राजा भैया को कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति से ‘कुंडा का गुंडा’ का नाम मिला था. 1993 में 25 साल की अवस्था में निर्दलीय विधयक बने राजा भैया तब से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. अब वह अपनी पार्टी बनाकर दावा कर रहे हैं कि ‘कुंडा से प्रदेश की कुंडली’ बदलेगी. राजा भैया की पार्टी को लेकर ऊंची जातियों में एक उत्साह का माहौल है. इसे वोट में बदल कर राजा भैया भाजपा के सवर्ण वोट में सेंधमारी करेंगे.

25 सालों के राजनीतिक जीवन के बाद प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा से विधायक बन रहे रघुराज प्रताप सिंह अब अपनी पार्टी ‘जनसत्ता’ का गठन कर चुके हैं. आने वाले चुनाव में वह पहली बार अपने दल से चुनाव लड़ेगे. रघुराज प्रताप सिंह को उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजा भैया के नाम से जाना जाता है. वह भाजपा और सपा के सहयोग से उत्तर प्रदेश कैबिनेट में मंत्री भी रहे हैं.

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राजा भैया के खिलाफ मायावती ने पोटा एक्ट के तहत कार्यवाई की थी जिसके कारण उनको लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा था. दलित सवर्ण खेमेबंदी में राजा भैया को सवर्ण राजनीति का चेहरा माना जाता है. उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में राजा भैया ने अपनी पहली रैली में बड़ी भीड जुटाकर अपनी ताकत का अहसास करा दिया है.

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राजा भैया ने अपनी पार्टी के रुख को साफ करते वही मुद्दे उठाये हैं जिनकी मांग सालों से सवर्ण करते आये हैं. क्रीमीलेयर का आरक्षण सुविध न देने का मुद्दा सबसे प्रमुख है. इसके साथ ही साथ यह मांग भी की गई कि हत्या और बलात्कार के मामले में सवर्णो को भी मुआवजा दिया जाये. दलित एक्ट में बिना जांच के किसी को जेल न भेजा जाये. शहीदों के परिवारों को एक करोड रुपया दिया जाये. सामान्य तौर पर देखें तो यह सभी मांग सत्ता में आने से पहले भाजपा भी करती रही है. सत्ता में आने के बाद भाजपा ने इन मुद्दों को दरकिनार कर दिया. दलित एक्ट को लेकर भाजपा ने जिस तरह का कदम उठाया उससे ऊंची जातियां भाजपा से नाराज हो गई हैं.

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