लैंगिक विभेद की वैश्विक खाई इतनी गहरी है कि बदलाव की वर्तमान दर से इसे भरने में एक सदी से भी ज्यादा समय लग जाएंगे. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ताजा शोध के अनुसार यह दुर्भाग्यपूर्ण निष्कर्ष नौकरी व राजनीति, दोनों में इस मोर्चे पर नाकामी का प्रतीक है. रूढ़िवादी सोच से उपजी यह खाई विश्व प्रतिभा पूल की प्रगति में भी बुरी तरह बाधक है.

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान परिदृश्य के मद्देनजर महिलाओं को आर्थिक बराबरी के लिए अभी 217 साल और इंतजार करना पड़ेगा, जबकि पिछले साल की रिपोर्ट में यह 170 साल माना गया था. वास्तविकता है कि पाकिस्तान जैसे देशों में महिलाएं आज भी कैरियर की शुरुआत से ही उपेक्षा झेलती हैं, वेतन तो कम मिलता ही है, शीर्ष पदों पर उनकी भागीदारी भी पुरुषों के अनुपात में बहुत कम है.

144 देशों में आर्थिक, स्वास्थ्य, शिक्षा और राजनीतिक क्षेत्र के सर्वे में लैंगिक असमानता सूचकांक पर पाकिस्तान 143वें पायदान पर है. पाकिस्तान का दो वर्षों से इसी जगह जमे रहना बताता है कि यहां महिलाओं के प्रति भेदभाव बढ़ा है. दरअसल, सत्ता और राजनीति महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने में नाकाम रहे हैं. सच तो यह है कि यह सब जान-बूझकर हुआ, क्योंकि यह समाज महिलाओं को आगे बढ़ते देखना ही नहीं चाहता. यह लोगों को उस एहसास से भी दूर रखना चाहता है कि स्त्रियां क्या कर रही हैं या वे क्या करने में सक्षम हैं?

महिलाओं को उनके अधिकारों, समान वेतन, कार्यस्थल पर सुरक्षा से वंचित करने के नतीजे समाज-शास्त्रीय ही नहीं, आर्थिक नजरिए से भी खतरनाक होंगे. भूलना नहीं चाहिए कि आर्थिक विकास में महिलाओं की बड़ी भूमिका हो सकती है, इसलिए लैंगिक असमानता दूर करने के लिए इसे राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बनाना होगा.

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