान ने लिखी है तो फिर उस में ऐसी बातें कहां से आ गईं जो बाद में वैज्ञानिक खोजों ने गलत साबित कर दीं. मानव जाति की उत्पत्ति संबंधी ‘आदम और हव्वा’ की कहानी जब डार्विन ने अपने विकास के सिद्धांत से गलत साबित कर दी तो उन के समकालीन धर्मगुरुओं ने उन के खिलाफ भी फतवे जारी किए थे. आज उन धर्मगुरुओं के शायद किसी को नाम तक याद नहीं होंगे, लेकिन डार्विन मानवीय प्रगति के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए.
हमारे यहां कहा जाता रहा है कि वेदों की रचना स्वयं भगवान ने की है, लेकिन चार्वाक ने हिंदू धर्मगुरुओं की परवा न करते हुए यह स्पष्ट किया कि वेदों की रचना भगवान द्वारा नहीं, बल्कि जीतेजागते हाड़मांस के इंसानों ने की थी. चार्वाक के विरोधियों के पास उन के कथन को गलत साबित करने का कोई ठोस तर्क नहीं था और शायद इसीलिए उन्होंने यह कह कर अपने मन की भड़ास निकाली कि भगवान का अनादर करने के अपराध में चार्वाक व उन के शिष्यों को अगले जन्म में सियार की योनि में जन्म लेना पड़ेगा.
तेरहवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक व वैज्ञानिक रौजर बैकन को अपने वैज्ञानिक विचारों के लिए तथा मध्ययुगीन चर्च के अंधविश्वासों का विरोध करने के जुर्म में बारबार जेल जाना पड़ा.
बैकन के बाद 1327 में खगोलशास्त्री सेको द एस्कोली को धर्म के पैरोकारों ने इसलिए जिंदा जला डाला था कि उन का मानना था कि दुनिया गोल है और इसीलिए उस के दूसरी ओर भी लोगों के रहने की संभावना है. 1513 के आसपास कोपरनिकस ने मानवजाति की महानतम खोज की थी कि धरती सूरज की परिक्रमा करती है. इस के 300 साल बाद तक चर्च इस सत्य को झुठलाता रहा और इस बात को मानने वाले लोगों को सजा देता रहा.
धर्मधुरंधरों की इसी हैवानियत का सुबूत हैं दार्शनिक बू्रनो, जिन्हें 1600 में रोम में जिंदा जला कर मार डाला गया. बू्रनो के बाद गैलीलिओ को भी इसी सत्य का प्रतिपादन करने के अपराध में जेल में डाल दिया गया और उन्हें अनेक यातनाएं दी गईं. गैलीलिओ का अपराध भी यही था कि वे चर्च के अंधविश्वासों के खिलाफ थे.
इतिहास इस तरह की धार्मिक हैवानियत की सच्ची घटनाओं से भरा पड़ा है जब पोंगापंथी धर्मगुरुओं ने अपने धार्मिक अंधविश्वासों की रक्षा के लिए सचाई को ही सूली पर चढ़ा दिया. आज स्थिति यह है कि अपने धर्म को बचाने के लिए धर्मगुरुओं को आखिरकार विज्ञान के सामने घुटने टेकने पडे़ और यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि जीसस व बाइबिल की कहानियों को उन के शाब्दिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए.
धर्म के नाम पर ही दुनिया में बारबार युद्ध लड़े गए और लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. हिटलर द्वारा यहूदियों का कत्लेआम व मुसलिम आतंकवाद इसी सिक्के का दूसरा घिनौना पहलू है. जिस धर्म के नाम पर व्यक्ति हैवान बन जाता है और बड़ी निर्दयता से दूसरों की जान ले लेने पर उतारू हो जाता है, उस से आदमी या समाज को भला क्या लाभ मिल सकता है?
समाजशास्त्रियों के दृष्टिकोण से अगर धर्म की व्याख्या करें तो बादलों के गरजने, बिजली के गिरने या फिर भूकंप आने जैसी प्राकृतिक आपदाओं से डर कर आदिम मनुष्य ने धर्म व भगवान का निर्माण किया और उस आदिम मानव के मन का डर व अज्ञान आज तक मनुष्य व समाज के मन पर हावी है.
परीक्षा में पेपर खराब हो जाने का डर हो या व्यापार में घाटे का या फिर परिवार के किसी सदस्य की गंभीर बीमारी का डर, कमजोर इंसान आज भी भगवान, मंदिर या फिर किसी धर्मगुरु की शरण में पहुंच जाता है और शायद इसलिए निर्मल बाबा जैसे ढोंगी धर्मगुरु लोगों को बेवकूफ बना कर उन से करोड़ों रुपए बटोरने में कामयाब हो जाते हैं.
कई बार आसानी से धन कमाने का लालच भी लोगों को इन धर्मगुरुओं की शरण में ले जाता है क्योंकि धर्मगुरु निरंतर प्रचार करते रहते हैं कि दुख दूर करने हैं तो धर्म की दुकान पर आओ. और पर्याय न होने के कारण वहां जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता. वहां एक बार लुट जाने पर बारबार जुआरी की तरह लुटने की आदत बन जाती है.
न्यूयौर्क से ले कर नई दिल्ली तक, धर्मगुरुओं के सैक्स स्कैंडलों से हर कोई वाकिफ है. किस प्रकार नित्यानंद जैसे हैवान अपनी जिस्मानी भूख मिटाने के लिए भोलीभाली लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. अपने पति से तलाक होने के बाद जब दक्षिण की मशहूर अभिनेत्री रंजीता जैसी कोई महिला मन की शांति के लिए किसी स्वामी की शरण में जाती है तो उसे शांति और गुरुमंत्र के नाम पर मिलता है एक और वहशी, जो उसे अशांति के गर्त में और गहरे धकेल देता है.
आज तमाम वैज्ञानिक खोजों के बावजूद इस तरह के स्वामियों का समाज में बोलबाला है. इन में से कई पर तो लाखों लोग आंख मूंद कर विश्वास करते हैं, जिन के पास बड़ेबड़े आश्रम हैं, बेशुमार दौलत है, जो बड़ीबड़ी कारों व हवाई जहाजों में घूमते हैं. इन धर्मगुरुओं के ऐशोआराम व ऐयाशी देख कर शायद पुराने राजामहाराजाओं को भी अपनेआप पर शर्म आने लगे. उन के ये ऐशोआराम व भोगविलास, सबकुछ उन के अनुयायियों के बड़ेबड़े दान के बल पर चलते हैं. कई धर्मगुरुओं की राज्य व केंद्र सरकार के मंत्रियों तक पहुंच है और वे अपने अनुयायियों के जरिए सरकार से काम निकलवाने के लिए दलालों का काम करते हैं. ये धर्मगुरु माया बटोरने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं. इस का जीताजागता उदाहरण है चित्रकूट वाले एक स्वामी जिस ने 1 हजार से भी ज्यादा सुंदरियां अपने जाल में फंसा रखी थीं, जिन्हें वह राजनीतिज्ञों व ऊंचे तबके के लोगों को सप्लाई करता था.
इंडियन रैशनलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष सनल इदा मारुकु का कहना है, ‘‘मध्यवर्ग के अनेक भारतीय अब इन धर्मगुरुओं से नफरत करने लगे हैं. कई धर्मगुरु अब भगवा वस्त्र पहनने से घबराने लगे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कहीं उन के भगवा वस्त्र देख कर लोग उन्हें पाखंडी समझ कर उन पर पत्थर न फेंकने लगें.’’ इदा मारुकु की संस्था की पूरे देश में 200 से भी अधिक शाखाएं हैं, जिन के माध्यम से वे इन धर्मगुरुओं के कुकर्मों का भंडाफोड़ करने का महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं.
बहरहाल, किसी एक व्यक्ति या संस्था से समाज इस कोढ़ से मुक्ति नहीं पा सकता. इस के लिए जरूरी है कि केवल बड़ेबड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटेछोटे कसबों व गांवों में भी पाखंडी धर्मगुरुओं के खिलाफ जनचेतना पैदा की जाए, तभी समाज को इस अभिशाप से मुक्ति मिल सकेगी. इस के साथ ही सरकार को भी इन ढोंगियों को सजा दिलवाने के लिए कठोर कानून बनाने चाहिए और छल व कपट से एकत्र की गई उन की संपत्ति को जब्त करना चाहिए. धर्म के नाम पर पाखंडियों का काला कारोबार ज्यादा समय तक चलने नहीं दिया जाना चाहिए.