सवाल
हमारी शादी के 5 साल बाद भी हमें बच्चा नहीं हुआ है. हम पतिपत्नी एकदूसरे का बहुत खयाल रखते हैं. हम ने अपने घर की तीसरी मंजिल किराए पर दी हुई है. नए किराएदार आए. तब वे पतिपत्नी नए शादीशुदा कपल थे. एक साल तक तो सब ठीकठाक चलता रहा. किराएदार की पत्नी साल बाद प्रैग्नैंट हो गई. कुछ कौंप्लिकेशंस होने के कारण वह अपने मायके चली गई ताकि उस की अच्छी देखभाल हो सके. पत्नी के चले जाने के कारण उस का पति अकेला रहने लगा.एक दिन मेरे पति औफिस के कलीग की शादी में अकेले गए हुए थे. तभी वह आया पीने का पानी लेने के लिए. मैं ने उसे घर के अंदर बुला लिया. हम दोनों बातें करने लगे, पता नहीं कैसे उसी कुछ घंटों में हमारे बीच सैक्स हो गया. मु?ो तब से गिल्ट फील हो रही है. वह भी अपने किए पर शर्मिंदा है. तब से वह मेरी तरफ देखता तक नहीं है. मैं भी उस की तरफ ध्यान नहीं देती.मैं ने अपने पति को अभी तक कुछ नहीं बताया है. लेकिन मैं अब जब भी उन के साथ फिजिकल रिलेशन बनाती हूं, लगता है जैसे उन्हें धोखा दे रही हूं. क्या करूं, क्या पति से अपने किए की माफी मांग लूं? कोई रास्ता सु?ाएं.
जवाब
आप ने जो भी किया, बहुत गलत किया. किराएदार ने एक तरह से आप के अकेलेपन का फायदा उठाया है. उस का क्या गया, पछतावा अब आप कर रही हैं. जहां तक आप पति से अपने किए की माफी मांगने की बात सोच रही हैं तो वैसा हरगिज मत सोचिए. आप अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मारने वाली बात कर रही हैं. कोई भी पति यह बात बरदाश्त नहीं कर सकता. भलाई इसी में है कि आप इस बात को अपने सीने में दफन कर लें. किराएदार से बिलकुल कोईर् मतलब न रखें. उस के सामने बिलकुल न आएं. आ भी जाएं तो अपने को बिलकुल नौर्मल रखें. अपने मन को सम?ाइए. जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता. बस, अपने गिल्ट से बाहर निकल कर घर, पति पर ध्यान लगाएं. पति को अपना भरपूर प्यार दीजिए. बच्चे का प्लान कीजिए. कोई दिक्कत है तो डाक्टरी परामर्श लीजिए. पतिपत्नी के बीच बच्चा आ जाता है तो एक स्थिरता आ जाती है. आप भी बच्चे के साथ पिछली सब बातें भूल जाएंगी. जिंदगी की उल?ानों को सुल?ाने में ही सम?ादारी है.
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जीवन में बहुत से संबंध जन्म से बनते हैं. मांपिता, भाईबहन और मां व पिता के संबंधियों से संबंध जन्म से अपनेआप बनते चले जाते हैं और इसी के साथ ढेरों चाचाचाची, ताऊ चचेरेममेरे भाईबहन, भाभियां, मौसियां, मौसा, फूफा, बूआ के संबंध बन जाते हैं. इन संबंधों को निभाने और इन में खटपट होने का अंदेशा कम होता है क्योंकि ये मांबाप के इशारे पर बनते हैं जो प्रगाढ़ होते हैं.
लेकिन शादी के बाद एक लड़की का इन संबंधियों से एक नया रिश्ता बनता है. रिश्ता तो लड़के का भी लड़की के संबंधियों से बनता है पर वह मात्र औपचारिक होता है. शादी होने पर लड़की का जो रिश्ता लड़के के संबंधियों से बनता है, वह कुछ और माने रखता है.
सास और ससुर से संबंध इस मामले में सब से बड़ा और महत्त्वपूर्ण होता है. लड़के का संबंध अपने मांबाप से नैसर्गिक, नैचुरल होता है, 20-30 साल पुराना होता है, लेकिन उस की पत्नी को उन (सासससुर) से संबंध एक दिन में बनाना होता है जिस की न कोई तैयारी होती है न ट्रेनिंग. लड़की चाहे सास खुद पसंद कर के लाए या सास का लाड़ला अपनी मां की सहमति या असहमति से लाए, संबंध को निभाने की जिम्मेदारी अकेली उसी यानी नई पत्नी की होती है.
यह एक बड़े पेड़ के प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) की तरह होता है. अब तक मनुष्य पेड़ों को इधर से उधर जड़ समेत नहीं ले जाता था, नए लगाना वह आसान समझता था क्योंकि हाल तक यह माना जाता था कि जिस पेड़ की जड़ें जमीन में गहरे तक गई हुई हैं, उसे दूसरी जगह ले जाना और फिर उस का फलनाफूलना असंभव सा है. लेकिन हाल में तकनीक विकसित हुई है कि पेड़ को जड़ समेत एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है, हालांकि, इस प्रक्रिया में बहुत से पेड़ मुरड़ जाते हैं.
तकरीबन हर लड़की के जीवन में उस के रिश्तों को अपने मांबाप से एक ?ाटके से तोड़ कर उसे दूसरे संबंधों से जोड़ दिया जाता है और उम्मीद की जाती है कि वह पत्नी बन कर अपनी पुरानी जड़ें भूल नई पक्की जमीन में अपनी जड़ें दिनों, सप्ताहों में बना लेगी. केवल पति के सहारे एक पत्नी के लिए यह काम मुश्किल होता है खासतौर पर जब वह अपनी पहले ही जमीन पर पत्नी को जगह देने को तैयार न हो.
नई पत्नी को नए घर में रमाने न देने के लिए पंडों ने बहुत से उपाय तैयार कर रखे हैं. वे अपनी इस सेवा को लिए जाने को कंप्लसरी बनाने के लिए इस नई सदस्या को अनावश्यक बनाने का माहौल बनाना शुरू कर देते हैं.
हमारे सनातनी समाज में तो पंडित सब से बड़ा उपदेशक, मार्गदर्शक, विपत्तियां दूर करने वाला होता है जो जब घर में कदम रखता है, मोटी दानदक्षिणा वसूल लेता है उस सलाह को देने के लिए जिस की न तो आवश्यकता होती है, न ही वह किसी काम की होती है. वह सलाह, दरअसल, दूध में हमेशा नीबू निचोड़ने की होती है लेकिन नीबू की बूंदें इतनी चतुराई से डाली जाती हैं कि लगता है जैसे शहद की बूंदें टपकाई जा रही हों.
एक उपाय यह बताया जाता है कि तुलसी, चंपा, चमेली के पौधे लगा दो. वास्तुशास्त्र के अनुसार कहां लगेंगे, यह पंडित ही तो बताएगा न, जो पहले अपनी फीस लेगा. एक दूसरा उपाय आजकल बताया जाने लगा है कि किचन की कैबिनेट काले रंग की न हो. पत्नी और सास के संबंध में किचन के रंगों का भला क्या योगदान है, यह सम?ा से परे है पर इसे भी अपना लिया जाता है.
कुछ सनातनी वास्तुशास्त्री किचन को ही खिसकाने की सलाह देने लगते हैं. यह काम आम घरों में संभव नहीं होता.
अपने मतलब का, स्वार्थ का, पैसे देने वाला एक उपाय यह बताया जाता है कि घर में एक गणपति की मूर्ति रखें. ऐसे में इस की स्थापना के लिए पंडित को दानदक्षिणा तो देनी ही होगी.
हमारा मीडिया बेटे को मां और अपनी पत्नी के साथ तालमेल के गुर बताने की जगह अनापशनाप उपाय बताता है.
काफी समझदार लोग भी पंडितों के बताए उपायों को अपनाते हैं क्योंकि उन्हें जन्म से यह शिक्षा मिली होती है कि पंडेपुजारी जो कहते हैं वह सब को बनाने वाले भगवान की इच्छा है.
नई सदस्या को कैसे घर में रमाएं, कैसे उस के 20-25 साल के व्यक्तित्व व उस की ट्रेनिंग का लाभ उठाएं, कैसे उसे नए घर की ज्योग्राफी व टैंपरामैंट से अवगत कराएं आदि की जगह टोनेटोटकों की सलाहों की बरसात होने लगती है.
एक उपाय में यह बताया गया है कि सासबहू सुबहसुबह उठ कर झाड़ू लगाएं. यह विघ्न डालने वाला काम है. जब नए पतिपत्नी एकदूसरे की बांहों में हों, सास झाड़ू लगाना शुरू कर दे या बहू को आदेश दे या नौकरानी से कह दे, तो ऐसे में विवाहित जोड़े का सैक्स सुख तो डिस्टर्ब होगा ही. नतीजतन, पत्नी के मन में चिढ़ उठेगी और संबंध ठीक नहीं रहेंगे.