देश में अब सांप्रदायिक हिंसा, अपराध और गैरबराबरी का माहौल बन गया है. दलितों और अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. धर्म और जाति को मुद्दा बना कर सत्ताधारी दल राजनीति कर रहे हैं. विकास और जनहित की बातें गायब हैं.  जब देश का पूरा समय और ताकत गरीबी, भुखमरी, बीमारी, पढ़ाईलिखाई पर लगनी चाहिए, वहां गौरक्षा, हिंदुत्व के नाम पर लोगों को सरेआम मौत के घाट उतारा जा रहा है.  चूंकि लोकसभा चुनाव 2019 में अब कुछ ही महीने बचे हैं, लिहाजा चुनावी तैयारियों को ले कर सभी राजनीतिक दल जोरशोर से नई रणनीति बनाने और अपना प्रचारतंत्र मजबूत करने में लगे हैं. लेकिन जनता को एक कड़ी में जोड़ कर एकता, अखंडता और विकास का एजेंडा ले कर चलने की सोच रखने वाले सियासी दलों का देश में अकाल सा दिखता है.

हालांकि जनता दल राष्ट्रवादी जैसे कुछ नए दल भी हैं जो किसी खास जाति या तबके की बात नहीं करते हैं और न ही जाति और धर्म के आधार पर टिकट बांटने में यकीन रखते हैं.  जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक रहमान यों तो कारोबार से जुड़े रहे हैं लेकिन समाज के लिए कुछ करने की चाहत उन्हें राजनीति के गलियारों में ले आई है. अशफाक रहमान राजनीति से अपराधी और विघटनकारी तत्त्वों को खत्म करना चाहते हैं. हालाकि राजनीति उन के लिए नया मैदान नहीं है. साल 1990 से ले कर साल 1995 तक वे बिहार की राजनीति में रहे और मुसलिमों को रिजर्वेशन देने की बात सब से पहले उन्होंने ही उठाई थी.  बहरहाल, मुसलिमों व दलितों के बदतर हालात को देख कर वे नए सिरे से कमर कस कर राजनीति में उतरे हैं और अब जनता दल राष्ट्रवादी के साथ जनता के बीच मौजूद हैं.

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