हिट एंड रन कानून को ले कर मोदी सरकार बैकफुट पर आ गई है. ट्रक ड्राइवरों के हड़ताल पर जाते ही ऐसा हड़कंप मचा और चक्काजाम की ऐसी स्थिति बनी कि सरकार को तुरंत नया कानून वापस लेने का ऐलान करना पड़ा. पिछले 9 सालों में मोदी सरकार ने कई ऊलजलूल कानून बना कर जनता पर जबरन थोपने के प्रयास किए और बारबार उन्हें वापस लेने की शर्मनाक हालत का सामना किया.

अभी चंद दिनों पहले कुश्ती संघ में भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह की अश्लील हरकतों व अंतर्राष्ट्रीय महिला खिलाड़ियों के यौनशोषण का मामला सुर्खियों में था. इस मामले ने मोदी सरकार की खूब फजीहत करवाई. मगर अपने नेता को गिरफ्तार कर जेल में डालने की हिम्मत सरकार नहीं दिखा पाई.

अंतर्राष्ट्रीय फलक पर देश का नाम चमकाने वाली महिला खिलाड़ियों को जिस तरह दिल्ली की सड़कों पर पुलिस द्वारा घसीटा और पीटा गया, उस को देख कर पूरे देश का सिर शर्म से झुक गया. उस के बावजूद बृजभूषण पर कोई आंच नहीं आई और उस की सरपरस्ती में कुश्ती संघ का अगला चुनाव हुआ जिस में बृजभूषण के नजदीकी को अध्यक्ष चुना गया. सरकार को शर्म तब आई जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पहलवानों ने अपने सम्मान और पुरस्कार वापस करने शुरू किए. सरकार तब चेती जब खिलाड़ी अपने सम्मान मोदी के घर के सामने सड़क पर पटक आए. तब जा कर कुश्ती संघ का चुनाव रद्द करने के आदेश निकले.

इस से कुछ और पहले चलें तो 3 नए कृषि कानूनों को वापस लेने पर जिस अपमानजनक स्थिति का सामना मोदी सरकार ने किया था वह भाजपा के इतिहास का सब से काला अध्याय है. मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए बड़े जोरशोर से 3 कृषि कानून लाई थी जिन के खिलाफ देशभर का किसान सड़क पर आ गया था.

सालभर से ज़्यादा समय तक दिल्ली की सीमा पर जाड़ा, गरमी, बरसात की मार सहता हुआ हमारा अन्नदाता बैठा रहा. उस पर खूब पुलिसिया जुर्म टूटे मगर वह टस से मस न हुआ और आखिरकार सरकार को खामियों से भरे अपने तीनों कानून जारी करने के बाद वापस लेने पड़े. अन्नदाता के सत्याग्रह ने अहंकार का सिर झुका दिया. सरकार को किसानों से माफी मांगनी पड़ी.

इस से पहले मोदी सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून भी वापस लेना पड़ा था. तब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए हुए कुछ ही समय हुआ था. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता में आने के कुछ ही महीने बाद ही सरकार नया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ले आई. इस के जरिए भूमि अधिग्रहण को सरल बनाने के लिए सरकार ने किसानों की सहमति का प्रावधान ही खत्म कर दिया. इस पर किसान भड़क उठे. आखिर उन की जमीन लेने के लिए उन से ही कोई बात न हो? उन्होंने विरोध किया. आंदोलनरत हो गए. सरकार ने अपनी हेकड़ी दिखाई.

4 बार सरकार ने उस अध्यादेश को जारी किया लेकिन वह इस से संबंधित बिल संसद में पास नहीं करा पाई. अंत में सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े और 31 अगस्त, 2015 को अधिग्रहण कानून वापस लेने का ऐलान मोदी सरकार ने किया.

जीएसटी पर भी मोदी सरकार को झुकना पड़ा. अक्टूबर 2020 में जीएसटी को ले कर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद पैदा हो गया. वजह यह थी कि राजस्व में आई कमी की भरपाई के लिए कर्ज कौन लेगा? इस पर केंद्र ने कहा कि राज्य सरकारें यह कर्ज लें. लेकिन केरल के वित्त मंत्री थौमस इसाक ने इस का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही. जिस के बाद उन के साथ 9 और राज्य भी आ गए. नतीजा यह हुआ कि केंद्र सरकार को यूटर्न लेते हुए खुद कर्ज लेने का फैसला करना पड़ा. इस से पहले जब जीएसटी कानून लाया गया तो उस में भी लगातार बदलाव किए जाते रहे.

छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरें कम करने के फैसले पर तो मोदी सरकार को 24 घंटे में ही यूटर्न लेना पड़ा था. वित्त मंत्रालय ने अप्रैल 2021 में छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरें कम करने का फैसला किया था, लेकिन 24 घंटे के अंदर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह फैसला वापस लेने का ऐलान किया. जिस को ले कर उस वक्त विपक्ष ने सरकार पर खूब तंज कसे थे.

मार्च 2016 में कर्मचारी भविष्य निधि का पैसा निकालने पर तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट के दौरान टैक्स लगाने की घोषणा की थी, लेकिन कुछ समय बाद ही सरकार ने इस पर भी यूटर्न लिया और फैसला वापस ले लिया.

एनआरसी और सीएए के खिलाफ शाहीनबाग, दिल्ली में धरने पर बैठी औरतों से सरकार ने मुंह की खाई. ध्रुवीकरण के जरिए सत्ता पर काबिज रहने की मंशा पालने वाली मोदी सरकार को बड़े शांतिपूर्ण और गांधीवादी तरीके से बुजुर्ग महिलाओं ने बता दिया कि यह सिर्फ एक ‘मुसलिम समुदाय से जुड़ा मुद्दा’ नहीं, बल्कि भारतीय नागरिकता पर प्रहार करने वाला कानून है जो मान्य नहीं है.

मोदी सरकार का सीएए और एनआरसी की क्रोनोलौजी भारत के समावेशी विचारों और संवैधानिक मूल्यों पर आघात करने वाले अधिनियम के रूप में उभर कर सामने आया. प्रदर्शनकारियों ने इस जाल से बचने में अभूतपूर्व बुद्धिमानी दिखलाई और समुदाय विशेष को निशाना बनाने की सरकार की साजिश का परदाफाश हो गया. महिलाओं ने सरकार को बता दिया कि तानाशाही रवैया इख्तियार कर कोई नियमकानून जबरन नहीं थोपा जा सकता है.

अब एक बार फिर मोदी सरकार अपने तानाशाही कानून को ले कर बैकफुट पर है. हिट एंड रन कानून जारी करने के 2 दिनों के अंदर ही सरकार को कानून वापस लेने का ऐलान करना पड़ा. लोकसभा चुनाव सिर पर है. ऐसे में जनता का गुस्सा सत्ता की चूलें हिला सकता है, इस आशंका से भरी मोदी सरकार को रात में ही कानून वापस लेने का ऐलान करना पड़ा. 2 दिनों में ही सरकार को समझ आ गया कि उस से फिर बड़ी गलती हो गई है. आह, कितनी शर्मनाक स्थिति.

दरअसल, हिट एंड रन कानून में सजा को सख्त किए जाने के विरोध में ट्रक चालकों ने देशभर में चक्का जाम कर दिया. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र समेत अनेक राज्यों में हड़ताल का असर दिखा. प्रदर्शन के दौरान कई जगह कानून व्यवस्था कायम रखने के चक्कर में पुलिस को आंदोलनरत ड्राइवरों से झड़प, मारपीट और पथराव का सामना करना पड़ा.

ट्रक ड्राइवरों के हड़ताल पर जाते ही चीजों के दाम उछलने लगे. लोग इस आशंका से कि कहीं हड़ताल के चलते मार्केट में चीजों की कमी न हो जाए, रेट आसमान न छूने लग जाएं, थैले ले कर बाजार भागने लगे और हफ्तों की ग्रोसरी-डेयरी का सामान खरीद लाए. पैट्रोल पंपों पर डीजल, पैट्रोल भरवाने के लिए लोगों की लंबी कतारें लग गईं, जिस के चलते पंपों पर जल्दी ही पैट्रोल ख़त्म हो गया और 70 फ़ीसदी पैट्रोल पंपों को ‘आउट औफ स्टौक’ का बोर्ड टांगना पड़ा.

मध्य प्रदेश के सभी जिले अलर्ट मोड पर आ गए. वहां पैट्रोल न मिलने से करीब 5 लाख वाहनों की आवाजाही प्रभावित हुई. अकेले मुंबई शहर में एक दिन में करीब 150 करोड़ रुपए का कारोबार, जो ट्रक ड्राइवरों के जरिए होता था, ठप हो गया. मुंबई में 3 दिन की हड़ताल में करीब 450 करोड़ रुपए के नुकसान होने का अंदाजा लगाया गया है.

फलसब्जी समेत खानेपीने की तमाम चीजों की आवाजाही रुकने से चीजों के दाम अचानक बढ़ गए. उत्तर प्रदेश में 60 हजार से अधिक ट्रक सड़कों पर नहीं उतरे. यहां करीब 2 दिन में 2 हजार करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ. दवाइयां, सब्जी, फल, डेयरी प्रोडक्ट और डीजलपैट्रोल की सप्लाई बाधित हुई. शाम तक प्रदेश के एकचौथाई पैट्रोल पंप खाली थे. चीजों के दाम चढ़ गए. सब तरफ से सरकार को गालियां पड़ने लगीं. अन्य प्रदेशों का भी कमोबेश यही हाल रहा.

हिट एंड रन का मतलब है तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने के चलते किसी व्यक्ति या संपत्ति को नुकसान पहुंचाना और फिर भाग जाना. पहले आईपीसी में हिट एंड रन में पीड़ित की मौत होने पर आरोपी के लिए 2 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान था, मगर मोदी सरकार ने भारतीय न्याय संहिता में इस सजा को 5 साल बढ़ा कर 7 साल कर दिया. अगर ड्राइवर मौके से फरार हो जाता है तो सजा को 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही, उसे लाखों रुपये का भारी जुर्माना भी भरना होगा.

ड्राइवर्स का कहना है कि कोई दुर्घटना होने पर दोष सीधे ट्रक चलाने वाले पर मढ़ा जाता है. भीड़ उस को पकड़ती है. ऐसे में भागने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है. यदि वे घायल की मदद करना भी चाहें तो उन्हें भीड़ के गुस्से का सामना करना पड़ेगा. भीड़ के हत्थे चढ़ जाएं तो उन्हें खुद की जान से हाथ धोना पड़ेगा. देश में ऐक्सिडैंट इन्वेस्टिगेशन प्रोटोकौल का अभाव है. पुलिस वैज्ञानिक जांच किए बिना ही दोष बड़े वाहन पर मढ़ देती है. ऐसे में आंख बंद कर के कानून बना कर थोपने से पहले सरकार को इन बिंदुओं पर चर्चा करनी चाहिए थी. फिर जुर्माने की इतनी बड़ी राशि भरने की हैसियत अगर उस की होती तो वह ट्रक क्यों चला रहा होता? इन बातों पर गौर किए बिना ही सरकार ने सजा और जुर्माना इतना अधिक कर दिया.

आखिर सरकार के नए नियमकानूनों में जो छेद आम जनता को आसानी से नजर आ जाते हैं, वह सरकार को क्यों नहीं दिखते? इस की वजह यह है कि मोदी सरकार के मंत्री जिन्हें कोई कानून बनाने से पहले बैठ कर उस पर चर्चा करनी चाहिए थी, आमजन से विचारविमर्श करना चाहिए था वह तो धर्म की चाकरी बजा रहे हैं, और आमजन से जुड़े नियमकानून की पोथियां एयरकंडीशन कमरों में बैठे उन अधिकारियों की फ़ौज तैयार कर रही है जो कभी जनता के बीच जाती नहीं.

सारा काम पीएमओ के हवाले है जो जनता की तकलीफों से अनजान है. जिस का रवैया हमेशा ही तानाशाही वाला रहा है. मंत्री-विधायक तो फिर कभीकभी जनता के बीच उठतेबैठते हैं, वे उन की जरूरतों और तकलीफों को जानते हैं मगर अधिकारी तो गरीब आदमी की छाया भी बरदाश्त नहीं करता. फिर वह उस के हित की बात कैसे सोच सकता है? लोकतंत्र में जनता की तकलीफ तो नेता ही समझ सकता है और वही उस के हित में काम कर सकता है, मगर मोदी सरकार अपने नेताओं को धर्म की चाकरी से फुरसत तो दे.

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