विकास के वादे पर सरकार बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 साल में ही धर्म की राजनीति का सहारा लेने लगे थे. 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार ने यह बता दिया है कि देश अभी भी विकास को केन्द्र में रखकर ही आगे बढ़ना चाहता है.
चुनावों में हार के बाद भाजपा नेताओं का बड़बोलापन कम नहीं हो रहा है. भाजपा को लग रहा है कि हर बात के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराकर केन्द्र सरकार की 5 साल की नाकामियों को छिपाया जा सकता है. भाजपा ने विधानसभा चुनावों में नोटबंदी, जी.एस.टी., कालाधन और सर्जिकल स्ट्राइक को मुद्दा नही बनाया.
भाजपा ने 2019 के आम चुनावों का सेमीफाइनल कहे जाने वाले चुनावों में धर्म की राजनीति को मुद्दा बना, राम मंदिर को लेकर आदित्यनाथ को चुनावी प्रचार का सबसे बडा ब्रांड अम्बेसडर बनाया.
जनता ने भाजपा के इन मुद्दों को नकार दिया और उस कांग्रेस की सरकार बनवा दी जिसको राजनीति के हाशिये पर मान लिया गया था. असल में यह जीत कांग्रेस की नहीं थी, यह भाजपा और उसके हिंदुत्व की हार थी.
अपने सबसे प्रमुख मुद्दे को पिटा हुआ देखकर भाजपा ‘बैकफुट’ पर है. भजभज मंडली के बहुत सारे दबाव के बाद भी केन्द्र सरकार राम मंदिर मुद्दे पर ‘अध्यादेश’ लाने को तैयार नहीं है.
इस बात की सफाई देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने ‘इंटरव्यु' में यह बात स्वीकार करनी पड़ी. इंटरव्यु के जरिये अपनी बात वहां रखी जाती है जहां पर तर्क-वितर्क न हो सके. राम मंदिर के लिए प्रधानमंत्री ने एक बार फिर से कांग्रेस को जिम्मेदार मानकर ऐसा संदेश दिया जैसे वह कांग्रेस से मदद मांग रहे हों. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 5 साल के काम को कांग्रेस के 70 साल से अधिक बताया और इस मुद्दे पर चुनाव मैदान में जाने की बात कही. इसके बाद भी राम मंदिर मुद्दे पर ‘अध्यादेश’ के सवाल पर कांग्रेस से ही मदद मांग ली.
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