सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी को कर्नाटक के मुख्य सचिव को दिए एक निर्देश में कहा था कि वे सुनिश्चित करें कि किसी भी मंदिर में किसी लड़की को देवदासी की तरह इस्तेमाल न किया जाए. इस के बावजूद धर्म के नाम पर औरतों के यौन शोषण का सिलसिला थमता नहीं दिखता. कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों सहित मुल्क के तमाम हिस्सों में औरत को देवदासी बना कर धर्म की बलि चढ़ाया जा रहा है. लंबे अरसे से प्रशासन इस कुप्रथा से बेखबर बना हुआ है.

मंदिरों में देवदासियों द्वारा सेवा करना नई बात नहीं है. खासतौर से दक्षिण भारतीय मंदिरों में देवदासियों का चलन प्राचीन समय से चला आ रहा है. ये देवदासियां सफेद साड़ी पहनती हैं और मंदिरों के पुजारियों के हर आदेश का पालन करना अपना धार्मिक फर्ज समझती हैं. इन देवदासियों को बताया जाता है कि पुजारी का स्थान भगवान से भी बड़ा होता है और उस के हर आदेश का पालन करना उन की जिंदगी का एकमात्र मकसद होना चाहिए.

कई वर्ष पहले दक्षिण भारत के एक मंदिर में एक 10 वर्षीय अबोध बालिका को देवदासी बनाया गया था, जो वहां के पुजारी के हर आदेश को मानने के लिए विवश थी. बाद में उस की बड़ी बहन भी देवदासी बनी और ये बहनें पुजारी के शोषण और जुल्म का शिकार होती रहीं.

इसी तरह आंध्र प्रदेश के एक मंदिर में 5 देवदासियां वहां के पुजारी की हवस का शिकार होती रहीं. दिलचस्प बात यह है कि इन लड़कियों के मातापिताओं के धर्मगुरुओं ने इन्हें यहां देवदासी के रूप में सौंपने का आदेश दिया था क्योंकि वे भी जल्द धर्म का प्रसाद और भगवान की कृपा हासिल करना चाहते थे. इतनी कम उम्र में देवदासी के रूप में लड़कियों को सौंपने के पीछे अंधविश्वास तो है ही, गरीबी भी एक बहुत बड़ा कारण है. इन देवदासियों की स्थिति ‘रखैल’ जैसी है, यह बात इन के मातापिता और ग्रामसमाज के लोग भी जानते हैं. लेकिन कोई प्रतिरोध नहीं करता है. कारण साफ है, सभी को यह डर सताता है कि यह धर्म के खिलाफ हो जाएगा.

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