यूपी पुलिस के डीजीपी प्रशांत कुमार ने पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग करते कहा कि ‘यूपी पुलिस पर ट्रिगर-हैप्पी का ठप्पा नहीं लगना चाहिए. जिस किसी क्षेत्र में हो, अपना कर्तव्य अपेक्षित तरीके से निभाएं, न कि ‘बाबू’ की तरह केवल फाइलों को देखें.’
प्रशांत कुमार ने यूपी डीजीपी के रूप में अपना कार्यभार 31 जनवरी को संभाला था. देश के सब से बड़े पुलिस बल के प्रमुख के रूप में डीजीपी प्रशांत कुमार ने एसपी और उस से ऊपर के अधिकारियों से कहा कि ‘हम यहां सेवा और सुरक्षा के लिए हैं, किसी को भड़काने के लिए नहीं’.
पुलिस अधिकारियों को अपने औपरेशन और मुठभेड़ों के बारे में सावधान रहने के लिए कहते हुए डीजीपी ने कहा है कि यूपी पुलिस को अराजकता और गैंगस्टरवाद से लड़ने के लिए जाना जाना चाहिए. अपराध और अपराधियों से निबटते समय उन्हें गलती नहीं करनी चाहिए और मजबूत आधार के साथ सवालों का जवाब देने की स्थिति में होना चाहिए.
सवाल उठता है कि डीजीपी को यह क्यों कहना पड़ा? पिछले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश पुलिस की छवि ‘ठोंक दो’ वाली कैसे बनी? इस के लिए पुलिस और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों जिम्मदार हैं. बात केवल ठोंक दो तक ही सीमित नहीं रही है. अपराधियों और आंदोलनकारियों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई भी सुर्खियों में रही है. सीएए यानी नागरिकता कानून का विरोध करने वाले आंदोलनकारियों के खिलाफ उन की संपत्ति को कुर्क करने के पोस्टर सड़कों पर लगाए गए.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में एनकांउटर का बोलबाला था. बुलडोजर सरकार की कार्रवाई का प्रतीक बन गया था. उत्तर प्रदेश में 2017 से 2023 तक कुल 186 एनकाउंटर हुए हैं. यही नहीं, पुलिस ने औपरेशन लंगड़ा के तहत कई अपराधियों के पैरों में भी गोलियां मारीं. इन की संख्या काफी ज्यादा है. पैर या शरीर के अन्य हिस्से में गोली लग कर घायल हुए बदमाशों के आंकड़े पर नजर डालें तो यह संख्या 5,046 है.
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