सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने 12 जनवरी को भारत के मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध प्रैस कौन्फ्रैंस कर के न्यायपालिका और लोकतंत्र को बचाने की अपील की तो देश सकते में आ गया. न्यायिक और राजनीतिक क्षेत्रों में हलचल मच गई. देश में एक अजीब स्थिति पैदा हो गई. न्यायिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है.

जजों ने जनता की अदालत में आ कर जो कुछ कहा, सामान्य नहीं, बहुत गंभीर है. जजों के मतभेद खुल कर सामने आने के बाद न्याय का सब से बड़ा मंदिर शक के कठघरे में आ गया. जजों का इशारा स्पष्ट तौर पर न्याय के मंदिर में न्याय के ढोंग, पाखंड की ओर है. उच्च न्यायपालिका पर दबाव या फिर नेता, अपराधी और न्यायतंत्र के अपवित्र गठजोड़ की तरफ संकेत है.

12 जनवरी को 12:15 बजे सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर जज जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और मदन बी लोकुर अचानक मीडिया के सामने आए. इन्होंने चीफ जस्टिस के तौरतरीकों पर सवाल उठाए, कहा कि लोकतंत्र खतरे में है. ठीक नहीं किया गया तो सब खत्म हो जाएगा.

चीफ जस्टिस पर आरोप

जस्टिस चेलमेश्वर ने शुरुआत करते हुए कहा कि यह कौन्फ्रैंस करने में हमें कोई खुशी नहीं है. यह बहुत ही कष्टप्रद है. हम ने 2 माह पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पत्र लिखा था और शिकायत की थी कि महत्त्वपूर्ण मामले उन से जूनियर जज को न दिए जाएं पर चीफ जस्टिस ने कुछ और ऐसे फैसले किए जिन से और सवाल पैदा हुए. इतना ही नहीं, आज (12 जनवरी) भी हम मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा से मिले और संस्थान को प्रभावित करने वाले मुद्दे उठाए पर वे नहीं माने. इस के बाद हमारे सामने कोई विकल्प नहीं रह गया. अपनी बात देश के सामने रखने का फैसला किया. कल को लोग यह न कह दें कि हम चारों जजों ने अपनी आत्मा बेच दी.

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